जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार को हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया गया है। कुछ बंदूकधारी आतंकियों ने पहलगाम के बैसरन में घूमने आए पर्यटकों को नाम पूछकर गोली मार दी। इस हमले में 26 लोगों की मौत हो चुकी है और दर्जनों लोग घायल हैं। इस हमले के बाद स्थानीय लोगों ने मंगलवार को ही कैंडल मार्च निकाले और बुधवार को कई बाजारों को बंद रखा गया है। स्थानीय मीडिया ने भी इस हमले की आलोचना करते हुए अपना विरोध दर्ज कराया है। इस आतंकवादी हमले के विरोध में कई स्थानीय अखबारों ने अपना फ्रंट पेज काला रखा है। 'ग्रेटर कश्मीर', 'कश्मीर उजमा' और 'राइजिंग कश्मीर' जैसे अखबारों ने विरोध जताते हुए अपने फ्रंट पेज को काला रखा है और इसी कि हिसाब से फ्रंट हेडिंग भी दी है।

 

मंगलवार को हुए इस हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना विदेश दौरा बीच में ही छोड़कर भारत लौट आए हैं। देश लौटते ही पीएम मोदी ने वरिष्ठ अधिकारियों से एयरपोर्ट पर ही मीटिंग की और घटना के बारे में जानकारी ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज उन लोगों को श्रद्धांजलि दी जो इस हमले में मारे गए हैं। अमित शाह खुद बैसरन भी गए और घटना के बारे में जानकारी ली। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और तमाम वरिष्ठ अधिकारी भी श्रीनगर में कैंप रहे हैं और लगातार बैठकें हो रही हैं। देश की तमाम राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने भी एक स्वर में इस घटना की निंदा की है।

 

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अखबारों ने काले कर दिए पन्ने

 

इस हमले के विरोध में अधिकतर अखबारों ने सफेद या लाल रंग में प्रभावी शीर्षक दिए तथा एकजुटता और दुःख का सार्वजनिक प्रदर्शन किया, जो इस अमानवीय कृत्य पर निवासियों और मीडिया द्वारा महसूस किए गए सामूहिक दुःख का प्रतीक था। ‘ग्रेटर कश्मीर’, ‘राइजिंग कश्मीर’, ‘कश्मीर उजमा’, ‘आफ़ताब’ और ‘तैमील इरशाद’ सहित प्रमुख अंग्रेजी और उर्दू के दैनिक अखबारों ने अपनी-अपनी स्टाइल में बदलाव करके दशकों से इस क्षेत्र में व्याप्त हिंसा की एक याद दिलाने की कोशिश की है। प्रमुख अंग्रेजी दैनिक 'ग्रेटर कश्मीर’ ने काले लेआउट पर सफेद रंग में शीर्षक दिया, 'ग्रूसम: कश्मीर गटेड, कश्मीरीज ग्रीविंग’ (भयावह: कश्मीर तबाह, कश्मीरी शोक में हैं)।' उसके बाद लाल रंग में उपशीर्षक दिया गया, ‘26 किल्ड इन डेडली टेरर अटैक इन पहलगाम', (पहलगाम में घातक आतंकवादी हमले में 26 लोग मारे गए)।

 

 

अखबार के पहले पन्ने पर संपादकीय का शीर्षक था, 'द मैसकर इन द मेडो - प्रोटेक्ट कश्मीर्स सोल’ (घास के मैदान में नरसंहार - कश्मीर की आत्मा की रक्षा करें)। संपादकीय में कहा गया है कि हमले के कारण जम्मू कश्मीर में मानो मनहूसियत छा गई है। यह एक ऐसा क्षेत्र था जो 'धरती पर स्वर्ग' की अपनी विरासत को फिर से जिंदा करने का प्रयास कर रहा था। संपादकीय में कहा गया है, 'यह जघन्य कृत्य न केवल बेकसूर लोगों पर हमला है, बल्कि कश्मीर की पहचान और मूल्यों- इसके आतिथ्य, इसकी अर्थव्यवस्था और इसके नाजुक अमन चैन को निशाना बनाकर जानबूझकर किया गया हमला है। कश्मीर की आत्मा जाहिर तौर पर इस क्रूरता की निंदा करती है और पीड़ितों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करती है, जो खूबसूरती की तलाश में आए लेकिन त्रासदी पाई।'

 

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संपादकीय में भी पहलगाम हमले की झलक

 

अखबार ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि उन जगहों को भी निशाना बना सकते हैं जहां यातायात की भीड़ रहती है या वैसी जगहें जहां सिर्फ पैदल या खच्चर की मदद से पहुंचा जा सकता है। अखबार ने एजेंसियों के बीच अधिक खुफिया जानकारी और मजबूत समन्वय की आवश्यकता का संकेत देते हुए अधिक से अधिक सक्रिय उपायों, सतर्कता बढ़ाने, समुदायों के बीच जुड़ाव और आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने का आह्वान किया, जो इस तरह की भयावहता को फिर से होने से रोकने के लिए अनिवार्य हैं।

 

अखबार ने लिखा, 'कश्मीर के लोगों ने बहुत लंबे समय तक हिंसा को सहन किया है, फिर भी वे टूटे नहीं हैं। इस हमले से हमें बंटना नहीं है, बल्कि हमें आतंक के खिलाफ एकजुट होना है। हम सरकार, सुरक्षा बलों, नागरिक संगठन और आम नागरिकों, सभी से एक सामूहिक मोर्चा बनाने का आग्रह करते हैं।' संपादकीय में कहा गया है, 'केवल दृढ़ संकल्प से ही हम अपनी सरजमीं के आने वाले कल की रक्षा कर सकते हैं, यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि पहलगाम के ये मैदान गोलियों की आवाज से नहीं, बल्कि हंसी से गूंजें और कश्मीर अमन और खुशहाली का प्रतीक बना रहे।’