साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट अपने एक फैसले में कहता है कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास, दूसरे राज्यों के राज्यपाल की तुलना में ज्यादा ताकत है। उपराज्यपाल, हमेशा दिल्ली के मुख्यमंत्रियों और मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।
अगर संवैधानिक तरीके से देखें तो संविधान का अनुच्छेद 163 कहता है कि उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना चाहिए, केवल उन मामलों में उन्हें छूट है, जिन पर वे अपने विवेकाधिकार से निर्णय ले सकते हैं। अब सोचिए आखिर कौन सी परिस्थितियां रही होंगी, जिसकी वजह से जजों को ऐसा फैसला देना पड़ा। वजह इसकी साफ है।
अनुच्छेद 239AAA में कुछ प्रावधान ऐसे हैं, जिनके तहत एंट्री 1, 2 और 18 के तहत आने वाले मामलों पर दिल्ली विधानसभा नियम-कानून नहीं बना सकती है। जमीन, पुलिस, पब्लिक ऑर्डर तीन ऐसे विषय हैं, जिन पर दिल्ली सरकार फैसले नहीं ले सकती है। पर क्या सिर्फ इतना ही। दिल्ली में उपराज्यपाल बनाम और मुख्यमंत्री की लड़ाई, इससे कहीं ज्यादा है।
LG क्यों रोक लेते हैं फाइल,कैसे-कैसे आरोप?
अब आज पर लौटते हैं। साल 2024 की कुछ खबरें पढ़ते हैं। 28 फरवरी 2024 को एक खबर आती है। अरविंद केजरीवाल सरकार आरोप लगाती है कि एलजी ने सोलर पॉलिसी पर रोक लगा दी है। 2023 याद करते हैं। 14 अप्रैल को खबर आती है कि एलजी ने बिजली सब्सिडी की फाइल रोक ली है। एक साल पहले 2022 रेड लाइट ऑन, गाड़ी अभियान को एलजी रोक देते हैं। 3 साल में तीन अलग-अलग खबरें। खबरें इससे ज्यादा भी हैं। कई ऐसे मामले आए, जिनमें दिल्ली सरकार ने कहा कि फाइलों को उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं मिली है।
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया जिस आबकारी नीति में धांधली को लेकर महीनों जेल में रहे, उस पर एक्शन भी दिल्ली के उपराज्यपाल के आदेश के बाद ही हुआ। कांग्रेस के उत्तर प्रदेश मानवाधिकार प्रकोष्ठ के पूर्व नेता प्रमोद उपाध्याय बताते हैं कि दिल्ली के असली बॉस उपराज्यपाल ही हैं। वे जो चाहते हैं, वही करते हैं।
संसद में जब 'द गर्वमेंट ऑफ NCT ऑफ दिल्ली (एमेंडमेंट) बिल, अगस्त 2023 पर कवायद शुरू हुई थी, तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केरीवाल हर राजनीतिक पार्टी से समर्थन मांगते नजर आए थे कि इस बिल के खिलाफ उनका लोक साथ दें। इस बिल का मकसद था, कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार होगा। उन्होंने हर राजनीतिक दल से सहयोग मांगा, कुछ दलों ने उनका साथ भी दिया लेकिन कामयाबी वे हासिल नहीं कर पाए। बाजी, उपराज्यपाल के पाले में ही रही।
साल दर साल, दिल्ली से जुड़े नियम-कानून कैसै बदलते रहे, आइए जानते हैं।
साल 1956। संसद में स्टेट रिकग्नाइजेशन एक्ट पास होता है। दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिल जाता है। साल 1991 से 92 में 69वां संविधान संशोधन होता है। अनुच्छेद 230 AAA के तहत दिल्ली के लिए विधानसभा बनाई जाती है। इसी साल 'द गर्वनमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टैरिटरी ऑफ दिल्ली (GNCTD) एक्ट, 1991 पास होता है। 70वें संविधान संशोधन में यह कहा जाता है कि संसद के कुछ कानूनों को संविधान संशोधन नहीं समझा जाना चाहिए।
साल 2015 में गृहमंत्रालय की ओर से एक अधिसूचना जारी होती है। सर्विस सेक्टर से दिल्ली सरकार का अधिकार खत्म करके, ये ताकत उपराज्यपाल को दे दी जाती है। ऐसे मामलों केंद्र सरकार की ओर से राज्यपाल, अपनी सेवाएं देने के लिए अधिकृत हो जाते हैं। दिल्ली हाई कोर्ट साल 2016 में ही यह फैसला सुनाता है कि सर्विस पर अधिकार दिल्ली विधानसभा और कार्यपालिका से बाहर का है।
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक रूलिंग आती है कि उपराज्यपाल को दिल्ली के मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करना चाहिए। साल 2021 में केंद्र सरकार GNCTD Act, 1991 में संशोधन करती है। दिल्ली विधानसभा में पास किसी बिल पर उपराज्यपाल की राय को अनिवार्य कर दिया जाता है, साथ ही अगर वे चाहें तो इस केस को वे राष्ट्रपति के पास रेफर सकते हैं।
साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट अपने एक फैसले में कहता है कि दिल्ली सरकार का ही प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण होगा। केंद्र सरकार, इस आदेश के विरोध में संसद में एक अध्यादेश पेश करती है। GNCTD एक्ट 1991 को संशोधित किया जाता है। मकसद इतना ही होता है कि दिल्ली विधानसभा के पास, सर्विस पर कानून बनाने, ट्रांसफर और पोस्टिंग करने का अधिकार न हो। 1 अगस्त 2023 को GNCTD विधेयक 2023 लोकसभा में पेश होता है। 1 अगस्त को 2023 तक यह कानून बन जाता है।