सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर गुरुवार को निर्देश दिया कि पूरे देश में ट्रायल कोर्ट किसी भी प्रकार से किसी धार्मिक प्रतिष्ठान के खिलाफ तब तक कोई प्रभावी आदेश या सर्वे का आदेश नहीं जारी करेगी जब तक कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 के मामले में दायर याचिकाओं पर कोई फैसला नहीं आ जाता है।

 

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 (Places of Worship Act, 1991) को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं (पीआईएल) की सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि जब तक भारत सरकार अपना पक्ष इस मामले में दाखिल नहीं करती है तब तक अब आगे सुनवाई नहीं होगी.

 

इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जल्द ही इस पर सरकार अपना पक्ष कोर्ट के सामने रखेगी. शीर्ष अदालत ने कहा इस संबंध में कोई भी नई याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी.

क्या है अधिनियम

पूजा स्थल अधिनियम 1991 के मुताबिक आजादी के पहले जो भी धार्मिक स्थल जिस रूप में था उसी तरह से संरक्षित रखा जाएगा. यह अधिनियम उनमें किसी भी प्रकार के बदलाव पर रोक लगाता है. हालांकि, इस राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले को इस अधिनियम से बाहर रखा गया था.

 

इस मामले में न्यायालय में याचिका दायर करने वालों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता अश्विनी उपाध्याय भी शामिल हैं, जिनकी याचिका पर न्यायालय ने 2021 में नोटिस जारी किया था। उनकी याचिका में कहा गया है कि यह अधिनियम पीड़ित हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को कानूनी रेमेडी देने से रोककर धार्मिक स्थलों पर कब्जा करने वाले आक्रमणकारियों के अवैध कृत्यों को हमेशा के लिए जारी रखने की अनुमति देता है।

राम मंदिर पर क्यों नहीं लागू हुआ

जब यह कानून बनाया गया है तो बाबरी मस्जिद-राम मंदिर का विवाद चरम पर था। ऐसे में इस अधिनियम को लागू करते वक्त संसद ने तय किया कि उस मामले में यह लागू नहीं किया जाएगा। हालांकि बाकी धार्मिक प्रतिष्ठानों के लिए इसे लागू किया गया था। इसी वजह से कानून को रद्द करने की मांग की जा रही है।