भारत में MBBS, BAMS और BDS जैसे पाठ्यक्रमों की पढ़ाई के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) आयोजित कराया जाता है। हर साल इस परीक्षा में 25 लाख से ज्यादा छात्र शामिल होते हैं। हर किसी की पहली प्राथमिकता होती है कि उसे MBBS के लिए कोई सरकारी कॉलेज मिले।
देश में 700 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज हैं। MBBS की सीटें अभी 1,07,948 के आसपास हैं। सरकारी कॉलेज में एडमिशन के लिए कम से कम 600 नंबर हासिल करने होते हैं। सरकार ने इसे बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। जाहिर सी बात है कि सभी को सरकारी कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल सकता है।
कम सीटें, महंगी पढ़ाई विदेश जाना मजबूरी है!
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट पेश करते हुए कहा था कि 10,000 सीटें बढ़ाई जाएंगी। जिन्हें सरकारी कॉलेज नहीं मिलता है, वे विदेश में पढ़ाई के अवसर तलाशते हैं। ज्यादातर लोग विदेश जाना चाहते हैं क्योंकि भारत में MBBS की प्राइवेट पढ़ाई बेहद महंगी है। प्राइवेट कॉलेजों में 10 लाख से लेकर 25 लाख रुपये सालाना फीस है।
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विदेश में MBBS पर खर्च कितना आता है?
भारत से सस्ती पढ़ाई विदेश में है। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 20 हजार से 25 हजार छात्र MBBS के लिए विदेश जाते हैं। वहां भारत की तुलना में कम खर्च में डिग्री मिल जाती है। भारत में प्राइवेट कॉलेज में MBBS की डिग्री पर अगर होने वाला अनुमानित खर्च अगर 1 से 2 करोड़ रुपये है तो यूक्रेन, रूस, चीन, नेपाल, बांग्लादेश और कजाकिस्तान जैसे देशों में यह खर्च 50 लाख रुपये तक है।
भारत की आबादी 142 करोड़ से ज्यादा है। डॉक्टरों की संख्या, आबादी के लिहाज से बेहद कम है। दिलचस्प बात यह है कि विदेश में कई कॉलेज ऐसे हैं, जिन्हें हिंदुस्तानी उद्योगपति ही चलते हैं। मणिपाल ग्रुप के कई कॉलेज विदेश में हैं। इस ग्रुप के कॉलेज एंटीगुआ और कैरीबिया जैसी जगहों पर भी हैं।
विदेश से पढ़कर लौटने पर भी आसान नहीं है छात्रों की राह
जो छात्र विदेश से पढ़ाई करके लौटते हैं, उन्हें भारत में 'द फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन (FMGE)' देना होता है। इसे स्क्रीनिंग टेस्ट रेग्युलेशन 2002 के जरिए लाया गया था। देश से बाहर मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को इस अधिनिमय की धारा 13 के मुताबिक परीक्षा पास करना अनिवार्य है। तभी उन्हें प्रैक्टिस की इजाजत दी जा सकती है। यह परीक्षा नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन (NBE) की ओर से आयोजित कराई जाती है।
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एक अनुमान के मुताबिक विदेश से पढ़कर आए छात्रों में से करीब 78 फीसदी छात्र यह परीक्षा पास नहीं कर पाते हैं, सिर्फ 22 फीसदी छात्रों को इस परीक्षा में सफलता मिलती है। भारत में प्रैक्टिस करने के लिए उन्हें नेशनल मेडिकल कमीशन या स्टेट मेडिकल काउंसिल की ओर से सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। जब यह परीक्षा छात्र पास कर लेते हैं, तभी उन्हें रजिस्ट्रेशन और प्रैक्टिस करने की इजाजत दी जाती है। इस परीक्षा में बांग्लादेश और नेपाल से पढ़कर आए छात्र, अन्य देशों की तुलना में ज्यादा बेहतर नतीजे देते हैं।
विदेश पढ़ने गए छात्रों की मुश्किलें क्या हैं?
विदेश गए छात्रों को भाषा से लेकर मौसम तक की जटिलताओं से जूझना पड़ता है। आने-जाने पर होने वाला खर्च बहुत ज्यादा होता है। खान-पान की भी दिक्कतें सामने आती हैं। भारतीयों का एक बड़ा तबका शाकाहारी है, विदेश में उन्हें इन परेशानियों से भी जूझना पड़ता है। कई अभिभावक अपनी जमीन बेचकर, लोन लेकर या संपत्ति गिरवी रखकर पैसे लेते हैं और बच्चों को विदेश पढ़ने भेजते हैं।
यूपी के सिद्धार्थनगर में रहने वाले एक परिवार के पास 2 से 3 बीघे खेत थे। पढ़ाई के लिए उन्होंने कई जगहों से कर्ज लिया। जमीन बेची और अब लगभग भूमिहीन होने की स्थिति में पहुंच गए। उनका बेटा यूक्रेन पढ़ाई के लिए गया था। उन्होंने नाम न बताने की शर्त पर कहा, 'मेरा सबकुछ बिक गया था। विदेश से पढ़कर लौटा तो मेन परीक्षा नहीं निकली। 2 से 1 साल लग गया परीक्षा पास होने में। जब तक परीक्षा पास नहीं किया, हमेशा डर ही लगा रहा।'
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कुछ ऐसा ही किस्सा नेपाल में MBBS करने वाले आयुष मिश्रा बताते हैं। उन्होंने कहा, 'भारत में पढ़ाई अच्छी है लेकिन यहां की पढ़ाई बहुत महंगी पड़ती है। यहां के प्राइवेट कॉलेज में पढ़ता तो 1 करोड़ कम से कम लगता। नेपाल में 50 से 55 लाख में डिग्री मिल गई है। अब की तैयारी कर रहा हूं, उम्मीद है कि हो जाएगा।'
नेपाल की राजधानी काठमांडू, धरान और पोखरा जैसे शहरों में MBBS की फीस 55 लाख रुपये हैं। यहां एडमिशन के लिए NEET में या CEE एग्जाम पास करना अनिवार्य है। नेपाल के जनकपुर और भैरहवां जैसी जगहों पर 30 से 35 लाख में भी MBBS की पढ़ाई हो जाती है।