उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि सीबीआई के सेलेक्शन में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया कैसे भाग ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि इस पर ‘पुनर्विचार’ किया जाए।

 

उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल में बोलते हुए कहा कि ऐसी प्रक्रिया लोकतंत्र के अनुरूप नहीं है। धनखड़ ने कहा, 'हमारे जैसे देश में या किसी भी लोकतंत्र में, वैधानिक निर्देश के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश सीबीआई निदेशक के चयन में कैसे भाग ले सकते हैं?'

क्या है कानूनी तर्क

उन्होंने कहा, 'क्या इसके लिए कोई कानूनी तर्क हो सकता है? मैं इस बात की सराहना कर सकता हूं कि वैधानिक कानून ने आकार लिया क्योंकि उस समय की कार्यपालिका ने न्यायिक फैसले के आगे घुटने टेक दिए थे। लेकिन अब इस पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है। यह निश्चित रूप से लोकतंत्र के साथ मेल नहीं खाता। हम भारत के मुख्य न्यायाधीश को किसी कार्यकारी नियुक्ति में कैसे शामिल कर सकते हैं!'

 

1990 में संसदीय कार्य मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का जिक्र करते हुए धनखड़ ने कहा कि तब सुप्रीम कोर्ट में आठ जज थे।

 

उन्होंने कहा, 'अक्सर ऐसा होता था कि सभी आठ जज एक साथ बैठते थे (एक बेंच पर बैठकर किसी मामले की सुनवाई करते थे)...जब सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या आठ थी, तब अनुच्छेद 145(3) के तहत यह प्रावधान था कि संविधान की व्याख्या पांच या उससे अधिक जजों की बेंच करेगी।'

 

उन्होंने कहा, 'कृपया ध्यान दें, जब यह संख्या आठ थी, तब यह (संवैधानिक बेंच का आकार) पांच था। और संविधान देश की सर्वोच्च अदालत को संविधान की व्याख्या करने की अनुमति देता है।'

संविधान निर्माताओं की भावना का सम्मान होना चाहिए

उपराष्ट्रपति ने कहा,'अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान के निर्माताओं के मन में जो भावना थी, उसका सम्मान किया जाना चाहिए, उपराष्ट्रपति ने आगे कहा।

 

उन्होंने कहा, 'अगर मैं अंकगणितीय रूप से विश्लेषण करता हूं, तो उन्हें पूरा यकीन था कि व्याख्या न्यायाधीशों के बहुमत से होगी, क्योंकि तब (कुल) संख्या आठ थी। वह पांच ही है। और (कुल न्यायाधीशों की) संख्या चार गुना से अधिक है।'

 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145(3) में कहा गया है कि संविधान की व्याख्या से संबंधित मामले पर कम से कम पांच न्यायाधीशों की सुनवाई आवश्यक है।

 

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