भारत 2030 तक अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट (GW) तक बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है। नवीकरणीय या रिन्यूएबल एनर्जी का मतलब उस ऊर्जा से होता है, जिसे प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किया जाता है। जैसे पवनचक्की, सौर ऊर्जा या पानी। भारत इस दिशा में आगे भी बढ़ रहा है। साल 2014 से अब तक भारत बिजली की कमी से जूझ रहे देश से बिजली संपन्न देशों भी बन गया है। साल 2014 से अब तक 238 गीगा वॉट बिजली उत्पादन क्षमता और 2,01,088 किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनें जोड़ी गई हैं।

अब अंतर-क्षेत्रीय बिजली ट्रांसफर की क्षमता 1,18,740 मेगावॉट (MW) तक पहुंच गई है। पिछले चार सालों में बिजली की मांग और आपूर्ति का अंतर 0.1% तक कम हुआ है। कुल स्थापित क्षमता 470 GW हो गई है। द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक अभी थर्मल ईंधन और कोयला, डीजल, लिग्नाइट, प्राकृतिक गैस से 12,41,261 मिलियन यूनिट (MU), परमाणु स्रोतों से 51,962 MU, जलविद्युत से 1,39,780 MU और नवीकरणीय स्रोतों से 2,30,868 MU बिजली पैदा होती है। 

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कोयला, थर्मल प्लांट से अलग, कहां से पैदा होती है देश में बिजली

मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी के आंकड़ बाते हैं कि नवीकरणीय ऊर्जा में सौर ऊर्जा से 1,27,339 मिलियन यूनिट, पवन चक्की से 78,214 मिलियन यूनिट, बायोमास से 3,392 मिलियन यूनिट और स्माल हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के जरिए 10,951 मिलियन यूनिट बिजली पैदा होती है। साल 2021-22 में नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान 11.5% था, जो 2024-25 में बढ़कर 13.78% हो गया। इस दौरान कुल बिजली उत्पादन 13,74,024 मिलियन युनिट से बढ़कर 15,46,229 मिलियन यूनिट हो गया है।


कैसे होता है बिजली का बंटवारा?
भारत के राज्य पांच क्षेत्रीय ग्रिड में बंटे हैं। उत्तर, पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और पूर्वोत्तर। 1991 में पूर्व और पूर्वोत्तर ग्रिड को जोड़ा गया, फिर 2003 में पश्चिम और 2006 में उत्तर को जोड़ा गया। साल 2013 में 765 किलोवोल्ट (kV) रायचूर-सोलापुर लाइन की शुरुआत हुई। इससे दक्षिण ग्रिड जुड़ा। अब सारे ग्रिड कनेक्टेड हैं, केवल लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार राष्ट्रीय ग्रिड से नहीं जुड़े हैं। ग्रिड बढ़ने से बिजली की पहुंच भी बढ़ी है। 

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ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच रही बिजली लेकिन इतनी कटौती क्यों?

विद्युत मंत्रालय के मुताबिक देश ने साल 2024 से 25 के दौरान 250 गीगावाट की अधिकतम बिजली की मांग को पूरा किया है। हर व्यक्ति बिजली की खबत 2023-24 में बढ़कर 1,395 किलोवॉट तक पहुंच गई है। साल 2013-14 में यह आंकड़ा सिर्फ 957 किलोवॉट था। देश भर के गांवों और घरों तक विद्युतीकरण हो चुका है। विद्युत मंत्रालय का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की औसत उपलब्धता वर्ष 2014 के 12.5 घंटे से बढ़कर 21.9 घंटे हो गई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में अब 23.4 घंटे तक बिजली उपलब्ध है। क्या हकीकत में ऐसा हो पाता है? अगर सच जानना हो तो अपने आसपास के ग्रामीण इलाकों में रह रहे लोगों से यह सवाल कीजिए। 

भीषण गर्मी में भी बिजली कटौती
उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर में एक पॉवर ग्रिड पर काम करने वाले जेई ने नाम छिपाने की शर्त पर कहा कि जिन जिलों में 18 घंटे न्यूनतम बिजली का आदेश है, वहां कई बार 12 घंटे भी बिजली नहीं मिल पाती है। दिन में ज्यादातर वक्त बिजली कटी रहती है। दोपहर में भी बिजली गुल रहती है। सिद्धार्थनगर के ही कई ग्रामीण इलाकों में रहने वालों लोगों से सवाल किया गया तो उनका कहना था कि दोपहर में बिजली तय शेड्यूल ये ज्यादा कट जाती है। परसिया, अकरा, डफरा, चेतिया, डफरा, अंतरी और गजेहड़ा जैसे दर्जनों गावों का यही हाल है। 

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कितनी मिलनी चाहिए बिजली?

अगर यूपी की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों में 18 घंटे, तहसील स्तर पर 21 और जिला मुख्यालय स्तर पर 24 घंटे बिजली की आपूर्ति होनी चाहिए।

क्यों होती है बिजली कटौती?
बिजली विभाग के एक इंजीनियर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि गर्मी के दिनों में बिजली की मांग बढ़ जाती है। ग्रामीण फीडरों की सीमित क्षमता इस मांग को पूरा नहीं कर पाती है, जिससे लोड शेडिंग होती है। अगर ज्यादा देर तक लगातार बिजली की सप्लाई हो तो कहीं न कहीं फॉल्ट हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पुराने या कम क्षमता वाले ट्रांसफार्मर गर्मी में ज्यादा लोड नहीं झेल पाते। इससे वे गर्म होकर खराब हो जाते हैं, ट्रांसफॉर्मर दगने की भी घटनाएं सामने आती हैं। अभी शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में बिजली तार पुराने हो गए हैं, या कमजोर हो गए हैं, जिनकी वजह से वे टूटते भी हैं। 

कई बार गर्मी में तारों का तापमान बढ़ने या आंधी-तूफान से तार टूटने की घटनाएं बढ़ जाती हैं।बिजली की कमी होने पर बिजली वितरण कंपनियां, शहरी क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में कटौती की जाती है। गर्मी में फॉल्ट और शॉर्ट सर्किट की समस्याएं भी बढ़ जाती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीकी कर्मचारियों की कमी, मेंटिनेंस का बेहतर सिस्टम न होना, कई ऐसी वजहें हैं जो बिजली कटौती के लिए जिम्मेदार मानी जाती हैं। देश में जब-जब कोयले की आपूर्ति प्रभावित होती है, शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों के लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं।