मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने हिंसा पर पहली बार माफी मांगी है। मणिपुर 3 मई 2023 से हिंसा की आग में जल रहा है। इस हिंसा के 608वें दिन सीएम बीरेन सिंह ने माफी मांगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि नया साल शांति लेकर आएगा और हालात पहले की तरह सामान्य हो जाएंगे।
सीएम बीरेन सिंह ने कहा, 'ये पूरा साल काफी खराब रहा। पिछली 3 मई से जो कुछ हो रहा है, उसके लिए मैं माफी मांगना चाहता हूं। कई लोगों ने अपने करीबियों को खो दिया। कइयों को घर छोड़ना पड़ा। मुझे खेद है। मैं इसके लिए मैं माफी मांगता हूं।'
उन्होंने कहा, 'पिछले 3-4 महीने से राज्य में शांति देखने को मिल रही है। मुझे उम्मीद है कि नए साल में स्थिति सामान्य हो जाएगी। अतीत में जो हुआ, सो हुआ। हमें अब पिछली गलतियों को भूलकर नई जिंदगी की शुरुआत करनी होगी।'
ऐसे में अब जब मणिपुर में हिंसा को लेकर सीएम बीरेन सिंह ने माफी मांग ली है, तो जानना जरूरी है कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि राज्य अब तक धधक रहा है? 3 मई को निकाली गई एक रैली से कैसे पूरी हिंसा भड़क गई थी?
हाईकोर्ट का वो आदेश, जिसे बाद में वापस लेना पड़ा
मणिपुर की आबादी में 53 फीसदी मैतेई हैं। बाकी 40 फीसदी आबादी कुकी-नगा समुदाय है। मणिपुर में कुकी-नगा को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा मिला है। इसलिए लंबे समय से मैतेई समुदाय भी जनजाति का दर्जा मांग रहा था।
मणिपुर के कानून में आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत, पहाड़ी इलाकों में सिर्फ जनजाति ही बस सकती है। मैतेई को जनजाति का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते। जबकि, जनजाति समुदाय से जुड़ी आबादी पहाड़ी के साथ-साथ घाटी वाले इलाकों में भी बस सकती है। मणिपुर में लगभग 90 फीसदी इलाका पहाड़ी है। मैतेई समुदाय का तर्क है कि 53 फीसदी आबादी के लिए 10 फीसदी जमीन ही है।
यही कारण है कि मैतेई समुदाय जनजाति का दर्जा मांग रहा था। इसे लेकर हाईकोर्ट में याचिका भी दायर हुई। 20 अप्रैल 2023 को मणिपुर हाईकोर्ट ने एक आदेश जारी किया और कहा कि राज्य सरकार 4 हफ्ते में मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग पर विचार करे।
3 मई की रैली, जिसमें भड़की हिंसा
मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश से कुकी-नगा समुदाय नाराज हो गया। इसके विरोध में 3 मई को 'आदिवासी एकता मार्च' के नाम से रैली निकाली गई। ये रैली ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने निकाली थी। इस रैली में कुकी और नगा समुदाय के लोग थे। चुरचांदपुर जिले में निकाली गई इस रैली में आदिवासी और गैर-आदिवासी आपस में भिड़ गए। पुलिस को हिंसा रोकने के लिए आंसू गैस के गोले दागने पड़े। बाद में हालात काबू करने के लिए सेना उतारनी पड़ी।
ऐसी हिंसा जो शांत न हो सकी
2023 की 3 मई को मणिपुर के चुरचांदपुर की रैली से भड़की हिंसा देखते ही देखते पूरे राज्य में फैल गई। मैतेई और कुकी-नगा समुदाय के संगठन लगातार भिड़ रहे हैं। इस हिंसा की आग में हजारों परिवार तबाह हो गए। मणिपुर के सीएम बीरेन सिंह ने बताया कि इस हिंसा में अब तक 250 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। जबकि, हजारों लोग बेघर हो चुके हैं। उन्होंने ये भी बताया कि हिंसा से विस्थापित हुए 2,058 परिवारों को फिर से बसाया गया है।
मुख्यमंत्री ने आंकड़े रखते हुए बताया कि मणिपुर में अब गोलीबारी की घटनाओं में कमी आई है। उन्होंने बताया मई से अक्टूबर 2023 के बीच गोलीबारी की 408 घटनाएं हुई थीं। नवंबर 2023 से अप्रैल 2024 के बीच 345 घटनाएं सामने आईं। जबकि, मई 2024 से 31 दिसंबर के बीच 112 घटनाएं दर्ज की गईं।
उन्होंने बताया कि राज्य में लूटे गए हथियारों में से 3,112 को बरामद भी कर लिया गया है। इस दौरान 2,511 विस्फोटक भी बरामद किए गए हैं। इसके अलावा 12,247 FIR दर्ज हुई है, जिसमें 625 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
पर मैतेई को क्यों चाहिए जनजाति का दर्जा?
मैतेई मणिपुर का सबसे बड़ा समुदाय है। राज्य के 60 में से 40 विधायक मैतेई हैं। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह भी मैतेई समुदाय से आते हैं। मैतेई लोगों का कहना है कि इतनी बड़ी आबादी होने के बाद भी उनका दबदबा सिर्फ 10 फीसदी इलाके पर है। जबकि, 40 फीसदी आबादी का कब्जा 90 फीसदी इलाके पर है। मैतेई समुदाय का दावा है कि 1949 में जब मणिपुर भारत का हिस्सा बना, तब उन्हें जनजाति का दर्जा हासिल था। बाद में मैतेई को एसटी लिस्ट से बाहर कर दिया।