भारत में 'एक देश-एक चुनाव' की कवायद नई नहीं है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार साल 2014 ही इस योजना को लागू करने का विचार कर रही है। अब नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले एनडी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में एक देश एक चुनाव योजना को लागू करने की दिशा में अहम कदम उठाया है। केंद्रीय कैबिनेट ने एक देश एक चुनाव योजना को मंजूरी दे दी है।

देश के चुनावी इतिहास में यह कदम क्रांतिकारी साबित हो सकता है। नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने इस योजना पर मोहर लगा दी है। सूत्रों के मुताबिक अब इस योजना को संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाएगा। देश में एक साथ चुनाव कराने की दिशा में यह अहम कदम है। 

बुधवार को ही पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा था कि केंद्र सरकार को एक देश एक चुनाव योजना पर एक आम सहमति से कानून लाना चाहिए, जिससे पूरे देश में एक साथ सभी चुनाव कराए जा सकें। इस योजना से देश का सामूहिक भला हो सकता है। 

'क्रांतिकारी साबित हो सकती है यह योजना'

पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद एक देश एक चुनाव पर बनी समिति की अध्यक्षता कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार को इस योजना पर सहमति बनानी होगी। अगर यह योजना लागू होती है तो यह क्रांतिकारी साबित होगी। ऐसा सिर्फ मेरा मत नहीं है, यह अर्थव्यवस्था के जानकार लोग भी कहते हैं। लोगों का कहना है कि अगर ऐसा हुआ तो देश की सकल घरेलू आय (GDP) 1 से 1.5 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।

 

क्या है एक देश एक चुनाव योजना?
सितंबर 2024 में ही केंद्रीय कैबिनेट ने एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव का अनुमोदन किया था। इस योजना का मकसद है कि देश में एक साथ ही लोकसभा, राज्यसभा, नगर निगम और ग्राम पंचायत चुनाव कराए जाएं। 100 दिनों के भीतर ही पूरे देश में चुनाव हो जाएं। 

यह सिफारिशें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च समिति ने की थीं। कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसले का स्वागत किया था और कहा था कि यह भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने वाली बात है।

 

कब आखिरी बार एक साथ हुए थे चुनाव?
आखिरी बार साल 1967 में एकसाथ चुनाव हुए थे। ओडिशा, सिक्किम, आंध्र प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा चुनावों के साथ चुनाव हुए थे।