पाकिस्तान सरकार पहलगाम में हुए आतंकी हमले की अंतरराष्ट्रीय जांच चाहती है। जम्मू-कश्मीर के बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी। अब पाकिस्तान चाहता है कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर जांचकर्ता, यह जांच करें कि पहलगाम में क्या हुआ था। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ की मांग है कि पहलगाम हिंसा की जांच, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर की जाए।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा है, 'पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत ने निराधार आरोप लगाए, लेकिन ये बंद होना चाहिए. हम मामले की निष्पक्ष जांच में हर प्रकार का सहयोग देने के लिए तैयार हैं।'
भारत ने इस हमले में पाकिस्तान का हाथ होने का दावा किया है। पाकिस्तान ने एक सिरे से इन आरोपों का खंडन किया है। पहलगाम में हुए हमले की जिम्मेदारी द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली है। गृह मंत्रालय के मुताबिक TRF पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का ही एक हिस्सा है।
भारत सरकार ने साल 2023 में गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित किया है। भारत ने पाकिस्तान पर गंभीर आरोप लगाते हुए सिंधु जल समझौते को सस्पेंड कर दिया है, पाकिस्तानी नागिरकों के वीजा रद्द कर दिए हैं, दोनों देशों के उच्चायोगों के कर्मचारियों की संख्या को घटाकर 30 तक सिमटाने का फैसला किया है।
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क्यों वैश्विक जांच चाहता है पाकिस्तान?
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक इंटरव्यू में कहा, 'पाकिस्तान इस युद्ध को भड़कने नहीं देना चाहता, क्योंकि यह क्षेत्र के लिए विनाशकारी होगा। TRF का लश्कर-ए-तैयबा से कोई संबंध नहीं है और LeT अब निष्क्रिय है। LeT के बचे हुए लोग या तो नजरबंद हैं या हिरासत में हैं और उनके पास पाकिस्तान नियंत्रित कश्मीर से हमले की योजना बनाने या उसे अंजाम देने की क्षमता नहीं है।'
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का दावा है कि भारत ने बिना सबूत और बिना जांच के ही पाकिस्तान को दोषी ठहरा दिया। भारत ही बढ़ते तनाव की वजह है। ऐसी घटना की वैश्विक स्तर पर जांच होनी चाहिए।

भारत और पाकिस्तान के बीच कब-कब जांच की कवायद
1947-48: जब पाकिस्तान ने कब्जाया भारत का एक हिस्सा
साल 1947 में भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर युद्ध छिड़ा। पाकिस्तान ने कबायली हमलावरों के बहाने हमला किया। भारत ही संयुक्त राष्ट्र गया।
नतीजा: नियंत्रण रेखा पर सहमति। न जनमत संग्रह हुआ, न जांच का कुछ हल निकला।
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1999: कारगिल युद्ध
पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों ने कारगिल में घुसपैठ की। जंग हुई, 500 से ज्यादा हिंदुस्तानी सैनिक शहीद हुए। 3000 पाकिस्तानी मारे गए।
नतीजा: पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा, पाकिस्तान ने कदम वापस खींचे, जांच नहीं लेकिन पाकिस्तान की आलोचना हुई।

2001: संसद हमला
13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हमला, 9 लोग मारे गए। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को जिम्मेदार ठहराया गया। भारत ने जांच की मांग की।
नतीजा: जांच नहीं शुरू हो सकी, कवायद खूब हुई।
2008: मुंबई हमला
मुंबई हमले में पाकिस्तानी आतंकियों ने 166 लोगों को मार डाला। लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद का नाम सामने आया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में मुद्दा उठाया, जांच की मांग की। अजमल कसाब के पाकिस्तानी होने का सबूत भी दिया गया।
नतीजा: संयुक्त राष्ट्र ने लश्कर-ए-तैयबा और कुछ अन्य आतंकियों पर प्रतिबंध लगाए। पाकिस्तान ने वैश्विक दबाव में जांच शुरू की लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई जांच नहीं हुई। कोई नतीजा नहीं निकला।

2016: उरी अटैक
18 सितंबर, 2016 को जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के शिविर आतंकी हमला हुआ। जैश पर आरोप लगे। 19 सैनिक मारे गए। भारत ने जांच की मांग की।
नतीजा: भारत ने LoC पर सर्जिकल स्ट्राइक की। संयुक्त राष्ट्र तक बात पहुंची। कोई जांच नहीं हुई।

2019: पुलवामा अटैक
14 फरवरी, 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में CRPF के काफिले पर आत्मघाती हमले में 40 जवान मारे गए। जैश-ए-मोहम्मद ने हमले की जिम्मेदारी ली। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) में जांच की मांग की।
नतीजा: जैश की निंदा UN में हुई, मसूद अजहर को 'ग्लोबल टेररिस्ट' घोषित किया गया, FATF ने ग्रे लिस्ट में रखा, कोई जांच नहीं हुई। भारत ने भी बालाकोट में एयरस्ट्राइक की।
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2025: पहलगाम अटैक
22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए। भारत ने द रेसिस्टेंस फ्रंट को जिम्मेदार ठहराया है। यह लश्कर-ए-तैयबा का मोर्चा माना जाता है।
नतीजा: पाकिस्तान ने हमले पर स्वतंत्र जांच की मांग की है। भारत ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है।
क्यों बेअसर रहती है ऐसी जांच?
दीवान लॉ कॉलेज में इंटरनेशनल लॉ पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर निखिल गुप्ता ने कहा, 'दो संप्रभु देश, तनाव की स्थिति में एक-दूसरे का सहयोग करेंगे, ऐसा उदाहरण इतिहास में नहीं मिलता है। भारत और पाकिस्तान के बीच गहरे मतभेद हैं। नए दौर में भी करगिल से पुलवामा तक, हर बार ऐसी जांच की मांग उठी लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। वजह यह है कि दोनों देशों ने किसी भी वैश्विक कानून पर इस तरह की जांच के लिए आम सहमति दी ही नहीं है। ऐसी जांच सिर्फ दोनों देशों की एकजुट मंशा पर ही निर्भर करती है। कश्मीर के संदर्भ में इस आम सहमति का जमीन पर उतर पाना और मुश्किल है।'
अन्य वजहों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, 'दोनो देश, जांच में एक-दूसरे का सहयोग नहीं करेंगे। वैश्विक संस्थाओं का भी सहयोग नहीं करेंगे। डोजियर नहीं सौपेंगे। पाकिस्तान एक तरफ आतंकी संगठनों को संरक्षण देता है, भारत का आतंक विरोधी रुक है। भारत कश्मीर मुद्दे का दोषी पाकिस्तान को मानता है। दोनों देशों की खुफिया एजेंसियां एक-दूसरे की दुश्मन हैं। ISI और R&D का टकराव जगजाहिर है। ऐसे में दोनों देशों के बीच कोई वैश्विक जांच हो, यह अभी संभव नहीं लगता है।'