बीते दिनों कांग्रेस के सांसद कुलदीप इंदौरा ने ट्रेन के कंबल की धुलाई और चादरों की साफ-सफाई को लेकर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से सवाल किया था। इसके लिखित जवाब में रेल मंत्री ने लोकसभा में बताया था कि एक महीने में कम से कम एक बार ट्रेन के कंबलों की धुलाई होती है। इस जवाब के बाद देश की रेल व्यवस्था को लेकर खूब फजीहत हुई। सोशल मीडिया पर भी बहुत मजाक उड़ाया गया। 

 

दरअसल, एक कंबल को लगभग 30 पैसेंजर ओढ़ते ही है। ऐसे में हाइजिन को लेकर सवाल उठने लगे। इसी कड़ी में अब उत्तर रेलवे ने सफाई देते हुए कहा कि साल 2016 से ही कंबल की सफाई महीने में 2 बार की जाती है। 

उत्तर रेलवे ने क्या कहा?

उत्तर रेलवे ने शनिवार को अपनी ओर से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसके मुताबिक, 'भारतीय रेलवे अपने यात्रियों को स्वच्छ और उच्च गुणवत्ता के बेडरोल देने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए रेलवे बोर्ड अपनी स्पष्ट नीति निर्धारित करती है। कंबल की सफाई का समय 2010 से पहले 3 महीनों से घटाकर 2 महीने कर दिया गया था। 2016 के बाद से इसे और भी कम करते 15 दिन कर दिया गया है। लॉजिस्टिक्स चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में यह 20 से 30 दिन तक बढ़ सकता है।'

15 दिनों में धुलता है कंबल?

एसी कोच में ट्रेन यात्रियों को दिए जाने वाले कंबलों की स्वच्छता को लेकर उत्तर रेलवे ने आगे कहा कि उन्हें हर 15 दिन में धोया जाता है और गर्म नेफथलीन का उपयोग करके उन्हें साफ रखा जाता है। जल्द ही इसके लिए पायलट शुरू किया जाएगा जिसमें जम्मू और डिब्रूगढ़ राजधानी ट्रेनों में सभी कंबलों का यूवी रोबोटिक सैनिटाइजेशन किया जाएगा। बता दें कि यूवी रोबोटिक सैनिटाइजेशन कीटाणुओं को मारने के लिए पराबैंगनी लाइट का उपयोग करता है।

 

उत्तर रेलवे के प्रवक्ता हिमांशु शेखर ने शनिवार को संवाददाताओं को बताया कि गर्म नेफथलीन वाष्प का उपयोग स्टरलाइजेशन का एक प्रभावी तरीका है। उन्होंने कहा कि सूती लिनन को हर उपयोग के बाद लॉन्ड्रियों में धोया जाता है और इन्हें 'व्हिटोमीटर टेस्ट' से गुजरना पड़ता है। जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय रेलवे देश भर में यात्रियों को प्रतिदिन 6 लाख से अधिक कंबल उपलब्ध कराता है और उत्तर रेलवे जोन में प्रतिदिन 1 लाख से अधिक कंबल और बेड रोल वितरित किए जाते हैं।