अगर आप मार्च-अप्रैल के महीने में केरल घूमने जा रहे है तो एक बार त्रिशूर के श्री कुरुम्बा भगवती मंदिर के दर्शन जरूर कर लीजिएगा। दरअसल, इन दो महीनों के बीच में यहां ‘भरणि’ उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस उत्सव का कई मायने में विशेष महत्त्व होता है, क्योंकि इस त्यौहार में भक्त, महाकाली के स्वरूप भद्रकाली की पूजा नहीं बल्कि अपशब्दों से भरे गीत गाकर मां को प्रसन्न करते हैं। यही नहीं, मंदिर में प्रवेश करने से पहले भक्त अपने हाथों में लाठी लेकर तीन बार मंदिर की परिक्रमा भी करते हैं। मीनम (मार्च-अप्रैल)  में भरणी नक्षत्र के 7 दिन तक यह उत्सव मनाया जाता है।

 

7 दिन चलता है यह अनुष्ठान

इस त्यौहार की शुरुआत 'कोझिक्कल्लू मूडल' नाम के एक अनुष्ठान से शुरू होती है जिसमें लाल कपड़े के ऊपर मुर्गों की बलि दी जाती है। पुराने दिनों में मुर्गों की बलि और उनका खून बहाना एक तरीके से देवी काली और उनके सेवकों को प्रसन्न करने के लिए होता था। इस अनुष्ठान में 'कोडुंगल्लूर भगवती वीडू' के सदस्य भाग लेते है। 'कावु थींडल' जिसे कभी- कभी 'कावु पूकल' भी कहा जाता है, इस त्यौहार का एक और प्रमुख हिस्सा है। भद्रकाली कोडुंगल्लूर के शाही परिवार की संरक्षक होने के नाते कोडुंगल्लूर के राजा को इस उत्सव में शामिल होना बेहद जरूरी होता है। इस दौरान राजा एक बरगद के पेड़ के चारों ओर बने मंच पर खड़े होकर देवी मंदिर के कपाट खुलने के तुरंत बाद एक रेशमी छत्र (छाता) बिछाते हैं। इससे सभी जातियों को पूजा के लिए मंदिर के परिसर में प्रवेश करने की अनुमति मिलती है।

 

देवी भद्रकाली को अपशब्द कहना आम

सनातन हिंदू धर्म में भगवान को जहां सर्वोच्च स्थान दिया गया है और जहां हमें बचपन से ही ईश्वर का सम्मान सिखाया जाता है। वहीं, केरल के इस मंदिर में मां काली को अपशब्द बोलकर मां को प्रसन्न किया जाता है। मां कुरुम्बा की खासियत यह है कि देवी भद्रकाली भक्तों के अपशब्दों से बेहद प्रसन्न होती हैं और यह प्रथा सालों से चलती आ रही है। इस त्यौहार का पहला दिन ‘कोझिकल्लू मूडल’ है। इस दिन विशेष भक्त ‘वेलिचप्पड’अपना रक्त देवी भद्रकाली को समर्पित करते हैं।

 

क्या है मंदिर का इतिहास?

मंदिर का इतिहास काफी रोचक कोडुंगल्लूर भगवती मंदिर के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर का इतिहास भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, परशुराम ने दारुका नाम के एक दैत्य से केरल और यहां के निवासियों की रक्षा के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की थी। महादेव के आदेश अनुसार परशुराम ने यहां एक तीर्थ स्थान का निर्माण कराया और देवी भद्रकाली की पूजा भी की, जिसके बाद देवी काली ने दैत्य का नाश कर दिया। इस तीर्थ स्थान की यात्रा महान संत आदि शंकराचार्य ने भी की है। इस दौरान उन्हें महान शक्तियों का आभास हुआ, जिसे देखते हुए उन्होंने यहां 5 श्रीचक्र स्थापित कर दिए। माना जाता है कि आज भी इन 5 श्रीचक्रों के कारण मंदिर को दिव्य शक्तियाँ प्राप्त हैं। बाद में इस मंदिर को पश्चिमी चेर वंश के राजा चेरमन पेरुमल ने बनवाया था। 

 

कटहल की लकड़ी को खोदकर तैयार की गई प्रतिमा

मंदिर की जानकारीकोडुंगल्लूर भगवती मंदिर का निर्माण लगभग 10 एकड़ भूमि क्षेत्र में बना हुआ है। इसमें केरल की वास्तुशैली को बखूबी प्रदर्शित किया गया है। पीपल और बरगद के पेड़ से घिरे हुए इस मंदिर परिसर के गर्भगृह में सप्तमातृकाएं विराजमान हैं। खास बात ये है कि इन सभी की प्रतिमाएं उत्तरमुखी हैं। इसके अलावा मंदिर में भगवान गणेश और वीरभद्र की मूर्तियां भी स्थापित की गई है। देवी भद्रकाली की आठ भुजाओं वाली प्रतिमा भी उत्तरमुखी है। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन इस प्रतिमा का निर्माण कटहल के पेड़ की लकड़ी पर उकेरकर किया गया है। देवी की आठ भुजाओं में शस्त्रों को भी दिखाया गया है।