लंबे समय से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है। पिछले लगभग डेढ़ साल से इजरायल और हमास का संघर्ष जारी है और अब ईरान और इजरायल आमने-सामने हैं। ईरान पर इजरायल के हमले से इस पूरे क्षेत्र में खलबली मच गई है। दुनियाभर में इस क्षेत्र से कच्चे तेल की सप्लाई होती है और भारत भी कच्चे तेल के लिए इस क्षेत्र पर निर्भर है। ऐसे में अब चिंताएं बढ़ रही हैं कि क्या भारत में भी कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने वाली हैं? इन मामलों पर भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेस्वरन ने कहा है कि ईरान और इजरायल का संघर्ष भारत के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि पिछले एक हफ्ते में कच्चे तेल की कीमतें 73-74 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं। केरल के तिरुवनंतपुरम में बुधवार को मीडिया से बातचीत में उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध का जिक्र का करते हुए कहा कि पहले भी ऐसा हुआ था, ऐसे में यह देखना होगा कि कितने समय तक कीमतें बढ़ती हैं और कितनी बढ़ती हैं। 

 

भारत के लिए अच्छी बात फिलहाल यही है कि इस संघर्ष में इराक शांत है क्योंकि सबसे ज्यादा तेल वहीं से आता है। इस क्षेत्र में भारत इराक के अलावा, सऊदी अरब, कुवैत, ओमान और UAE से भी भारत खूब तेल का आयात भी करता है। रूस और यूक्रेन का युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूस से भी तेल का खूब आयात किया है। हालांकि, अब ईरान-इजरायल के बीच संघर्ष बढ़ने और बाकी देशों के रुख के चलते भारत की चिंताएं बढ़ रही हैं। इसकी बड़ी वजह होरमुज जलसंधि है क्योंकि खाड़ी देशों से भारत की ओर आने वाले जहाज होरमुज से होकर गुजरते हैं और डर है कि अगर ईरान पर हमले बढ़ते हैं तो वह इस रास्ते को ही बंद कर दे।

 

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भारत की अर्थव्यवस्था पर बयान जारी करते हुए चीफ इकनॉमिक अडवाइजर वी अनंत नागेस्वरन ने कहा है, 'इजरायल और ईरान के बीच की मौजूदा स्थिति हमारे लिए अच्छी नहीं हो सकती है। पिछले एक हफ्ते में हमने देखा है कि कच्चे तेल की कीमतें 73-74 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई हैं जबकि यह 60 डॉलर के आसपास थी और हम उम्मीद कर रहे थे कि 60 के नीचे भी जा सकती है। इसकी वजह यह थी कि OPEC देश जुलाई में उत्पादन बढ़ाने जा रहे थे। ऐसे में अगर यह सब लंबा चलता है तो कच्चे तेल के मामले में भारत की चिंताएं बढ़ सकती हैं।'

भारत पर कितना होगा असर?

 

उन्होंने आगे कहा, 'हालांकि, हमें याद रखना चाहिए कि जब साल 2022 में रूस और यूक्रेन का युद्ध शुरू हुआ, तब कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से भी ऊपर चली गई थीं। इसके बावजूद भारत के विकास की दर 7 पर्सेंट के आसपास बनी रही थी। बढ़ी हुई कीमतें 3-4 महीने तक ही थी, उसके बाद कीमतें कम हो गई थीं, ऐसे में यह सब इस पर निर्भर करता है कि कीमतें कितनी बढ़ती हैं और कितने समय तक ये सब जारी रहता है। जहां तक टैरिफ की बात है तो उससे भारत को ज्यादा नुकसान की गुंजाइश नहीं है लेकिन अभी इस पर ज्यादा कुछ कहना संभव नहीं है।'

 

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तेल की सप्लाई पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, 'रूस और यूक्रेन के युद्ध के समय भी भारत बीच का रास्ता निकालने में कामयाब रहा था और यह सुनिश्चित किया गया था कि भारत को पर्याप्त कच्चा तेल मिलता रहे। हम पूरा क्रेडिट नहीं देते हैं कि भारत ने उन दो-तीन साल में क्या किया। हमारे प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों ने प्रयास किए ताकि सप्लाई न रुके। सभी देश चाहते हैं कि वे भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखें और यही इस समय भी भारत के लिए अच्छी बात है।'

 

2008 जैसा हाल होने वाला है?

 

वी अनंत से एक सवाल यह भी पूछा गया कि क्या 2008 की आर्थिक मंदी जैसा हाल होने वाला है? इस पर उन्होंने जवाब दिया, '2008 का साल दुनिया के लिए बड़ी आर्थिक मंदी वाला समय था। अभी के लिए यह कहना सही नहीं होगा कि मौजूदा स्थिति 2008 जैसी हो सकती है लेकिन निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि फिलहाल बहुत अनिश्चितता की स्थिति है। हो सकता है कि आर्थिक विकास में अचानक गिरावट न आए लेकिन लंबे समय में थोड़ी-थोड़ी गिरावट हो सकती है। यह कई साल तक चल सकता है और हो सकता है कि इसका औसत असर 2008 की आर्थिक मंदी से ज्यादा हो।'

 

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