10 साल देश के प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार को निधन हो गया। उन्हें रात 8.06 बजे दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था। रात 9.51 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। मनमोहन सिंह 92 साल के थे और लंबे वक्त से बीमार थे। राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार होगा।


मनमोहन सिंह को आर्थिक सुधारों का श्रेय दिया जाता है। 1991 में जब वो वित्त मंत्री थे, तभी भारतीय अर्थव्यवस्था को खोला गया था। 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। 


उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा, 'भारत ने अपने सबसे सम्मानित नेताओं में से एक डॉ. मनमोहन सिंह जी क खो दिया है। साधारण पृष्ठभूमि से उठकर उन्होंने एक सम्मानित अर्थशास्त्री के रूप में अपनी पहचान बना। उन्होंने वित्त मंत्री सहित सरकार के कई अहम पदों पर अपनी सेवाई दीं और आर्थिक नीति पर गहरी छप छड़ी। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की बहुत कोशिश की।'


मनमोहन सिंह अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे। वो कम बोलते थे, लेकिन जब बोलते थे तो दुनिया उन्हें सुनती थी। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक बार कहा था, 'जब डॉ. सिंह बोलते हैं, खासकर आर्थिक मुद्दों पर, तो दुनिया उन्हें सुनती है।'

राजनीति में कैसे आए थे मनमोहन?

26 सितंबर 1932 को जन्मे मनमोहन सिंह का ब्यूरोक्रेसी में करियर तब शुरू हुआ, जब उन्हें कॉमर्स मिनिस्ट्री में बतौर एडवाइजर की नौकरी मिली। मनमोह सिंह 1982 से 1985 तक आरबीआई के गवर्नर भी रहे। 


1985 से 1990 तक मनमोहन सिंह योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे। उसी वक्त उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सामने एक प्रेजेंटेशन दिया। मनमोहन सिंह का फोकस गांव और गरीब थे, जबकि राजीव गांधी का विजन शहरी विकास था।


मनमोहन सिंह के प्रेजेंटेशन पर राजीव गांधी भड़क गए थे। उन्होंने सबके सामने मनमोहन सिंह को फटकार भी लगाई थी। अगले दिन जब मीडिया वालों ने राजीव गांधी से योजना आयोग को लेकर सवाल किया तो उन्होंने इसे 'जोकरों का समूह' बताया था।

ऐसे बने प्रधानमंत्री

2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने समय से पहले चुनाव करवाने का फैसला लिया। उन्हें वापसी की उम्मीद थी, मगर ऐसा हुआ नहीं। 'शाइनिंग इंडिया' के नारे के साथ उतरी बीजेपी बुरी तरह हारी। कांग्रेस की अगुवाई वाला यूपीए सबसे बड़ा गठबंधन बना। 


जब यूपीए को बहुमत मिला तो प्रधानमंत्री पद पर पशोपेश चलती रही। राहुल गांधी नहीं चाहते थे कि सोनिया प्रधानमंत्री बनें। उन्हें डर था कि अगर सोनिया प्रधानमंत्री बनीं तो उनके साथ भी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी जैसा हो सकता है। 


18 मई 2004 को सोनिया गांधी जब राजीव गांधी की समाधि पर पहुंची तो उन्होंने तय किया कि वो प्रधानमंत्री नहीं बनेंगी। हालांकि, कांग्रेस के अमूमन सभी बड़े नेता सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। जब सरकार बनाने और प्रधानमंत्री के नाम का ऐलान करने की पशोपेश चल रही थी, तब मनमोहन सिंह सोनिया गांधी के आसपास ही थे। आखिरकार कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह का नाम आगे बढ़ाया। 

सोनिया का रहा था दखल

22 मई 2004 को मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। हालांकि, उनकी सरकार में सोनिया गांधी का हमेशा दखल रहा। मनमोहन सिंह के सलाहकार रहे संजय बारू अपनी किताब 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में लिखते हैं कि मनमोहन सिंह ने माना था कि सोनिया गांधी सत्ता का केंद्र हैं और उनकी सरकार पार्टी के प्रति जवाबदेह है।