नागालैंड की स्वायत्तता के लिए दशकों से आंदोलन छेड़ने वाले नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड थुइंगालेंग मुइवा 50 साल बाद मणिपुर आए हैं। वह 5 दशक बाद अपने गांव सोमदल लौट रहे हैं, जहां से उनके लीडर बनने की कहानी शुरू हुई थी। मणिपुर के उखरूल जिले में उनका घर है। हजारों की संख्या में लोग वहां जुटने लगे हैं। नागा समुदाय के बड़े नेता को देखने, मणिपुर से लेकर असम तक के लोग पहुंचे हैं।
थुइंगालेंग मुइवा, तंगखुल नागा समुदाय से आते हैं। साल 1960 के दशक में वह नागा आंदोलन में कूद पड़े थे। उन्होंने कई विदेश दौरे किए। वह सरकार के लिए लंबे अरसे तक चुनौती बने रहे। उनके विद्रोह आंदोलनों की वजह से पूर्वोत्तर अरसे तक सुलगता रहा है। साल 1973 में वह एक बाद यह पहली बार हो रहा है, जब वह आधिकारिक तौर पर अपने गांव लौटे हैं।
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थुइंगालेंग मुइवा पर एक क्यों हो गए हैं लोग?
थुइंगालेंग मुइवा, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN) के इकलौते जीवित संस्थापक नेता हैं। किसी जमाने में हिंसक आंदोलनों के लिए कुख्यात थुइंगालेंग मुइवा, साल 1997 के बाद भारत सरकार से विद्रोहियों के साथ युद्धविराम में अहम भूमिका निभा रहे हैं। वह सरकार के साथ नागा समुदाय की बातचीत के पक्षधर भी हैं।
थुइंगालेंग मुइवा एशिया के सबसे कुख्यात उग्रवादी आंदोलनों के सबसे बड़े चेहरे रहे हैं। वह मुइवाह नागालैंड के दीमापुर में रहते हैं। वह हेलीकॉप्टर के जरिए उखरुल जिला मुखअयालय पहुंचे। वहां उन्होंने एक सार्वजनिक सभा हिस्सा लेंगे।
मणिपुर आकर क्या करेंगे थुइंगलेंग मुइवा?
मणिपुर के उखरूल जिले में उनका तय कार्यक्रम है। वह एक सार्वजनिक सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। मुइवा तंगखुल समुदाय के सभी गांवों के मुखिया, नागा स्टूडेंट्स फेडरेशन, यूनाइटेड नागा काउंसिल, नागा होहो और नागा विमेंस यूनियन जैसे संगठनों के प्रतिनिधियो के साथ वार्ता करेंगे। वह अपने गांव सोमदल में एक सप्ताह तक रुकने वाले हैं। थुइंगालेंग मुइवा 29 अक्टूबर को मणिपुर के सेनापति जिले में जाएंगे। यह एक नागा बाहुल जिला है। वह एक सार्वजनिक समारोह में हिस्सा लेंगे।
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थुइंगालेंग मुइवा का दौरा कितना अहम है?
थुइंगालेंग मुइवा ने नागा स्वायत्तता के लिए दशकों तक संघर्ष किया था। वह चीन, म्यांमार, थाईलैंड और नीदरलैंड जैसे देशों का समर्थन जुटा रहे थे। भारत में नागा विद्रोह को दबाने की दिशा में कई कोशिशें हुईं। उन्होंने देश छोड़कर भागना तक पड़ा। अब लोग उनकी घरवापसी को भावनात्मक बता रहे हैं।
तंगखुल शानाओ लॉन्ग की अध्यक्ष थिंग्रेफी लुंगाहरवो:-
नागा लोग अपनी जड़ों और गांव से गहरे जुड़े हैं। थुइंगालेंग मुइवा की वापसी को नागा पहचान से जोड़कर देखा जा रहा है। लंबे अरसे से यह उनकी अधूरी इच्छा रही है। उनकी मौजूदगी से नागा आंदोलन को नई ऊर्जा मिलेगी।
लौटने की कोशिश की लेकिन लौट नहीं पाए
थुइंगालेंग मुइवा ने साल 2010 में यूपीए सरकार के दौरान भी लौटने की कोशिश की थी। सरकार ने उन्हें उखरूल और सोमदल में आने से रोक दिया था। उनकी एंट्री रोकने पर नागा समुदाय के लोगों ने हिंसा की थी। नागालैंड-मणिपुर सीमा पर माओ गेट के पास हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे। कुछ लोगों की मौतें भी हुईं थीं। करीब 100 लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। केंद्र सरकार ने तब उन्हें अपना दौरा टालने के लिए कहा था। अब नागा मूवमेंट थम गया है। सरकार और विद्रोहियों के बीच संघर्ष विराम की स्थिति है। मणिपुर में अब हालात सामान्य हैं। साल 2015 में नागा विद्रोही गुटों और सरकार के संघर्ष विराम समझौते के बाद अब उनका स्थानीय स्तर पर कोई विरोध नहीं हो रहा है। नागा आंदोलन अब शांत पड़ चुका है। गृहमंत्री अमित शाह खुद कह चुके हैं कि पूर्वोत्तर अब 'बम, बंदूक और ब्लकेड' से बहुत आगे निकल चुका है।
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इस दौरे से क्या हो सकता है?
