हमने स्कूलों में हवा से बिजली बनाने का तरीका पढ़ा है। यह एक आम और पुराना तरीका है, जिसमें हवा की ताकत से बड़े-बड़े टर्बाइनों को घुमाकर ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है। अब हवा की मदद से बिजली बनाने के एक नए तरीके पर काम हो रहा है, जिसे 'लिक्विड एयर' कहा जाता है। यह सीधे बिजली पैदा करने की तकनीक नहीं है, बल्कि लंबे समय तक ऊर्जा को सुरक्षित रखने का एक तरीका है। इसे क्रायोजेनिक एनर्जी स्टोरेज भी कहा जाता है। इंग्लैंड के कैरिगटन गांव के पास दुनिया की पहली कमर्शियल-लेवल की लिक्विड एयर एनर्जी स्टोरेज (LAES) सुविधा की स्थापना की जा रही है। यहां स्टोर की गई ऊर्जा का उपयोग जरूरत पड़ने पर, यानी जब मांग सप्लाई से ज्यादा होगी, आसानी से किया जा सकेगा।

 

दुनिया में कई तरीकों पर अनुसंधान चल रहा है। जहां कुछ लोग लिथियम बैटरियों और कुछ पंप्ड हाइड्रो स्टोरेज की ओर रुख कर रहे हैं वहीं एक छोटा लेकिन बढ़ता हुआ उद्योग इस बात पर आश्वस्त है कि इसका एक बेहतर समाधान बैटरियां जो हवा पर निर्भर करती है। अगर यह प्रोजेक्ट सफल रहा तो ऐसे और भी प्रोजेक्ट शुरू होने की उम्मीद है। फिलहाल यह तकनीक महंगी है लेकिन जैसे-जैसे साफ उर्जा के स्टोरेज की जरूरत बढ़ेगी हाईव्यू पावर कंपनी के डेवलपर का मानना है कि चीजें लिक्विड एयर के पक्ष में होंगी।

 

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लिक्विड एयर क्या है?

लिक्विड एयर बिजली बनाने का सीधा स्रोत नहीं है बल्कि यह लंबे समय ऊर्जा भंडारण की एक विधि है। इसे क्रायोजेनिक एनर्जी स्टोरेज भी कहा जाता है। LAES सिस्टम बिजली को संग्रहित करने के लिए हवा को ठंडा करके उसे लिक्विड स्टेट में बदलता है। जब बिजली ज्यादा मात्रा में उपलब्ध होती है तो इस बिजली का उपयोग हवा को ठंडा करने के लिए किया जाता है। हवा को -196°C तक ठंडा करके उसे लिक्विड अवस्था में बदल दिया जाता है। इस लिक्विड एयर को इन्सुलेटेड टैंकों में स्टोर किया जाता है।

 

बिजली उत्पादन

जब बिजली की मांग अधिक होती है तो स्टोर किया हुआ लिक्विड एयर को वातावरण की गर्मी का उपयोग करके फिर से गैसीय अवस्था में लाया जाता है। जैसे ही यह गैस में बदलती है, यह 700 गुना तक फैलती है, जिससे एक हाई प्रेशर बनता है। यह हाई प्रेशर एक टरबाइन को घुमाता है, जो एक जनरेटर से जुड़ा होता है और इस प्रक्रिया से बिजली उत्पन्न होती है।

पवन ऊर्जा और लिक्विड एयर में कनेक्शन

पवन ऊर्जा (हवा से बिजली बनाना) और लिक्विड एयर (बिजली का स्टोरेज) का कनेक्शन नवीकरणीय ऊर्जा को स्थिर बनाने में है। हवा अस्थिर होती है। जब हवा चलती है तभी बिजली बनती है। जब हवा तेज चलती है और अतिरिक्त बिजली बनती है, तो यह अतिरिक्त बिजली लिक्विड एयर स्टोरेज सिस्टम को चार्ज करने में उपयोग होती है। बाद में, जब हवा नहीं चल रही होती, तब स्टोर लिक्विड एयर से बिजली बनाकर ग्रिड में आपूर्ति की जाती है। इस तरह, लिक्विड एयर सिस्टम पवन ऊर्जा से बनी बिजली को 24/7 उपयोग के लिए स्टोर करके ग्रिड को स्थिर करने में मदद करता है।

 

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देश में अब तक ऐसा कोई प्रोजेक्ट?

भारत में LAES परियोजना पर काम चल रहा है, लेकिन यह अभी शुरुआती चरण में है। यूनाइटेड किंगडम की कंपनी बिक्लू पावर ने महाराष्ट्र के पुणे में एक छोटा पायलट प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए एक समझौता किया है। इस परियोजना का उद्देश्य भारत में LAES तकनीक की व्यवहार्यता और ग्रिड एकीकरण पर काम करना है। जबकि LAES तकनीक को भारत के लिए अत्यधिक प्रासंगिक माना जाता है, देश में अभी भी बड़े, वाणिज्यिक पैमाने के LAES प्लांट काम नहीं कर रहे हैं। वर्तमान में भारत की ऊर्जा भंडारण क्षमता मुख्य रूप से पंप हाइड्रो स्टोरेज और तेजी से स्थापित हो रही लिथियम-आयन बैटरियों पर केंद्रित है।

 

शुरुआत में यह प्रोसेस महंगी है जिस पर काम करने की जरूरत है। हालांकि नीतिगत समर्थन के बिना इनमें से कोई भी स्टोरेज मेथड आर्थिक रूप से बेहतर नहीं है, लेकिन बड़े लेवल पर स्टोरेज के लिए  LAES विशेष रूप से लागत प्रभावी विकल्प है।