सुप्रीम कोर्ट ने संजय प्रकाश बनाम भारत संघ केस में 23 मई 2025 को एक आदेश दिया था, जिसके लेकर सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स (CAPF) के जवान बेहद उत्साहित थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इंस्पेक्टर जनरल (IG) के पद पर IPS अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति को 2 साल की समय सीमा के भीतर कम किया जाए। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश गृह मंत्रालय के लिए था। आमतौर पर ऐसा बेहद कम होता है कि CAPF के बड़े अधिकारियों को इंस्पेक्टर जनरल रैंक तक प्रमोशन मिल जाए। इनकी जगह पुलिस सेवा से आने वाले IPS अधिकारी ही इस रैंक तक पहुंच पाते हैं। 

 

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि सभी CAPF में कैडर समीक्षा जो साल 2021 में होनी थी, आज से छह महीने की अवधि के भीतर पूरी की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने एक और अहम फैसला सुनाया था कि सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स (CAPF) को 'ऑर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस' के तौर पर मान्यता दी जाए। जस्टिस एएस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड या CAPF में इंस्पेक्टर जनरल के पद तक IPS अधिकारियों की नियुक्ति को 2 साल की समय सीमा के भीतर कम किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले पर केंद्र सरकार ने विचार करने की अपील की है। 

अभी प्रमोशन का नियम क्या है? 

इंस्पेक्टर जनरल (IG) के स्तर पर 50 प्रतिशत पद IPS अधिकारियों के लिए आरक्षित हैं। डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (DIG) स्तर के लगभग 15 प्रतिशत पद सेना के अलावा ऑल इंडिया सर्विसेज से डेपुटेशन पर आने वाले अधिकारियों के लिए रखे गए हैं। 5 प्रतिशत पद सेना के लिए आरक्षित हैं। 

याचिकार्ता कौन हैं?  

याचिकाकर्ताओं में सीएपीएफ के 18 हजार अधिकारी शामिल हैं। साल 2009 में इन अधिकारियों ने आवेदन दायर कर गृह मंत्रालय से उनमें से ऑर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस के रूप में कैडर समीक्षा की मांग की थी। यह मांग इसलिए की गई थी, जिससे प्रमोशन में देरी से संबंधित मुद्दों का समाधान किया जा सके। 

कोर्ट का आदेश क्या है?

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि CAPF को कैडर मुद्दों और दूसरे संबंधित मामलों के लिए OGAS के तौर पर माना गया है। जब यह पूरी तरह से साफ है कि CAPF को ऑर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस घोषित किया गया है तो ऑर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस को मिलने वाले सभी लाभ भी दिए जाने चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता है कि एक लाभ दिया जाए और दूसरा न दिया जाए। 

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि IPS के सीनियर अधिकारी प्रशासनिक ग्रेड तक के पदों पर आसीन हैं, इसलिए CAPF के प्रमोशन की संभावनाएं बाधित हो रहा हैं, यही वजह है कि प्रमोशन रुक रहा है। 

CAPF क्या है? 

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, गृह मंत्रालय के अधीन आता है। यह सात सशस्त्र पुलिस संगठनों का सामूहिक नाम है। ये  संगठन, देश की आंतरिक सुरक्षा, सीमा सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी अभियानों और कानून-व्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। 

यह भी पढ़ें: '5 फाइटर जेट गिरे थे', भारत-पाक संघर्ष पर अब ट्रंप क्या बोले?

CAPF के जवान। (Photo Credit: CRPF)

कौन-कौन से बल CAPF का हिस्सा हैं?

  • असम राइफल्स (AR) 1835
  • सीमा सुरक्षा बल (BSF) 1965
  • केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल(CISF) 1969
  • केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) 1939
  • भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) 1962
  • राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) 1984
  • सशस्त्र सीमा बल (SSB) 1963

ऑर्गनाइज्ड ग्रुप-ए सर्विस क्या है?

भारत सरकार की सिविल सेवाओं में ग्रुप ए सर्विसेज प्रशासनिक और प्रबंधकीय पदों से जुड़े हैं। UPSC परीक्षाओं के जरिए इन पदों पर भर्ती होती है। इसके जरिए IAS, IPS, IFS और IRS जैसे पद मिलते हैं। CAPF के जवान भी यही मांग कर रहे हैं। 

 

यह भी पढ़ें: क्या है TRF, जिसे USA ने माना आतंकी; इसका असर क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या था?

