बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने पलायन को मुद्दा बनाया है। पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने पलायन के आंकड़े के जरिए नीतीश सरकार पर निशाना साधा और कहा कि प्रदेश में आरजेडी की सरकार बनने के बाद लोगों को गृह राज्य में काम दिलाया जाएगा। बता दें कि पटना में व्यवसायी गोपाल खेमका की मौत के बाद पलायन और राज्य के औद्योगिक माहौल पर बहस छिड़ गई है। आइए आकड़ों से जानते हैं बिहार के पलायन की स्थिति।
तेजस्वी यादव ने एक एक्स पोस्ट में लिखा, 'केंद्र सरकार द्वारा संसद में दिए गए आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष बिहार से लगभग 3 करोड़ लोग पलायन करते है। ये वो आंकड़े है जो श्रम विभाग के पोर्टल पर पंजीकृत है। एक अनुमान के अनुसार बिहार से लगभग 5 करोड़ लोग प्रतिवर्ष अस्थायी नौकरी-रोजगार के लिए पलायन करते है। 20 वर्षों की नीतीश-बीजेपी सरकार में पलायन के आंकड़े भयावह है। 20 वर्षों में एनडीए सरकार ने बिहार में उद्योग-धंधे लगाने की दिशा में सकारात्मक कार्य नहीं किए। मुख्यमंत्री कहते है कि बिहार में समुद्र नहीं इसलिए हम उद्योग नहीं लगवा पाएंगे, लेकिन इच्छाशक्ति के बल पर हमारे 17 महीनों के कार्यकाल में राजद अधीन उद्योग विभाग ने निवेशकों से 50 हजार करोड़ के एमओयू साइन करवाए।'
बिहार में काम देंगे: तेजस्वी
तेजस्वी का कहना है कि लगभग 10 वर्षों से बिहार में डबल इंजन की सरकार है। बिहार ने एनडीए को 2014 में 31, 2019 में 39 और 2024 में 30 सांसद दिए उसके बावजूद बिहार को उसका वाजिब हक-अधिकार नहीं मिल रहा है। हमारी सरकार बनने पर बिहार के श्रमवीरों को बिहार में ही काम देंगे। खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां, औद्योगिक क्लस्टर एवं उद्योग-धंधे स्थापित करेंगे और सबको अपने गृह राज्य बिहार में ही काम मिलेगा।
10 साल में 93 लाख का पलायन
2019 में जर्नल ऑफ माइग्रेशन अफेयर्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 1951 से 1961 तक 10 वर्षों में बिहार की 4 फीसदी आबादी ने पलायन किया था। 10 साल बाद 1971 में यह आंकड़ा घटकर 2 फीसदी तक पहुंचा गया, लेकिन 1981 तक पलायन करने वाले लोगों की संख्या दोगुनी हो गई। इस वर्ष तक लगभग 25 लाख लोगों ने बिहार से पलायन किया। साल 2001 से 2011 के बीच लगभग 93 लाख लोगों ने बिहार से पलायन किया है।
बिहार में 0.48 फीसदी व्यवसायिक पलायन
डी-सीरीज जनगणना 2011 के डेटा के मुताबिक देशभर में लगभग 24 फीसदी पुरुष रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं। अगर सिर्फ बिहार की बात करें तो यह आकंड़ा 55 फीसदी तक पहुंच जाता है। राष्ट्रीय स्तर पर पलायन लगभग 2 फीसदी है। बिहार में यह आंकड़ा 4 प्रतिशत के आसपास है। बिहार में लगभग 4 फीसदी महिलाओं को भी पलायन करना पड़ता है। व्यवसाय की वजह से बिहार में लगभग 0.48 फीसदी पलायन होता है।
रोजगार के कारण 10.8 फीसदी पलायन
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2020-21 के मुताबिक देश में कुल प्रवास दर 28.9 प्रतिशत थी। ग्रामीण क्षेत्रों में 26.5 प्रतिशत लोगों ने पलायन किया। लगभग 10.8 फीसदी लोगों ने रोजगार के कारणों से पलायन किया।
पलायन के पीछे क्या है कारण?
- क्षेत्रीय असंतुलन
- आर्थिक विकास का न होना
- गरीबी
- पिछड़ापन
- कृषि पर अधिक निर्भरता
- उद्योगों की कमी
- अधिक जनसंख्या
- खराब शिक्षा व्यवस्था
50 फीसदी परिवार पर पलायन का खतरा
2020 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने जनसंख्या विज्ञान संस्थान के अध्ययन के हवाले से एक रिपोर्ट छापी। इसमें कहा गया कि बिहार के लगभग 50 फीसदी परिवार पर पलायन का खतरा है। प्रदेश के आधे से अधिक परिवार देश के भीतर या बाहर पलायन के संपर्क में हैं। सर्वे में 36 गांव और 2270 परिवारों को शामिल किया गया था। सबसे अधिक पलायन सारण, मुंगेर, दरभंगा, कोसी, तिरहुत और पूर्णिया से होता है। माना जाता है कि क्षेत्र में विकास की कमी पलायन के पीछे प्रमुख वजह है।