फरवरी 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कहा था कि मनरेगा को कभी खत्म मत करो, क्योंकि यह यूपीए सरकार की विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है। इसके लगभग 10 साल और 10 महीने बाद मोदी सरकार एक ऐसा बिल लेकर आई है, जो मनरेगा को खत्म कर देगा। सरकार ने इसे 'विकसित भारत- गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)' यानी VB-G RAM G नाम दिया है। यही बिल जब कानून बन जाएगा तो मनरेगा की जगह ले लेगा।

 

मनरेगा को यूपीए सरकार 2005 में लेकर आई थी। इसका पूरा नाम महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी ऐक्ट था। गांवों में रहने वालों की एक आजीविका तय हो सके, इसके लिए इस कानून को लाया गया था। कानून में प्रावधान था कि साल के कम से कम 100 दिन काम दिया जाएगा। काम के बदले में इन्हें मजदूरी भी मिलेगी।

 

अब नया VB-G RAM G बिल जो लाया गया है, उसमें 100 की बजाय 125 दिन काम देने का वादा किया गया है। हालांकि, नए बिल में बहुत सारी चीजें ऐसी हैं, जो मनरेगा में नहीं थीं। इसलिए विपक्ष को इस पर आपत्ति है। मसलन, नए वाले में प्रावधान है कि इसका पैसा केंद्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर देंगे। पहले पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की थी।

 

विपक्ष आरोप लगा रहा है कि इस बिल से मनरेगा खत्म हो जाएगा। वहीं, सरकार का कहना है कि नया कानून ग्रामीण भारत के विकास को मजबूती देगा। सरकार यह भी तर्क दे रही है कि मनरेगा में तो 100 दिन के रोजगार की गारंटी थी लेकिन हम 125 दिन काम देंगे। हालांकि, जो सरकार 125 दिन रोजगार देने का दावा कर रही है, उसके ही आंकड़े बताते हैं कि गांवों में लोगों को औसतन 50 दिन ही काम मिल रहा है।

 

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कितने दिन काम दे रही है सरकार?

मनरेगा कानून की धारा 3 कहती है कि राज्य सरकार गांवों में रहने वाले हर परिवार के वयस्क सदस्य को हर साल कम से कम 100 दिन का रोजगार देगी।

 

इसमें यह भी था कि जिन इलाकों में सूखा पड़ता है या प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, वहां के गांवों के लोगों को 100 दिन के अलावा 50 दिन और काम दिया जाएगा। प्रावधान यह भी था कि काम मांगने पर 15 दिन के भीतर काम नहीं मिलता है तो बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा।

 

यह अनस्किल वर्क होता है। यानी ऐसे काम जिनके लिए किसी खास स्किल की जरूरत नहीं होती है। इसके लिए उन्हें मेहनताना मिलता है। केंद्र सरकार हर साल न्यूनतम मजदूरी भी तय करती है।

 

कानून तो कहता है कि कम से कम 100 दिन काम देना जरूरी है लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहते हैं। संसद में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री कमलेश पासवान ने मनरेगा के तहत मिलने वाले काम को लेकर कुछ आंकड़े बताए थे। उन्होंने जो आंकड़े रखे थे, वह बताते हैं कि देशभर में मनरेगा के तहत औसतन 50 दिन ही काम मिल रहा है।

 

उन्होंने 2020-21 से 2024-25 के बीच 5 साल का आंकड़ा दिया था। इसके मुताबिक, 2024-25 में मनरेगा के तहत औसतन 50 दिन ही काम दिया गया था। वहीं, मनरेगा डैशबोर्ड पर मौजूद डेटा बताता है कि 2025-26 में इस योजना के तहत औसतन 36 दिन ही काम दिया गया है।

 

 

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...तो कितनों को मिला 100 दिन काम?

मनरेगा में अब तक लगभग 27 करोड़ लोग रजिस्टर्ड हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो देश की 18 फीसदी से ज्यादा आबादी मनरेगा के तहत रजिस्टर्ड है।

 

अब तक दो ऐसे मौके जाए हैं जब मनरेगा ने देश को संभाला है। पहली बार 2008 की मंदी में। और दूसरी बार कोविड महामारी के दौर में। दोनों ही बार मनरेगा ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जिंदा रखा, जिसने भारत को मंदी के संकट में आने से बचाया।

 

ग्रामीण विकास राज्य मंत्री कमलेश पासवान ने 12 दिसंबर को संसद में बताया था कि 2024-25 में 6.32 करोड़ परिवारों ने काम मांगा था, जिनमें से 99.84 फीसदी परिवारों को काम दिया गया था। इसका मतलब हुआ कि काम मिलने वाले लगभग सभी लोगों को काम मिल रहा है। पर सवाल उठता है कि 100 दिन काम कितनों को मिल रहा है?

