पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को फिर से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में डालने का प्रस्ताव रखा है। भारत का मानना है कि पाकिस्तान अभी भी सीमा पार आतंकवाद को समर्थन दे रहा है। भारत अब FATF के 40 सदस्य देशों में से कुछ का समर्थन लेकर पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में वापस लाने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए FATF की प्लेनरी मीटिंग में नामांकन प्रक्रिया शुरू करनी होगी। भारत यह भी चाहता है कि IMF द्वारा पाकिस्तान को दी जा रही 7 बिलियन USD की सहायता पर सवाल उठाए जाए, क्योंकि उसका आरोप है कि पाकिस्तान इन फंड्स का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए कर रहा है। अगर पाकिस्तान फिर से FATF की ग्रे लिस्ट में चला गया तो इससे बहुत मुश्किलें बढ़ सकती है। समझें कैसे...

FATF में पाकिस्तान की रैंकिंग और उसका असर

FATF एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद को वित्तीय मदद और हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए देशों की निगरानी करती है। अगर पाकिस्तान की रैंकिंग खराब होती है यानी वह ग्रे लिस्ट में बना रहता है या ब्लैक लिस्ट में चला जाता है तो इससे देश की मुश्किलें बढ़ सकती है। 

 

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ग्रे लिस्ट में रहने का असर

वैसे तो पाकिस्तान पहले भी 2018 से 2022 तक ग्रे लिस्ट में रहा और हाल के मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत 2025 में उसे फिर से ग्रे लिस्ट में डालने की कोशिश कर रहा है। ग्रे लिस्ट का मतलब है कि देश को मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने में कमजोर माना जाता है। 

असर कितना पड़ेगा?

पाकिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय कर्ज लेना मुश्किल हो जाएगा: IMF, विश्व बैंक, और ADB जैसे संगठन कर्ज देने में पाकिस्तान के साथ  सख्ती करेंगे। 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व बैंक ने पाकिस्तान को 6 बिलियन डॉलर की पहली किस्त देने से मना कर दिया था।

 

निवेश में आएगी कमी: विदेशी निवेशक और कंपनियां पाकिस्तान में निवेश से बचेंगी। 2018 में एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रे लिस्ट में होने से पाकिस्तान को FDI और निर्यात में कमी आई थी।

 

रेमिटेंस पर असर: विदेश से आने वाली रकम (रेमिटेंस) पर सख्त निगरानी होगी। 2020 में एक विश्लेषण के अनुसार, 100,000 USD से ज्यादा की रकम को स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान जांचेगा, जिससे आम लोगों को परेशानी होगी।

 

GDP पर असर: एक थिंक-टैंक (Tabadlab) के अनुसार, 2008-2021 तक ग्रे लिस्ट में रहने से पाकिस्तान को 38 बिलियन USD का नुकसान हुआ, जो उसकी GDP को प्रभावित करता है।

 

बैंकिंग सिस्टम प्रभावित: अंतरराष्ट्रीय बैंकों (जैसे स्टैंडर्ड चार्टर्ड, सिटीबैंक) के लिए पाकिस्तानी बैंकों के साथ लेन-देन जोखिम भरा हो जाएगा, जिससे वे कारोबार बंद कर सकते हैं।

 

प्रतिष्ठा को नुकसान: ग्रे लिस्ट में रहने से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि खराब होती है, जिससे व्यापार और कूटनीति में दिक्कतें आती हैं।

 

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ब्लैक लिस्ट में जाने का असर

अगर पाकिस्तान ब्लैक लिस्ट में चला जाता है तो स्थिति और गंभीर होगी। साल 2010 से 2012 के बीच पाकिस्तान ब्लैक लिस्ट में था। अगर ऐसा दोबारा हुआ तो अंतरराष्ट्रीय लेन-देन पर रोक लग सकती है, जिससे आयात-निर्यात ठप हो सकता है।

 

IMF, विश्व बैंक जैसे संगठन कर्ज देना बंद कर देंगे। मूडीज, S&P, और फिच जैसी एजेंसियां पाकिस्तान की क्रेडिट रेटिंग घटा देंगी, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजारों से कर्ज लेना महंगा और मुश्किल होगा।

 

चीन की निर्भरता बढ़ेगी: 2018 में एक विश्लेषण के अनुसार, ग्रे लिस्ट में होने पर चीन ने पाकिस्तान में निवेश बढ़ाया। ब्लैक लिस्ट में जाने पर पाकिस्तान पूरी तरह चीन पर निर्भर हो सकता है।

 

करेंसी और स्टॉक मार्केट पर असर: पाकिस्तानी रुपये की कीमत गिरेगी और स्टॉक मार्केट में भारी गिरावट होगी। 2018 में ग्रे लिस्ट में जाने के बाद पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज में गिरावट देखी गई थी। आयात महंगा होने से जरूरी सामान की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे महंगाई और बेरोजगारी बढ़ेगी।

 

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भारत को क्या होगा फायदा?

भारत लगातार पाकिस्तान को ब्लैक या ग्रे लिस्ट में डालने की कोशिश कर रहा है, खासकर पहलगाम हमले के बाद तो और भी ज्यादा। अगर पाकिस्तान ग्रे लिस्ट में वापस आता है तो भारत को कूटनीतिक जीत मिलेगी। पाकिस्तान अगर खुद को इस लिस्ट से बचाना चाहता है तो उसे आतंकवादी समूहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी, वरना ब्लैक लिस्ट में जाने का खतरा बढ़ेगा। 2022 में ग्रे लिस्ट से हटने के लिए पाकिस्तान ने हाफिज सईद जैसे आतंकवादियों पर कार्रवाई की थी लेकिन कई समूह अभी भी सक्रिय हैं।