  • CAPF में सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (SAG) यानी इंस्पेक्टर जनरल (IG) तक के पदों पर IPS अधिकारियों की डेपुटेशन को अगले दो साल में धीरे-धीरे कम किया जाए। 
  • CAPF के ग्रुप A अधिकारी 'ऑर्गनाइज्ड सर्विसेज' का हिस्सा हैं। अपने कैडर के अंदर ही प्रमोशन के लिए उन्हें वरीयता दी जानी चाहिए। 

CAPF अधिकारियों की परेशानी क्या है?

CAPF अधिकारियों का बड़े और जिम्मेदारी वाले पदों तक पहुंचना आसान नहीं होता है। अभी प्रमोशन के जो भी खाली पद आते हैं, उन पर ज्यादातर IPS अधिकारियों को नियुक्त कर दिया जाता है। CAPF में प्रमोशन वैकेंसी के आधार पर होता है। कई बार कई बार अधिकारियों और जवानों को लंबे समय तक एक ही रैंक में रहना पड़ता है। अगर कोई असिस्टेंट कमांडेंट से डिप्टी कमांडेंट तक पहुंचना चाहता है तो उसे 6 से 12 साल तक इंतजार करना पड़ सकता है। दूससे ग्रुप ए सेवाओं की तुलना में यह बहुत धीमा है। सीनियर रैंक, जैसे डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (DIG) या इंस्पेक्टर जनरल (IG) तक पहुंचने में 20-30 साल लग जाते हैं। कई अधिकारी अपने पूरे करियर में सिर्फ 1 या 2 प्रमोशन हासिल कर पाते हैं। जवानों के लिए यह सबसे बड़ी परेशानी की बात है। 

CAPF के जवान। (Photo Credit: PTI)

केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत क्यों नहीं?

गृह मंत्रालय ने 11 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल की। सरकार का कहना है कि IPS अधिकारियों की डेपुटेशन CAPF की ऑपरेशनल ताकत बनाए रखने और केंद्र-राज्य समन्वय के लिए जरूरी है। सरकार का तर्क है कि CAPF केंद्रीय सशस्त्र बल हैं, इनमें IPS अधिकारियों की मौजूदगी से केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर तालमेल बना रहता है।

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गृह मंत्रालय ने 23 मई के बाद भी कम से कम आठ IPS अधिकारियों को CAPF में कमांडेंट से लेकर इंस्पेक्टर जनरल तक के पदों पर नियुक्त किया है। यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक नहीं है।

यह भी पढ़ें: 7 दिनों का संघर्ष, 600 मौतें, अब थम कई इजरायल-सीरिया की जंग

CAPF के अधिकारी चाहते क्या हैं?

साल 2015 में CAPF के ग्रुप ए के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर की थी। उनकी मांग थी कि उनके नॉन-फंक्शनल फाइनेंशियल अपग्रेडेशन (NFFU), कैडर रिव्यू, और भर्ती नियमों में बदलाव किए जाएं, जिससे IPS डेपुटेशन खत्म हो। उनके अपने कैडर में सीनियर पदों पर प्रमोशन का रास्ता खुले।

CAPF अधिकारियों का कहना है कि IPS अधिकारियों की डेपुटेशन की वजह से उनके प्रमोशन में रुकावट आती है। एक सीनियर CAPF अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि एक असिस्टेंट कमांडेंट, 15 साल पहले सर्विस में शामिल हुआ था, उसे अब तक सीनियर ग्रेड में प्रमोशन नहीं मिला, क्योंकि यह पद IPS अधिकारियों के लिए आरक्षित है। अभी CAPF में डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल के 20 प्रतिशत और इंस्पेक्टर जनरल के 50 प्रतिशत पद IPS अधिकारियों के लिए रिजर्व हैं।

IPS की जगह अगर CAPF के अधिकारी नियुक्त होंगे तो क्या होगा?