 

मनरेगा डैशबोर्ड का डेटा बताता है कि 2024-25 में 5.78 करोड़ परिवारों ने काम किया था। इसमें से सिर्फ 40.70 लाख परिवारों को ही 100 दिन काम मिला था। यानी, सिर्फ 7 फीसदी परिवारों को ही 100 दिन काम दिया गया।

 

इसी तरह 2025-26 में 4.74 करोड़ परिवारों को मनरेगा के तहत काम दिया गया। इसमें से सिर्फ 7.27 लाख परिवारों को ही पूरे 100 दिन काम दिया गया। इस हिसाब से सिर्फ 1.5 फीसदी परिवारों को ही 100 दिन काम मिला।

 

 

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और मजदूरी कितनी मिल रही?

मनरेगा के तहत मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी केंद्र सरकार तय करती है। 2025-26 में औसतन न्यूनतम मजदूरी 267 रुपये है।

 

सबसे ज्यादा मजदूरी हरियाणा में मिलती है। हरियाणा में मनरेगा मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी 400 रुपये तय है। इसके बाद गोवा है, जहां 378 रुपये की मजदूरी है। कर्नाटक में 370 रुपये, केरल में 369 रुपये और पंजाब में 346 रुपये है। उत्तर प्रदेश में 252 और बिहार में 255 रुपये मजदूरी मिलती है।

 

2023-24 में इस योजना के जरिए हर दिन औसतन 235 रुपये की मजदूरी मिली थी। 2024-25 में यह बढ़कर 252 रुपये हो गई और 2025-26 में 267 रुपये।

 

अगर हिसाब लगाया जाए तो एक मजदूर को 2025-26 में सालाना औसतन 267 रुपये की मजदूरी मिली। एक मजदूर ने औसतन 36 दिन काम किया तो सालभर में उसे लगभग 9,612 रुपये की कमाई हुई। अगर यही 100 दिन काम किया होता तो उसे 26,700 रुपये तक की कमाई हो सकती थी।

 

एक बात यह भी है कि मनरेगा का बजट लगातार कम भी होता गया। 2020-21 में केंद्र सरकार ने 61,500 करोड़ रुपये का बजट रखा था। हालांकि, कोविड के कारण मनरेगा में काम करने वालों की संख्या बढ़ी और सरकार ने 1.11 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड जारी किया।

 

डेटा बताता है कि 5 साल में मनरेगा के लिए केंद्र की ओर से रिलीज होने वाला फंड 23 फीसदी तक कम हो गया है। 2020-21 में केंद्र ने जहां 1.11 लाख करोड़ रुपये का फंड दिया था, वही 2024-25 में 86 हजार करोड़ रुपये से भी कम हो गया।

 

2025-26 में केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिए 86 हजार करोड़ रुपये का बजट रखा था। अब तक सरकार 69 हजार करोड़ रुपये जारी कर चुकी है।

 

 

इतना ही नहीं, मनरेगा का पूरा खर्च केंद्र सरकार ही उठाती थी। मजदूरी का खर्च तो केंद्र सरकार ही देती थी। जबकि, किसी काम में लगने वाले सामान की लागत को 75:25 के अनुपात में बांटा जाता है।

 

5 दिसंबर को केंद्रीय मंत्री कमलेश पासवान ने राज्यसभा में बताया था कि मनरेगा के तहत सभी राज्यों की 13,200 करोड़ रुपये से ज्यादा की देनदारी केंद्र पर बकाया है। इसमें से लगभग 3,145 करोड़ रुपये मजदूरी का बकाया है। वहीं, 9,616 करोड़ रुपये से ज्यादा की देनदारी मटैरियल कॉस्ट की बकाया है।

 

अब नए बिल में इस योजना का सारा खर्च केंद्र और राज्य में बंटेगा। केंद्र सरकार 60 फीसदी तो राज्य सरकार 40 फीसदी खर्च करेगी। विपक्ष का कहना है कि इससे राज्यों पर आर्थिक बोझ पड़ेगा और आखिरकार यह योजना बंद हो जाएगी।