आजादी के बाद से ही असम में कई बार बांग्लादेश से अवैध रूप से आए अप्रवासियों के मुद्दों पर हिंसा देखी गई है। आज भी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर राजनीतिक हंगामा बना हुआ है। ऐसे में असम में हुए सबसे हिंसक विरोध प्रदर्शन की याद आती है जिसे नेल्ली नरसंहार का नाम दिया गया। 18 फरवरी, 1983 को हुए इस नरसंहार में लगभग 2 हजार मुसलमानों को केवल 6 घंटों के भीतर भीड़ ने मार डाला था। नेल्ली नरसंहार को आजाद भारत के सबसे बदनुमा कत्लेआम के रूप में याद किया जाता है।
घुसपैठ और अवैध प्रवासी थे नेल्ली नरसंहार की वजह
नेल्ली नरसंहार की जड़ घुसपैठ और अवैध प्रवासी थे। किसी समय अहोम वंश का शासन होने के कारण असम अंग्रेजो के अधिकार क्षेत्र में आ गया था। धीरे-धीरे बिहार और बंगाल से भी मजदूरों को असम लाया गया और वो यहीं के होकर रह गए। इस बीच असम की सीमा के सटे बांग्लादेश में अवैध प्रवासियों की घुसपैठ हो रही थी। यह लोग भी यहां बसने लगे और वोट का अधिकार भी मिल गया।
क्या था नेल्ली नरसंहार का सबसे बड़ा कारण?
अवैध बांग्लादेशियों को वोट का अधिकार मिलने का विरोध होना शुरू हो गया। 1980 से शुरू हुए इस आंदोलन का नेतृत्व ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसु) और उसके सहयोगी कर रहे थे। इनकी मांग थी कि अवैध प्रवासियों का नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया जाए। तेज चल रहे विरोध प्रदर्शन के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 1983 को असम में विधानसभा चुनाव का एलान कर दिया। आसु ने इस चुनाव का बहिष्कार करने की अपील की, लेकिन उसके बावजूद बंगाली मूल के मुसलमानों ने जमकर वोट डाले। असम में वोट डालकर यह एक तरीके से भारत की नागरिकता का दावा कर रहे थे और यही नेल्ली नरसंहार का सबसे बड़ा कारण बना।
नेल्ली में खेली गई खून की होली
18 फरवरी, 1983 की सुबह नेल्ली में खून की होली खेली गई। महज कुछ ही घंटों के अदंर 2 हजार से अधिक अवैध बांग्लादेशी मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया गया। मरने वालों में महिलाओं और बच्चों की संख्या सबसे अधिक थी। घटना में पुलिस की मिलीभगत की भी बात सामने आई थी। इस वजह से कांग्रेस सरकार हमेशा से सवालों के घेरे में आती रही है। कई रिपोर्ट दर्ज हुए, कई मुकदमे भी हुए, लेकिन आज भी पीड़ित परिवार इंसाफ की गूंज लगाती आ रही है।