राजस्थान के जैसलमेर में कुछ दिन पहले अजीबोगरीब घटना हुई। यहां मोहनगढ़ नहरी क्षेत्र के 27 बीड़ी बाहला में ट्यूबवे की खुदाई के दौरान अचानक प्रेशर के साथ पानी बहने लगा। कुछ ही देर में बोरवेल मशीन के साथ ट्रक जमीन में धंस गया। पानी की ऐसी धार फूटी कि 10 फीट जमीन धंस गई। ये सब हुआ 28 दिसंबर की सुबह 10 बजे। पानी का बहाव लगभग 36 घंटे बाद 29 दिसंबर की रात 10 बजे बंद हुआ।
क्या हुआ था?
बीजेपी नेता विक्रम सिंह के खेत में बोरवेल की खुदाई की जा रही थी। करीब 850 फीट की खुदाई के बाद अचानक तेज प्रेशर के साथ पानी निकलने लगा। पानी की धारा जमीन से 4 फीट तक ऊंची उठ रही थी।
पानी के तेज बहाव के कारण आसपास की जमीन 10 फीट तक धंस गई। कुछ देर बाद 22 टन वजनी बोरवेल मशीन और ट्रक इसमें समा गए। बताया जा रहा है कि आसपास 20 फीट चौड़ा गड्ढा हो गया था। जैसे-तैसे बोरवेल मशीन पर काम करने वाले कर्मचारियों की जान बचाई जा सकी।
पानी का तेज बहाव आने के बाद यहां 500 मीटर के दायरे में किसी के भी आने पर पाबंदी लगा दी गई है। 29 दिसंबर की रात को पानी का बहाव बंद हो गया। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि कभी भी यहां पानी की धार फिर से निकल सकती है।
पानी निकला कैसे?
बोरवेल की खुदाई के दौरान पानी के साथ-साथ गैस भी निकल रही थी। इसके बाद न सिर्फ 500 मीटर का इलाका खाली कराया गया, बल्कि ONGC की टीम को भी यहां बुलाया गया। ONGC की टीम ने बताया कि यहां से निकल रही गैस सामान्य है, इसलिए घबराने की बात नहीं है।
भूजल वैज्ञानिक डॉ. नारायणदास इणखियां ने मीडिया को बताया कि मोहनगढ़ और नाचना के इलाकों में जमीन के नीचे अपारगम्य चट्टानें हैं। इन्हें आम भाषा में मुल्तानी मिट्टी या क्ले कहा जा सकता है।
डॉ. इणखियां ने बताया कि 27 बीड़ी बाहला के इस क्षेत्र में 200 मीटर तक पानी मिल जाता है, लेकिन इस जगह पानी नहीं मिलने पर इसे और खोदा गया। ज्यादा खोदने की वजह से इन अपरागम्य चट्टानों की परतें टूट गईं और जमीन का पानी प्रेशर के साथ बाहर आ गया।
बिना पंप के कैसे बाहर आता है पानी?
आमतौर पर जब जमीन से पानी निकालना होता है तो बोरवेल खोदी जाती है। इसके लिए जमीनी सतह से 1 हजार से 2 हजार फीट तक की खुदाई की जाती है। इसके बाद पंप के जरिए पानी को खींचकर पानी निकाला जाता है।
हालांकि, कई बार ऐसा भी होता है जब पानी बिना किसी पंप के ही बाहर आने लगता है। उसकी वजह गैस होती है। जैसलमेर में भी गैस के कारण ही पानी अचानक से प्रेशर के साथ बाहर आया था।
असल में, जमीन के नीचे मीथेन, कार्बन डाई ऑक्साइड या प्राकृतिक गैस होती हैं। जब जमीन के नीचे पानी ऐसी जगह हो, जहां गैस का दबाव बहुत ज्यादा हो तो गैस दबाव के कारण पानी को ऊपर की ओर धकेलती है। जब ऐसी जगह पर गड्डा खोदा जाता या जमीन में दरार आ जाती है तो दबाव रिलीज होता है और पानी बाहर आ जाता है। कई बार ये दबाव बहुत ज्यादा होता है, जिस कारण पानी के बाहर आने की रफ्तार बहुत तेज होती है।
जमीन से पानी कैसे बाहर आ जाता है?
जब भी कोई गड्ढा या बोरवेल खोदी जाती है तो वहां से पानी निकलने लगता है। इसकी वजह ग्राउंडवाटर है। अमेरिका की एक रिपोर्ट बताती है कि पृथ्वी पर जितना भी पानी है, उसका सिर्फ 1.7% ही ग्राउंडवाटर है। हालांकि, जितना ग्राउंडवाटर है, उसका 30 फीसदी से ज्यादा साफ पानी है।
ब्रिटेन सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि जब जमीन के नीचे मौजूद चट्टानों और मिट्टी में पानी का स्तर बढ़ जाता है तो ये लीक होने लगता है। ज्यादा लीक होने पर कई बार ये तेज रिसाव के साथ जमीन पर आ सकता है। कई बार इससे बाढ़ भी आ सकती है।
क्या है इसके पीछे का विज्ञान?
जब भी बारिश होती है या बाढ़ आती है तो उसके बाद पानी जमीन के नीचे चला जाता है। इसे ही ग्राउंडवाटर कहा जाता है। जमीन के नीचे कई फीट अंदर पानी मौजूद है। इसलिए जब भी बोरवेल या कुआं खोदा जाता है तो पानी बाहर आ जाता है।
इसे ऐसे समझिए कि जब भी गड्डा खोदते समय आप उस स्तर तक पहुंच जाते हैं, जिसके नीचे की जमीन पूरी तरह से पानी से भरी है तो पानी ऊपर आने लगता है। इसे वाटर टेबल यानी जलमग्न सतह कहा जाता है। ये ज्यादातर उन जगहों पर होता है जहां आसपास नदी या तालाब होता है।
इसके अलावा, ये इस बात पर निर्भर करता है कि मिट्टी किस तरह की है। अगर किसी ऐसी जगह खुदाई हो रही है, जहां जमीन के नीचे की मिट्टी रेतीली, बालू या मुल्तानी है तो यहां से आसानी से पानी बाहर आ सकता है। वो इसलिए क्योंकि ऐसी मिट्टी में पानी जल्दी रिसता है और बाहर आ जाता है।
आखिर में स्प्रिंग क्या होता है?
जब अंडरग्राउंड वाटर प्राकृतिक तरीके से जमीन से बाहर आने लगता है तो इसे स्प्रिंग या झरना कहा जाता है। स्प्रिंग असल में पानी के नैचुरल सोर्सेस होते हैं। जब जमीन में पानी जमा होता है और दबाव में होता है तो ये ऊपर की तरफ बढ़ने लगता है और सतह पर आ जाता है। प्राकृतिक तरीके से पानी आमतौर पर तब बाहर निकलता है, जब आसपास दबाव हो या फिर मिट्टी या चट्टान में दरार हो।
ये दो तरह के होते हैं। पहला- हॉट स्प्रिंग और दूसरा- कोल्ड स्प्रिंग। हॉट स्प्रिंग में तापमान सामान्य वातावरण की तुलना में कहीं ज्यादा गर्म होता है। जबकि, कोल्ड स्प्रिंग में पानी सामान्य से 20 डिग्री ज्यादा ठंडा हो सकता है।