नागा आंदोलन, अपने ढलान पर है। नागालैंड को स्वायत्त करने की मांग कभी पूरी नहीं की जा सकती है। वहां के लोग अब मुख्यधारा में लौट चुके हैं। स्वायत्त प्रशासन की मांग सरकार मानती है। विद्रोही गुट शांत पकड़ चुके हैं। मणिपुर में नागा समुदाय के लोग अरसे से स्वायत्त शासन की मांग कर रहे थे। अब यह मांग भी कमजोर पड़ रही है। अलग बात है कि आंदोलन के सबसे बड़े नेता मुइवा खुद वहां पहुंच रहे हैं तो न समर्थकों में नया उत्साह हो सकता है।'
नागा समुदाय के लोग करेंगे स्वागत
27 अक्तूबर को उखरूल में उनका मोइवा का एक तय कार्यक्रम भी है। उनके गांव सोमदल में मशाल जलाकर उनका स्वागत किया जाएगा। समुदाय के लोग एकजुटता दिखाने के लिए साथ आएंगे।
कौन हैं थुइंगलेंग मुइवा?
थुइंगलेंग मुइवा का जन्म सोमदल में 3 मार्च 1934 को हुआ था। वह एक नागा राष्ट्रवादी नेता हैं और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (आई-एम) के महासचिव हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत नागा नेशनल काउंसिल से की थी। यह संगठन, भारत से नगालैंड के स्वायत्तता के लिए सशस्त्र आंदोलन चला रहा था। वह एनएनसी के महासचिव बने। साल 1975 में जब एनएनसी नेताओं ने भारत सरकार के साथ शिलांग समझौते पर हस्ताक्षर किए तो मुइवा ने इसे विश्वासघात करार दिया। 1980 में थुइंगलेंग मुइवा, इसाक चिशी स्वू और एसएस खापलांग ने एनएनसी से अलग होकर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम का गठन किया।
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यह संगठन शिलांग समझौते के विरोध और नागालैंड की स्वतंत्रता के लिए बनाया गया था। बाद में कई मतभेदों की वजह से NSCN दो गुटों में बंट गया। NSCN (I-M) मुइवा और इसाक के नेतृत्व चर्चा में रहा। एक और संगठन NSCAN (K) खापलांग के नेतृत्व में बना। साल 1997 में थुइंगलेंग मुइवा और सरकार के बीच युद्धविराम समझौता हुआ। दशकों की हिंसक झड़प के बाद 3 अगस्त 2015 को थुइंगलेंग मुइवा और नरेंद्र मोदी सरकार के बीच एतिहासिक शांति समझौता हुआ। तब से लेकर अब तक, उन्होंने विद्रोह और बगावत की राह छोड़ दी है।
क्या चाहता है थुइंगलेंग मुइवा का संगठन?
- नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड - थुइंगालेंग मुइवा (NSCN-IM) का संगठऩ नागालैंड और आसपास के क्षेत्रों में सक्रिय है। यह संगठन भारतीय सरकार से लंबे समय से शांति वार्ताओं के माध्यम से अपनी मांगें उठा रहा है। साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भारतीय सरकार के साथ फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए थे।
- थुइंगालेंग मुइवा एक अरसे तक खुद को 'नागालिम गणराज्य' का प्रधानमंत्री मानते थे। NSCN-IM का जोर इतिहास, संस्कृति और संप्रभुता को मान्यता देने पर आधारित था। यह संगठन नागालैंड, मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश के नागा बाहुल इलाकों के लिए एक अलग झंडा मांगता रहा है। केंद्र सरकार, इसे खारिज करती है।
- नागा बाहुल राज्यों के लिए एक अलग संवैधानिक ढांचे की मांग भी होती रही है, जिसे भारत खारिज करता है। यह संगठन नागालैंड के साथ मणिपुर, असम के कुछ पहाड़ी जिलों और अरुणाचल प्रदेश के नागा बहुल क्षेत्रों का एकीकरण चाहता है, जिससे 'ग्रेटर नागालिम' की मांग पूरी हो। यह संगठन, तीसरे देश का हस्तक्षेप भी चाहता है, जिससे फ्रेमवर्क एग्रीमेंट लागू हो। केंद्र सरकार, इस पर विचार करने के भी पक्ष में नहीं है।