किसी भी खदान में खुदाई, एक तय सीमा तक ही की जा सकती है। जब खुदाई तय सीमा तक पहुंच जाती है तो उसे पर्यावरण के हित में बंद कर दिया जाता है। उस सीमा से ज्यादा बढ़ने पर पर्यावरण के साथ-साथ लोगों के जीवन पर भी संकट मंडरा सकता है। अलग-अलग परिस्थितियों में लौह, अभ्रक, अयस्क, चूना पत्थर और कोयला और धातुओं की खदानों से जुड़े नियम कानूनों को तय करने के लिए केंद्र सरकार ने 'द माइंस एक्ट, 1952' बनाया है। इस एक्ट में मजदूरी से लेकर खदानों के रखरखाव तक से जुड़े नियम-कानून तय किए गए हैं। इसके अलावा 'द माइंस एंड मिनिरल्स (डेवलेपमेंट एंड रेग्युलेशन) एक्ट 1957 भी इससे जुड़े नियम कानूनों को देखता है। इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस खदानों की मॉनिटरिंग करता है। 

ये तो हुई नियम कानूनों की बात। अब आइए जानते हैं कि इन खाली पड़े खदानों का इस्तेमाल, किस-किस तरह से हो सकता है। पर्यावरणविद इन खदानों के लिए क्या सुझाव देते हैं। विस्तार से। 

बंद पड़े खदानों का क्या हो सकता है इस्तेमाल?

 

खदानों में खुदाई का काम कई किलोमीटर तक होता है। ये बड़ी और लंबी जमीनें होती हैं। बहुत गहराई तक खुदाई से इनमें धातु निकाले जाते हैं। ये खदानें पर्यटन स्थल से लेकर जल संरक्षण के सबसे बड़े स्रोत के रूप में विकसित की जा सकती हैं। जिन खदानों में काम पूरी तरह बंद हो जाता है, भविष्य में उनमें खुदाई सरकार प्रतिबंधित कर देती है, वहां पर्यावरण संरक्षण के कई अहम उपाय किए जा सकते हैं, वहां पुनर्वास किया जा सकता है, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिल जाए। आइए जानते हैं सरकार, सामान्यतौर पर इन बंद पड़ी खदानों पर किस तरह के काम कराती है।


खनन मंत्रालय, भारत सरकार के मुताबिक खदानों का इस्तेमाल डंपिंग साइट के तौर पर भी किया जा सकता है, जिससे गहराई पाटी जा सके। इन खदानों के खाली पड़े विशाल इलाकों का इस्तेमाल पर्यटन के लिए किया जा सकता है। यहां दूसरा काम या किसी को बसाया नहीं जा सकता है। ऐसे में इन जगहों पर जल का भंडारण किया जा सकता है। मछली पालन किया जा सकता है, जिससे स्थानीय लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार मिल सके। 

 

आमतौर पर खदानों में इस हद तक खुदाई कर ली जाती है, जिसके बाद ये जमीनें बेकार हो जाती हैं। यहां पर्यावरण तंत्र को विकसित किया जा सकता है। यहां प्राकृतिक रूप से जंगल विकसित किए जा सकते हैं। खदान जल भंडारण के अहम सोर्स हो सकते हैं। वर्षा जल का इससे सुरक्षित और संरक्षित इस्तेमाल भी नहीं किया जा सकता है। गहराई और पर्याप्त अंधेरे की वजह से यहां वास्पीकरण की प्रक्रियाएं आसानी से नहीं होती हैं तो साफ जल मौजूद रहता है। इनका इस्तेमाल पीने के पानी के तौर पर किया जा सकता है। खदानों के बड़े हिस्से का उत्पादन सौर ऊर्जा के तौर पर किया जा सकता है। सौर प्लांट स्थापित किया जा सकता है। इन्हें कृषि योग्य जमीनों में भी बदला जा सकता है। 

कहां बंद पड़ी खदानों का हो रहा है सही इस्तेमाल?

 

झारखंड, मध्य प्रदेश, गोवा, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक के बंद पड़े कोयला खदानों का इस्तेमाल अलग-अलग पर्यावरणीय उद्देश्यों के लिए हो रहा है। कुछ खदानों को पर्यटनस्थल के तौर पर विकसित किया जा रहा है, कुछ खदानों को प्राकृतिक पर्यायवास के तौर पर खाली छोड़ दिया गया है। इन खदानों पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की भी नजर होती है। अगर इन खाली पड़े खदानों को बिना कुछ निर्माण किए खाली ही छोड़ दिया जाए तो ये प्रकृति के हित में रहेगा। इन खदानों को देखने, यहां खनन के बाद के परिणामों का अध्ययन करने देश-दुनिया से लोग आते हैं। स्थानीय लोगों के लिए ऐसा पर्यटन, रोजगार के साधन भी लेकर आता है।