उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संतों ने एक बार फिर मांग उठाई है कि मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना चाहिए। विश्व हिंदू परिषद, 70 के दशक से ही ऐसे मुद्दे उठाते रहा है। संगठन की मांग है कि धार्मिक स्थलों पर सरकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
24 से 27 जनवरी के बीच प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद की एक बैठक हो रही है। बैठक में मार्गदर्शक मंडल के सदस्य शामिल होंगे। देश के दिग्गज धर्मगुरुओं को इस बैठक में जगह दी जाएगी।
सवाल यह उठता है कि सरकारी मंदिरों पर किस नियम के तहत सरकारों का कंट्रोल होता है। आखिर कौन सी ऐसी विधायी शक्तियां हैं, जिनकी जरिए सरकारों को मंदिरों पर नियंत्रण के अधिकार मिलते हैं।
किस तरह के धार्मिक स्थलों का नियंत्रण सरकार के पास है?
केवल हिंदू पूजा स्थलों पर नियंत्रण अभी सरकार के हाथों में है। मुसलमान और ईसाइयों के धार्मिक स्थलों का नियंत्रण, उनके धार्मिक संस्थान, बोर्ड या ट्रस्ट करते हैं। हिंदू धर्म के तहत सिख, बुध और जैन मंदिर भी आते हैं।

कई राज्यों में ऐसे कानून बने हैं, जिससे मंदिरों पर राज्य का अधिकार हो सके। अयोध्या के राम मंदिर से लेकर आंध्र प्रदेश के तिरुपति तक कई मंदिर ऐसे हैं, जिनका प्रशासनिक नियंत्रण सरकार के हाथों में है। ओडिशा का जगन्नाथ मंदिर भी सरकारी नियंत्रण में है, काशी विश्वनाथ मंदिर भी।
अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग कानून
तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में कई बड़े मंदिर सरकारी नियंत्रण हैं। साधु-संतों का एक बड़ा तबका, मंदिरों पर सरकारी कंट्रोल से मुक्ति मांग करता रहा है। तमिलनाडु में मंदिरों के प्रबंधन के लिए हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग है। तिरुपति मंदिर का संचालन तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम करता है, जिसे प्रमुख की नियुक्ति राज्य सरकार करती है।
मंदिरों से अर्जित आय का होता क्या है?
राज्य सरकारें, मंदिरों के लाभांश का एक हिस्सा लेती हैं। दान और चढ़ावे के जरिए मिली राशि का इस्तेमाल मंदिर के रखरखाव, कल्याणकारी योजनाओं और धार्मिक कार्यों के लिए होता है।
किन राज्यों के पास हैं मंदिरों के नियंत्रण का कानून?
उत्तर प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, महाराष्ट्र और ओडिशा जैसे राज्यों के पास मंदिरों के नियंत्रण का कानून है। कई राज्यों में अलग-अलग धार्मिक संस्थाओं और बोर्ड के सरकारी कानून हैं। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सौरभ शर्मा बताते हैं कि यूपी में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 लागू है, जिसके तहत मंदिर का प्रबंधन सरकार करती है। माता वैष्णव देवी मंदिर का नियमन और कश्मीर श्री माता वैष्णो देवी मंदिर अधिनियम 1988 के प्रावधानों के तहत होता है।

राज्य सरकारों के नियंत्रण के पीछे कानून क्या है?
संविधान के अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की बात करता है। इस अनुच्छेद का उपबंध 2 कहता है, 'इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विद्यमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से नहीं रोकेगी जो धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलाप का नियमन या निर्बन्धन करती है। सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक प्रकार की हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं के सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करती है।'
हिंदू मंदिर सरकारी नियंत्रण में कैसे आए?
धार्मिक संस्थानों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र की समवर्ती सूची में है। मतलब इस पर केंद्र और राज्य सरकारें, दोनों नियम-कानून बना सकती हैं। भारत में करीब 30 लाख पूजा स्थल हैं। मंदिर अर्थव्यवस्था के केंद्र थे। राजाओं और प्रशासकों की जमीन पर इनका निर्माण हुआ। सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के बाद अंग्रेजों ने इस पर नियंत्रण करने की कोशिश की।
ब्रिटिश राज में 1810 से 1817 तक अंग्रेजों ने मद्रास और बॉम्बे की प्रेसिडेंसियों में कुछ कानून बनाए, जिनके जरिए वे मंदिर प्रशासन में ही दखल देने लगे। साल 1863 में धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम बनाया गया। मंदिरों का नियंत्रण अधिनियम के तहत नियुक्त समितियों को सौंप दिया गया।
CPC और ट्रस्टी एक्ट के जरिए अरसे तक इसका नियंत्रण रहा। रिलीजियस सेटलमेंट एक्ट और गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 के जरिए राज्य सरकारों को नियंत्रण मिला। आजादी के बाद कुछ हद तक इन नियमों को यथावत रखा गया। मद्रास हिंदू धार्मिक और द मद्रास हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट एक्ट, 1951 इस संबंध का पहला एक्ट था। बिहार में भी ऐसे ही कानून बने। राज्यों की ओर से तर्क दिए गए कि ऐसे कानूनों की जरूरत है, जिससे मंदिरों पर हर वर्ग की हिस्सेदारी हो।

मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण समाप्त करने की मांग कितनी पुरानी है?
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (RSS) ने साल 1959 में पहली बार मांग उठाई कि मंदिरों का प्रशासन सरकार के हाथों से मुक्त हो। काशी विश्वनाथ मंदिर से यह मांग उठाई गई थी। विश्व हिंदू परिषद और अन्य संगठनों ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। साल 1970 से ही इस मुद्दे पर सियासत करती आई है। रह-रहकर मांग उठती रहती है कि हिंदुओं का संत समाज ही मंदिरों का नियंत्रण अपने हाथों में ले। कुछ बीजेपी नेताओं ने भी इसकी मांग उठाई थी।
जोखिम क्या हैं?
सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता रुपाली पंवार बताती हैं कि अगर सरकारों का नियंत्रण देश के प्रमुख मंदिरों से हट जाएं तो धार्मिक स्थल भ्रष्टाचार और वर्चस्व की जंग का अखाड़ा बन जाएंगे। निजि हितधारकों की पहली कोशिश होगी कि कैसे किसी मठ या मंदिर की अध्यक्षता मिल जाए। जैसे मंदिरों और मठों पर कब्जे की कवायद अयोध्या और वाराणसी जैसे शहरों में अरसे तक चली, वैसा ही दौर फिर शुरू हो सकता है। जब ऐसे धार्मिक प्रतिष्ठान सरकार के नियंत्रण में होते हैं तो नए विवाद पैदा होने की आशंका कम होती है।