देश में खरीफ फसलों की बुवाई का सीजन चल रहा है लेकिन कई राज्यों में किसानों को यूरिया और डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) जैसे जरूरी फर्टिलाइजर की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में खाद पाने के लिए किसान को लंबी-लंबी कतारों में देखा गया। स्थिति यह देखी गई कि कई जगह पर जब किसान थक गए तो उन्होंने कतारों में अपने अपने बोरे या बैग को रख दिया। कई जगह पर महिलाएं भी कतारों में लगी हुई दिखीं। किसानों के बीच मारपीट की घटनाएं भी देखने को मिलीं।

 

इसको लेकर विपक्ष भी सरकार पर हमलावर हो रहा है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेता उमंग सिंघार ने कहा कि पहले तो किसानों को बिना मानक वाले बीज बेचे गए और अब उन्हें फर्टिलाइजर की कमी से जूझना पड़ रहा है। खाद नहीं मिल पाने की वजह से फसल की बुवाई पर असर पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि अगर फसलों में समय पर खाद नहीं डाली गई तो वे खराब हो जाएंगी।

 

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इसके अलावा हर साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच भी, जब किसान रबी की बुवाई में जुटते हैं, तब भी देश के कई हिस्सों से यह खबरें आती हैं कि किसानों को डीएपी (DAP), यूरिया और पोटाश जैसी जरूरी खादों के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ रहा है। कई बार हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि पुलिस तैनात करनी पड़ती है।

 

2022 से 2024 के बीच राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में खाद संकट ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर हलचल मचा दी थी। सवाल उठता है कि जब देश में हर साल खाद की मांग और खपत का अनुमान लगाया जाता है, तो ऐसा संकट बार-बार क्यों पैदा होता है? क्या यह सिर्फ डिस्ट्रीब्यूशन का मामला है, या इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार, नीतिगत विफलता, लॉजिस्टिक कमजोरी और भ्रष्टाचार जैसे गहरे कारण हैं? 

 

खबरगांव इस लेख में इन्हीं बातों की तह तक जाने की कोशिश करेगा और खाद से जुड़े संकट के हर पहलू की पड़ताल करेगा।

खाद की कितनी जरूरत?

भारत में खाद की खपत मुख्यतः दो मौसमों में होती है- खरीफ (जून–सितंबर) और रबी (अक्टूबर–मार्च)। खरीफ के दौरान धान (चावल), मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंगफली, सोयाबीन, कपास, और गन्ना की फसलें आती हैं जबकि रबी की फसलों में गेहूं, चना, सरसों और आलू जैसी फसलें शामिल हैं।

 

2025 में अनुमान के मुताबिक उर्वरक की मांग 330.03 लाख टन आंकी गई है जिसमें से 185 टन यूरिया, 56.99 लाख टन डाई-अमोनियम फॉस्फेट, 11.13 लाख टन म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) और 76.51 लाख टन कॉम्प्लेक्स शामिल है। इस मौसम में कुल खाद की मांग का लगभग 45% हिस्सा उपयोग होता है। बारिश होने से भूमि में नमी अधिक होती है, इसलिए उर्वरक की खपत अपेक्षाकृत कम होती है।

खाद संकट के पीछे प्रमुख कारण

खाद के लिए होने वाले इस संकट के पीछे कई कारण है-

 

अंतरराष्ट्रीय निर्भरता

भारत कुल डीएपी का लगभग 60% आयात करता है, मुख्य रूप से चीन, मोरक्को और रूस से। पोटाश (MOP) की लगभग 90% आपूर्ति कनाडा, रूस और जॉर्डन से होती है। वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद 2022 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में खादों की कीमतों में 200–300% तक बढ़ोतरी हुई। इससे समय पर आयात और भुगतान में देरी हुई, जिसका सीधा असर खाद की आपूर्ति पर पड़ा।

 

वैकल्पिक खाद का कम उपयोग

भारत सरकार यूरिया को भारी सब्सिडी देती है, जिससे इसकी कीमत किसानों के लिए बहुत कम रहती है। यह सब्सिडी ₹266 प्रति बोरी है। इससे यूरिया का अंधाधुंध उपयोग होता है। यूरिया के ज्यादा प्रयोग की वजह से मिट्टी की गुणवत्ता गिरती है साथ ही वैकल्पिक उर्वरकों की मांग भी कम ही रहती है। इसके अलावा डीएपी की कीमत में सरकारी नियंत्रण कम है, जिससे कई बार किसान केवल सस्ती यूरिया के भरोसे रह जाते हैं।

 

डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम की विफलता

खाद की आपूर्ति कई स्तरों पर होती है: केंद्र → राज्य → जिला गोदाम → सहकारी समिति/डीलर। किसी भी कड़ी में देरी से संकट पैदा होता है। उदाहरण के लिए, 2023 में मध्य प्रदेश में डीएपी का राज्य कोटा देर से मिला, जिससे फर्टिलाइजर मिलने में देरी हुई।

इसके अलावा किसानों तक डिस्ट्रीब्यूशन में तकनीकी अड़चनें भी आती हैं। कई जगह PoS मशीन खराब या आधार ऑथेंटिकेशन विफल हो जाता है।

 

कालाबाज़ारी और जमाखोरी

खाद संकट को कई बार कृत्रिम रूप से पैदा किया जाता है। गोदामों में खाद होने के बावजूद डीलर ‘स्टॉक खत्म’ का बहाना बना लेते हैं। खाद को औद्योगिक उपयोग या अन्य राज्यों में अधिक कीमत पर बेचने की शिकायतें भी सामने आई हैं। यूरिया का उपयोग केमिकल इंडस्ट्री में भी होता है, जो किसानों के कोटे में कटौती कर देता है।

 

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इस बार कमी की क्या हैं खास वजहें

हालांकि, इस बार फर्टिलाइजर की कमी की कुछ अन्य वजहें भी हैं। जैसे कि चीन जो कि डीएपी का सबसे बड़ा निर्यातक है उसने भारत को निर्यात लगभग बंद कर दिया है और लगातार निर्यात को सीमित किया जा रहा है। इस कारण से भारत की डीएपी आयात की मात्रा FY 2024–25 में घटकर \~0.84 मिलियन टन रह गई, जबकि पिछले वर्ष यह लगभग 2.29 मिलियन टन थी।

 

मिडिल ईस्ट संकट

मिडिल ईस्ट संकट के चलते पारंपरिक स्वेज नहर का रास्ता बंद हुआ है। इसकी वजह से जहाजों को केप ऑफ गुड होप से लंबा रास्ता तय करना पड़ता है इससे न केवल ट्रांजिट का वक्त बढ़ा है बल्कि इसकी लागत भी बढ़ गई है।

 

घरेलू उत्पादन में गिरावट

भारत DAP का लगभग 40% घरेलू उत्पादन करता है, लेकिन फॉस्फोरिक एसिड जैसे कच्चे माल की कमी के कारण उत्पादन गिर कर लगभग 40.15 लाख टन (अप्रैल–अक्टूबर 2024) रह गया, जो पिछले साल 42.96 लाख टन था।

 

डिमांड-सप्लाई मिसमैच

खरीफ सीज़न (जून-अक्टूबर) और रबी सीज़न (अक्टूबर–मार्च) में खाद की मांग बहुत तेज होती है, खासकर अक्टूबर–दिसंबर में रबी की शुरुआत में, लेकिन आयात और उत्पादन दोनों ही समय पर न हो पाने के कारण इसमें कमी देखने को मिल रहा है।

 

सरकार की क्या कोशिश?

केंद्र सरकार ने किसान को सस्ते दर पर खाद उपलब्ध कराने के लिए सब्सिडी सीधे कंपनी को देने के लिए PoS मशीन आधारित डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम लागू किया है। इससे पारदर्शिता बढ़ी है, लेकिन आधार, नेटवर्क और तकनीकी दिक्कतों से छोटे किसानों को परेशानी होती है।

 

साथ ही सरकार ने देश में फॉस्फेट और यूरिया संयंत्रों की स्थापना पर जोर दिया है। गोरखपुर, सिंदरी और बरौनी यूरिया संयंत्र को दोबारा शुरू किया गया। IFFCO द्वारा विकसित नैनो यूरिया को बढ़ावा दिया जा रहा है जो एक बोतल में पूरी बोरी जितना प्रभाव देता है, लेकिन अभी तक इसका व्यापक उपयोग नहीं हो पाया है, और कई किसान इसके असर को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं।

 

क्या किया जा सकता है?

समय पर खाद की आपूर्ति के लिए मौसम के अनुसार पहले से योजना बनाने की जरूरत है। साथ ही खाद वितरण की योजना को फसल चक्र और मौसम पूर्वानुमान से जोड़ना से भी जोड़ने की जरूरत है। राज्यों को भी इसमें ध्यान देते हुए समय पर कोटा आवंटन और ट्रैकिंग सिस्टम विकसित करना होगा।

 

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खाद स्टॉक की रियल-टाइम मॉनिटरिंग और पब्लिक डैशबोर्ड पर खाद की उपलब्धता की जानकारी लाइव शेयर करने की भी जरूरत है। इसके अलावा वैकल्पिक उर्वरकों को भी बढ़ावा देने की जरूरत है जैसे कि जैविक खाद, नैनो यूरिया और फसल अवशेष आधारित खाद को सस्ते और सुलभ बनाना होगा।