1999 के कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ की पहली सूचना देने वाले लद्दाख के चरवाहे ताशी नामग्याल का 17 दिसंबर को निधन हो गया। भारतीय सेना के लेह स्थित 14 कोर मुख्यालय ने शुक्रवार को एक्स पर उनके निधन को लेकर पोस्ट साझा किया।

 

58 वर्षीय नामग्याल का निधन आर्यन घाटी में हुआ। इस साल की शुरुआत में द्रास में 25वें कारगिल विजय दिवस में भी वह अपनी बेटी त्सेरिंग डोलकर के साथ शामिल हुए थे। बटालिक के पास घरकोन नामक सुदूर गांव में रहने वाले नामग्याल 58 वर्ष के थे। कारगिल युद्ध के एक गुमनाम हीरो के साहस और सतर्कता की बातें किसी इतिहास के पन्ने में दर्ज हो जाएगी।

सेना ने दी श्रद्धांजलि

नामग्याल के निधन पर लेह स्थित फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, 'फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स ताशी नामग्याल के आकस्मिक निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है।' सेना ने आगे कहा, 'लद्दाख का एक बहादुर देशभक्त चला गया। उनकी आत्मा को शांति मिले।'

 

 

ऐसे किया था भारतीय सेना को अलर्ट

3 मई को लद्दाख के बटालिक सेक्टर में जुब्बर लंगपा नदी के किनारे एक लापता याक की तलाश करते समय नामग्याल ने देखा कि पाकिस्तानी सैनिक आम नागरिकों के वेश में नियंत्रण रेखा के भारतीय हिस्से में बंकर खोद रहे थे। दूरबीन की मदद से उन्होंने हथियारबंद लोगों को देखा और तुरंत निकटतम भारतीय सेना चौकी को सूचित किया। उनकी समय पर की गई चेतावनी की पुष्टि तुरंत हो गई, जिससे बड़े पैमाने पर चल रहे पाकिस्तानी ऑपरेशन का पर्दाफाश हो गया।

 

3 मई से 26 जुलाई 1999 के बीच लड़े गए कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों ने तेजी से लामबंद होकर श्रीनगर-लेह राजमार्ग को तोड़ने के पाकिस्तान के गुप्त मिशन को विफल कर दिया था। नामग्याल की सतर्कता ने भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके लिए उन्हें एक वीर चरवाहे के रूप में मान्यता मिली।