मौजूदा समय में भारत अंतरिक्ष विज्ञान के मामले में अपना नाम रोशन कर रहा है। हर साल नए कीर्तिमान गढ़े जा रहे हैं। भारत की तरक्की ऐसे दिखती है कि 49 साल पहले जिस देश ने दूसरे देश की मदद से अपना पहला सैटलाइट लॉन्च किया, आज तमाम देश अपने सैटलाइट लॉन्च करवाने के लिए भारत का मुंह देखते हैं। साल 1975न में जब भारत अपना पहला सैटलाइट लॉन्च कर रहा था तब शायद इसकी कल्पना भी नहीं की गई होगी कि भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिख देगा और हर साल ये सुनहरे अक्षर और चमकदार होते जाएंगे।

 

1970 से 1980 से बीच तकनीक के मामले में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा था। भारतीय वैज्ञानिक भी जमकर पसीना बहा रहे थे। इसी क्रम में भारत के मशहूर वैज्ञानिक विक्रम साराभाई और उनकी टीम ने एक सैटलाइट की योजना पीएम इंदिरा गांधी के सामने रखी।  इससे पहले, भारत ने 60 के दशक में ही स्पेस प्रोग्राम शुरू कर दिया था लेकिन उसका रॉकेट सिर्फ 55 किलोमीटर की ऊंचाई तक ही जा पाया था। आमतौर पर सैटलाइठ को कम से कम 150 किलोमीटर से ज्यादा ऊंचाई पर ही स्थापित किया जाता है। भारत के सामने यही चुनौती थी। इसी बीच चीन ने सैटलाइट लॉन्च कर दिया था तो भारत को भी खुद को आगे रखना था।

कैसे बना ISRO?

स्पेस रिसर्च के मामले में खुद को मजबूत करने के लिए साल 1962 में भारत ने द इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) की स्थापना की गई। इसी का नाम साल 1968 में ISRO हो गया जो आज भारत की स्पेस एजेंसी है। भारत अपना सैटलाइट बनाकर अमेरिका की मदद से लॉन्च करने वाला था लेकिन इसी बीच सोवियत संघ ने इच्छा जताई कि इस मिशन में वह भारत की मदद करना चाहता था। विक्रम साराभाई ये बात सुनते ही तैयार हो गए। हालांकि, सोवियत की शर्त थी कि भारत जो सैटलाइट बनाए उसका वजन चीन वाले सैटलाइट से ज्यादा हो।

 

दरअसल, उन दिनों सोवियत और चीन की कट्टी चल रही थी। 1962 में हुए युद्ध के बाद भारत और चीन भी एक-दूसरे से गुस्सा चल रहे थे। ऐसे में दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त वाली कहावत चरितार्थ की गई। 24 अप्रैल 1970 को चीन ने अपना सैटलाइट लॉन्च भी कर दिया था। इतना ही नहीं, उसने 173 किलो का सैटलाइट लॉन्च करके सबको पीछे छोड़ दिया था। 

इससे पहले विक्रम साराभाई की टीम 100 किलो का सैटलाइट भेजने की तैयारी में थी लेकिन अब सोवियत की शर्त माननी थी। ऐसे में जो सैटलाइट तैयार हुआ उसका वजन 350 किलो हो गया। तैयारी के बीच ही दिसंबर 1971 में विक्रम साराभाई को हार्ट अटैक आया और उनकी मौत हो गई। अब यह काम सतीश धवन के जिम्मे आ गया। मिशन में कोई दिक्कत न हो इसलिए पीएम इंदिरा गांधी ने बिना कोताही किए 3 करोड़ का बजट मंजूर कर दिया। तय हुआ कि 1974 में भारत अपना सैटलाइट लॉन्च करेगा।

 

आर्यभट्ट ने रचा इतिहास

भारत पहली बार यह काम कर रहा था, वैज्ञानिकों को अनुभव भी नहीं था ऐसे में काम थोड़ा देरी से हो पा रहा था। अब लॉन्च की तारीख भी आगे बढ़ गई। मार्च 1975 में सैटलाइट तैयार हुआ और पीएम इंदिरा गांधी ने इसका नाम आर्यभट्ट रखा।

 

हालांकि, तब तक भारत इसे खुद से लॉन्च करने में सक्षम नहीं था। ऐसे में सैटलाइट लेकर सतीश धवन और यूआर राव समेत उनकी टीम रूस पहुंच गई। 19 अप्रैल 1975 को जैसे-जैसे रूसी रॉकेट आर्यभट्ट को लेकर आसमान की ओर उठा, वैसे-वैसे भारत का सीना गर्व से चौड़ा होता गया और एक लंबे सफर का पहला मजबूत कदम दर्ज हो गया। आर्यभट्ट सिर्फ 4 दिन तक ही सिग्नल भेजा लेकिन वे चार दिन भारत को पर्याप्त सक्षम बना चुके थे।