प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर अजमेर शरीफ दरगाह चादर भेजने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद से वह अब तक 10 बार चादर भेज चुके हैं। 11वीं बार भी पीएम मोदी इसी परंपरा को निभाने जा रहे हैं। अजमेर शरीफ पर भी एक संस्था ने दावा किया है कि यह शिव मंदिर है। 

केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू और भारतीय जनता पार्टी (BJP) अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी को शाम 6 बजे यह चादर सौंपी जाएगी। वह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स के दौरान दरगाह पर चादर चढ़ाएंगे। हर साल प्रधानमंत्री की ओर से इस दरगाह पर चादर भेजी जाती है। यह परंपरा पीएम मोदी भी निभाते रहे हैं।

बीते साल 812वें उर्स के दौरान उनकी ओर से तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और जमाल सिद्दीकी के साथ मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले एक प्रतिनिधिमंडल ने चादर चढ़ाई थी। हिंदू संगठनों का एक धड़ा इसी दरगाह को शिव मंदिर बताता रहा है। मामला अब अदालत तक में पहुंच चुका है।

'शिव मंदिर' होने का दावा क्या है?
हिंदू सेना ने एक स्थानीय अदालत में अर्जी डाली थी और कहा था कि अजमेर शरीफ दरगाह, भगवान शिव का मंदिर है। कोर्ट ने हिंदू सेना की यह याचिका स्वीकार कर ली थी। बीते साल मुद्दा जोर-शोर से उछला। स्थानीय अदालत ने सिविल मामले में तीन पक्षों को नोटिस दिया था। हिंदू सेना की याचिका में कहा गया है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के भीतर एक शिव मंदिर भी मौजूद है।  


दहगाह समिति का क्या कहना है?

20 दिसंबर को अजमेर शरीफ दरगाह समिति ने भी अदालत में एक याचिका दायर की। समिति की मांग है कि हिंदू सेना की याचिका खारिज कर दी जाए। इस केस की सुनवाई 24 जनवरी को होने वाली है।

क्या है चादर भेजने की परंपरा?
उर्स उत्सव के दौरान चादर चढ़ाने की परंपरा रही है। मान्यता है कि इस दरगाह पर चादर चढ़ाने से लोगों की मान्यताएं पूरी होती हैं। सूफी संतों से जुड़े स्थलों में अजमेर शरीफ शरीफ दरगाह पर देश के लाखों लोग जुटते हैं। यहां हिंदूओं की भी एक बड़ी आबादी पहुंचती है।  उर्स का आयोजन हर साल ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की पुण्यतिथि पर किया जाता है। हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का 813वां उर्स 28 दिसंबर, 2024 को शुरू हुआ था। लाखों लोग यहां उमड़ रहे हैं।