असम और मेघालय के बीच 884.9 किलोमीटर लंबी सीमा पर लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। इस सीमा पर बसे गांवों और समुदायों के लिए यह न केवल ज़मीन का मसला है, बल्कि यह उनकी पहचान, संस्कृति और आजीविका से भी जुड़ा है। बुधवार को एक बार फिर यह विवाद सुर्खियों में आया, जब मेघालय के पश्चिम जयंतिया हिल्स के लपांगप और आसपास के क्षेत्रों से 400 से अधिक ग्रामीणों ने, छात्र संगठनों और प्रेशर ग्रुप के समर्थन से, असम के करबी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) द्वारा संचालित एक वृक्षारोपण किए जाने वाले स्थल पर धावा बोल दिया। ग्रामीणों ने KAAC पर मेघालय की ज़मीन पर अवैध अतिक्रमण का आरोप लगाते हुए लकड़ी के शेड तोड़ दिए और सैकड़ों पौधे उखाड़ फेंके। इसके जवाब में असम पुलिस ने पांच राउंड आंसू गैस के गोले दागे, जिससे तनाव और बढ़ गया। करबी के स्थानीय लोगों ने खेतों में बने दो अस्थायी ढांचों में कथित तौर पर आग भी लगा दी।
यह घटना ब्लॉक I में हुई, जो असम-मेघालय सीमा पर लंबे समय से विवादित क्षेत्र है। मेघालय के उपायुक्त अभिनव कुमार सिंह ने बताया कि KAAC ने बिना किसी को-ऑर्डिनेशन के यह वृक्षारोपण किया, जबकि शांति वार्ता चल रही थी। इस घटना ने एक बार फिर दोनों राज्यों के बीच तनाव को उजागर किया है। हालांकि, अब स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन यह घटना यह सवाल उठाती है कि क्या शांति वार्ता और सरकारी समझौते ज़मीनी स्तर पर प्रभावी हो पाएंगे?
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क्या है विवाद की जड़?
असम और मेघालय के बीच सीमा विवाद की शुरुआत 1972 में हुई, जब मेघालय को असम से अलग कर एक नया राज्य बनाया गया। असम पुनर्गठन अधिनियम, 1971 के तहत सीमा का निर्धारण किया गया, जिसे मेघालय ने हमेशा से चुनौती दी है। दोनों राज्यों के बीच 2,700 वर्ग किलोमीटर से अधिक के 12 क्षेत्रों में मतभेद हैं। इनमें ब्लॉक I, ब्लॉक II, लांगपिह, देशदूमरिया, खांडुली और नोंगवाह-मावतमुर जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में न केवल ज़मीन का मसला है, बल्कि जातीय संवेदनशीलता और ऐतिहासिक दावे भी शामिल हैं।
हाल की घटना
लपांगप में हुई ताज़ा घटना ने इस विवाद को फिर से गरमा दिया। मेघालय के ग्रामीणों का कहना है कि KAAC ने 2023 में बनी सहमति का उल्लंघन करते हुए वृक्षारोपण शुरू किया, जिसमें दोनों पक्षों ने यथास्थिति बनाए रखने का वादा किया था। खासी स्टूडेंट्स यूनियन (KSU) और जयंतिया स्टूडेंट्स यूनियन (JSU) जैसे संगठनों ने इस विरोध को समर्थन दिया। JSU के महासचिव नीलकी मुखिम ने कहा, ‘हमने यह कदम अपनी ज़मीन की रक्षा के लिए उठाया। असम ने समझौते का उल्लंघन किया।'
इस घटना के बाद दोनों प्रशासनों ने स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की। मेघालय के उपायुक्त ने बताया कि शांति वार्ता के लिए ताहपट गांव में बैठक तय थी, लेकिन असम की ओर से कोई नहीं आया। इससे नाराज़ ग्रामीणों ने खुद कार्रवाई की। अब पुलिस और तीन सीमा मजिस्ट्रेट क्षेत्र में तैनात हैं, और गुरुवार को लपांगप और ताहपट गांव परिषदों के बीच नई शांति वार्ता तय की गई है।
अब तक क्या कोशिश रही?
दोनों राज्यों ने इस विवाद को सुलझाने के लिए 32 बार आधिकारिक बैठकें की हैं। मार्च 2022 में एक बड़ा कदम उठाया गया, जब नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में दोनों राज्यों ने छह विवादित क्षेत्रों को सुलझाने के लिए एक समझौता पत्र (MoU) पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत 36.79 वर्ग किलोमीटर ज़मीन को आधा-आधा बांटा गया—18.46 वर्ग किलोमीटर असम को और 18.33 वर्ग किलोमीटर मेघालय को। इसे सहकारी संघवाद का एक मॉडल माना गया।
हालांकि, छह क्षेत्र—ब्लॉक I, ब्लॉक II, लांगपिह, देशदूमरिया, खांडुली और नोंगवाह-मावतमुर—अब भी विवादित हैं। इन क्षेत्रों में स्थानीय भावनाएं और ऐतिहासिक दावे शांति प्रक्रिया को जटिल बनाते हैं। पिछले साल 22 नवंबर को मुक्रोह में हुई गोलीबारी, जिसमें छह लोग मारे गए, ने भी इस विवाद को और भड़काया था।
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दोनों सीएम की हुई मीटिंग
2 जून 2025 को गुवाहाटी में मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड के संगमा और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के बीच हुई दूसरी दौर की वार्ता में कई अहम फैसले लिए गए। दोनों राज्यों ने 15 अगस्त 2025 तक छह सुलझाए गए क्षेत्रों में बॉर्डर फेन्सिंग करने का फैसला किया। इसके अलावा, नॉर्थ ईस्टर्न स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (NESAC) को विवादित क्षेत्रों का हाई-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट सर्वे करने का ज़िम्मा सौंपा गया है। यह सर्वे जंगल की सीमाओं, नदियों और बस्तियों का नक्शा तैयार करेगा, जो भविष्य में सीमा निर्धारण के लिए एक वैज्ञानिक आधार देगा।
मेघालय के मुख्यमंत्री ने कहा, ‘NESAC का सर्वे तीन महीने में पूरा होगा। इसके बाद IIT रुड़की जैसे तकनीकी विशेषज्ञ डेटा का विश्लेषण करेंगे। यह सिर्फ सीमा रेखा खींचने की बात नहीं, बल्कि इलाके, लोगों और पर्यावरण को समझने की प्रक्रिया है।'
इसके साथ ही, दोनों राज्यों ने कुलसी बहुउद्देश्यीय जलविद्युत और सिंचाई परियोजना को संयुक्त रूप से शुरू करने पर सहमति जताई है। यह परियोजना बिजली उत्पादन, सिंचाई और पर्यटन को बढ़ावा दे सकती है।