13 जनवरी से चल रहे प्रयागराज के महाकुंभ में देश दुनिया के तमाम लोग पहुंच रहे हैं लेकिन माला बेचने वाली मोनालिसा ने अपनी सुंदरता, आंखों और मुस्कान से कुंभ में चार चांद लगा दिए। सोशल मीडिया के जरिए उनकी खुबसूरती की चर्चा अब देशभर में हो रही हैं। सुंदरता और शालीनता से महाकुंभ में लोगों के दिलों पर कब्जा करने वाली मोनालिसा पारधी समुदाय से आती हैं। राजघरानों के लिए शिकार करने से लेकर ब्रिटिश शासन के दौरान 'क्रिमिनल ट्राइब्स' कहलाए जाने तक, पारधियों को एक साहस और दृढ़ता से देखा गया। ऐसे में आइये जानें पारधी समुदाय की अनकही कहानी जहां से मोनालिसा का है संबंध!

 

पारधी समुदाय कौन?

पारधी शब्द संस्कृत के पक्षी या शिकार से लिया गया है, जिसका मतलब है 'शिकारी'। यह राजस्थानी राजपूत की जाति हैं जो महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश समेत देश के अन्य हिस्सों में चले गए हैं। पारधी समुदाय के लोग राजस्थानी बोली बोलते हैं और उनके नामों में आमतौर से सिंह लगाया जाता है। शिकार और गुरिल्ला युद्ध में माहिर यह समुदाय बैल पर सवारी करना पसंद करते हैं। इस समुदाय के लोग जहां भी जाते हैं, वहां उनकी भाषा स्थानीय भाषा से मिक्स हो जाती है। 

 

क्या कहता है इतिहास?

पारधी समुदाय का मूल पेशा पक्षियों और जंगली जानवरों का शिकार करना और उन्हें पकड़ना था। वे पारंपरिक रूप से अपने शिकार कौशल के लिए जाने जाते थे और राजा-महाराजाओं के दरबार में उनका विशेष स्थान रहता था।

 

ब्रिटिश शासन के दौरान कैसी थी स्थिति

ब्रिटिश काल में 1871 के 'क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट' के तहत पारधी सहित कई घुमंतू और शिकारी समुदायों को 'आपराधिक जनजाति या 'क्रिमिनल ट्राइब्स' घोषित कर दिया गया था। इससे उनकी छवि को गहरा नुकसान पहुंचा और उन्हें सामाजिक भेदभाव और अत्याचार का सामना करना पड़ा। हालांकि, स्वतंत्रता के बाद इस कानून को रद्द कर दिया गया लेकिन इसका प्रभाव आज भी समुदाय पर देखा जा सकता है।

 

पारधी समुदाय को कई ग्रुप में बांटा गया है, जैसे:

बिहारी पारधी
गोंड पारधी
भील पारधी
शिकारी पारधी


क्या है वर्तमान स्थिति?

पारधी समुदाय अब शिकार पर निर्भर नहीं है, क्योंकि जंगली जानवरों का शिकार कानूनी रूप से बैन हैं। अब यह समुदाय खेतिहर मजदूरी, छोटे व्यापार, कारीगरी और अन्य मजदूरी पर निर्भर है। इसके बावजूद पारधी समुदाय सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर है। यह अभी भी शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे बुनियादी अधिकारों से वंचित है। बता दें कि कई राज्यों में पारधी समुदाय को अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में बांटा गया है जो कि राज्यों के आधार पर अलग- अलग हो सकता है। 

 

पारधी समुदाय का शिक्षा का स्तर भी न के बराबर है। हालांकि, कुछ गैर-सरकारी संगठन (NGO) और सरकारी योजनाएं पारधी समुदाय के लिए काम कर रही हैं लेकिन उनका प्रभाव अभी सीमित है। पारधी की संस्कृति की बात करें तो यह समुदाय अभी भी विभिन्न स्थानीय भाषाएं और बोलियां बोलता है, जैसे मराठी, हिंदी, तेलुगु, या कन्नड़। यह अपनी बोलियों और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाने जाते हैं। पारधी समुदाय अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में पूजा को बहुत महत्व देते है। इनके त्योहार भी अक्सर वन्यजीवन और प्रकृति से जुड़े होते हैं।

 

किन चुनौतियों का सामना कर रहा यह समुदाय

'क्रिमिनल ट्राइब्स' का पुराना ठप्पा अभी भी उनके खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा देता है। कई बार वे छोटे अपराधों के लिए बिना सबूत के ही दोषी मान लिए जाते हैं। पारधी समुदाय भारत के उन समुदायों में से है, जिनका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक योगदान महत्वपूर्ण है लेकिन उन्हें सामाजिक और आर्थिक विकास में पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाए हैं। अगर उन्हें सही शिक्षा, रोजगार और अधिकारों का समर्थन मिले तो वे समाज की मुख्यधारा में सम्मानजनक जगह हासिल कर सकते हैं।