प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका की राजकीय यात्रा पर गए हैं। पीएम के इस दौरे के बीच में विवादित कच्चातीवु द्वीप का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। कांग्रेस और डीएमके समेत विपक्षी दलों ने सरकार पर इस मुद्दे को सुलझाने का दबाव बनाया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने गुरुवार को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर 1974 और 1976 में हुए समझौतों के तहत श्रीलंका को सौंपे गए इस द्वीप को वापस लेने की मांग की है।
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि कच्चातीवु द्वीप मामला भारतीय नागरिकों और हमारे मछुआरों के लिए चिंता का विषय बन गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को इस मुद्दे को श्रीलंका के सामने मजबूती से उठाना चाहिए। दरअसल, तमिलनाडु विधानसभा ने 2 अप्रैल को एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें मांग की गई है कि भारत कच्चातीवु द्वीप को वापस से प्राप्त करे।
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मछुआरों की पारंपरिक मछली पकड़ने की जगह
कच्चातीवु द्वीप पाल्क की खाड़ी में भारतीय मछुआरों की पारंपरिक मछली पकड़ने की जगह है। बता दें कि पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके कहा था कि कांग्रेस ने 1970 के दशक में कच्चातीवु को श्रीलंका के हवाले कर दिया था। इसके बाद कच्चातीवु ट्वीप को लेकर देश में राजनीतिक बहस छिड़ गई थी। वहीं, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी उस समय कहा था कि कच्चातीवु ट्वीप के मुद्दे लोगों की नजरों से बहुत लंबे समय तक छिपाकर रखा गया था।
तमिलनाडु के मछुआरों की आजीविका
कच्चातीवु एक छोटा सा द्वीप है, जो तमिलनाडु के मछुआरों की आजीविका चलाता है। कच्चातीवु को मछुआरे अपनी मछली मारने वाली जाल सुखाने और आराम करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। इससे पहले तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता और एम करुणानिधि जैसे नेताओं ने पहले भी केंद्र सरकार के सामने कच्चातीवु द्वीप के मसले को उठाया था। तमिलनाडु आरोप लगाता रहा है कि कच्चातीवु के आसपास के पानी में भारतीय मछुआरों के अधिकारों का हनन हुआ है।
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बता दें कि औपनिवेशिक काल के दौरान इस ट्वीप पर अंग्रेजों का कब्जा था। कच्चातिवु पर रामनाद (अब रामनाथपुरम, तमिलनाडु) के राजा के का अधिकार था, बाद में यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया। 1920 के दशक तक, भारत और श्रीलंका दोनों ने मछली पकड़ने के लिए इस छोटे से द्वीप पर दावा किया था। 1940 के दशक में दोनों देशों को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी दशकों तक कच्चातिवु विवादों में रहा।
हालांकि, पिछले छह सालों में कच्चातिवु के मुद्दे को सुलझाने के प्रयास तेज किए गए हैं।