दिल्ली के शिविरों में रह रहे पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी अपनी स्थिति को लेकर अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं, खासकर हाल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद। इस हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए और उन्हें 48 घंटे में देश छोड़ने का आदेश दिया। इस नीति ने पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों को भी प्रभावित किया है, जिनमें से कई धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए भारत आए थे। 

 

दिल्ली के मजनू का टीला और अन्य शिविरों में रहने वाले ये शरणार्थी बुनियादी सुविधाओं जैसे बिजली, पानी और आवास की कमी से जूझ रहे हैं। कई परिवार अस्थायी झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत कुछ शरणार्थियों को नागरकिता मिली है लेकिन प्रक्रिया धीमी है। 2021 में लगभग 800 पाकिस्तानी हिंदू नागरकिता आवेदनों में तेजी न होने के कारण पाकिस्तान लौट गए। 

 

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क्या होगा डिपोर्टेशन?

हरियाणा के हिसार में एक 15 सदस्य वाले पाकिस्तानी हिंदू परिवार को दिल्ली कैंप में भेजा गया क्योंकि सभी का वीजा समाप्त हो चुका था। उनकी डिपोर्टेशन की संभावना संदेहपूर्ण है। सोशल मीडिया पर कुछ लोग इन शरणार्थियों के समर्थन में हैं। कुछ तर्क दे रहे है कि धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत आए हिंदुओं को डिपोर्ट नहीं करना चाहिए। इन शरणार्थियों की स्थिति जटिल बनी हुई है। कुछ को CAA के तहत वोटिंग अधिकार और नागरिकता मिली है लेकिन बड़ी संख्या में लोग अभी भी यहां अपनी भविष्य को लेकर संदेह में है। भारत सरकार की नीतियां और भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव इस स्थिति को भविष्य में प्रभावित कर सकती हैं। 

 

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शिविरों की स्थिति

दिल्ली के मजनू का टीला और अन्य शिविरों में रहने वाले शरणार्थी पहले से ही खराब परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। वीजा रद्द होने और बॉर्डर बंद होने से उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो लॉन्ग-टर्म वीजा (LTV) पर भारत में हैं या नागरिकता के लिए आवेदन कर चुके हैं। सिंध-हिंद पंचायत जैसे समूहों ने सरकार से उन लोगों के लिए नियमों में ढील देने की मांग की है जो नो-ऑब्जेक्शन रिटर्न टू इंडिया (NORI) वीजा पर पाकिस्तान गए हैं।