CAPF कुछ रिटायर अधिकारियों का कहना है कि वे अपने-अपने संगठन को बेहतर समझते हैं। पैरा मिलिट्री फोर्सेज की ट्रेनिंग अलग तरीके से होती है। कभी सीमाओं पर उनकी नियुक्ति होती है, कभी दंगा प्रभावित इलाकों में। कभी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में। हर तरह के चुनौती से वे निपटना जानते हैं। उनके अधिकारी इन जटिल स्थितियों से निपटने में सक्षम होते हैं। पुलिस और उनकी ट्रेनिंग में फर्क होता है। IPS अधिकारी इन जवानों की समस्याओं से वाकिफ कम होते हैं। वे चुनौतियों को कम समझते हैं। अगर CAPF के अधिकारी ही ऊंचे पदों पर पहुंचेंगे तो बेहतर समधान निकल पाएगा। जवानों का उत्साह भी बढ़ेगा कि उनके लिए भी ऐसे अवसर पैदा होंगे।

CAPF के जवान। (Photo Credit: PTI)

इस फैसले का असर क्या होगा?

CAPF के अधिकारी, अपने साथ ही चयनित दूसरे विभागों के अधिकारियों से प्रमोशन के मामले में बहुत पीछे होते हैं। द हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट का फैसला अगर लागू होता है तो CAPF के 13 हजार से ज्यादा अधिकारियों को लाभ मिल सकता है, उन्हें सीनियर पदों पर नियुक्ति मिल सकती है।

 

सीएपीएफ के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, 'सबसे कठिन सेवाओं में से एक यह सेवा भी है। हर दिन चुनौती से दूर रहते हैं। छुट्टियों की किल्लत से जूझते हैं। फिर भी इतना धीमा प्रमोशन होता है कि लोग इन सेवाओं को छोड़कर दूसरे विभागों में चले जाते हैं। अगर प्रमोशन संबंधी सुधार हों तो लोग अपने करियर से ज्यादा संतुष्ट रहेंगे।'


साल 2023 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने माना था कि बीते 5 साल में 47 हजार से ज्यादा जवानों ने अर्ध सैनिक बलों ने स्वैच्छिक सेवानृवित्ति ले ली, 6336 जवानों ने नौकरी से ही इस्तीफआ दे दिया। 2018 से लेकर 2022 तक 600 से ज्यादा जवानों ने खुदकुशी कर ली। 

गुमनाम CAPF अधिकारी की चिट्ठी:-
यह कहानी CRPF, BSF, ITBP, CISF के हजारों प्रत्यक्ष भर्ती अधिकारियों की मूक पीड़ा है। गणतंत्र दिवस की परेड में हमें सलामी दी जाती है, राजनीतिक भाषणों में हमारी शहादत का गुणगान किया जाता है लेकिन जब कैडर समीक्षा और नीतिगत फैसलों की बात आती है, हमें दूसरे ग्रुप ए अधिकारियों के बराबर अधिकार, पदोन्नति और नेतृत्व का अवसर नहीं दिया जाता है। जब दिल्ली हाई कोर्ट ने न्याय किया है तो सरकार विरोध क्यों कर रही है।

अगर सरकार मांग मान ले तो क्या होगा? 

  • सीनियर पदों पर प्रमोशन का रास्ता खुलेगा
  • CAPF अधिकारियों का मनोबल बढ़ेगा
  • प्रमोशन न होने से नाराज अधिकारियों का प्रदर्शन सुधरेगा
  • CAPF के सर्विस रूल्स और कैडर रिव्यू को प्रभावित कर सकती है
  • IPS डेपुटेशन का सिस्टम धीरे-धीरे कम हो सकता है 

क्या उम्मीदें हैं?

अगर सुप्रीम कोर्ट रिव्यू पिटीशन को स्वीकार करता है तो हो सकता है कि IPS अधिकारियों की नियुक्ति का सिलसिला बना रहे। CAPF अधिकारियों की मांगें धरी की धरी रह सकती हैं। अब जस्टिस ओका रिटायर हो चुके हैं, नई बेंच के सामने यह केस रेफर किया जाएगा। सरकार का तर्क है कि CAPF, राज्य और केंद्र के बीच कड़ी है, इसलिए बेहतर सामंजस्य के लिए IPS अधिकारियों की नियुक्ति अनिवार्य है। 

CAPF के जवान। (Photo Credit: PTI)

अधिकारियों का दर्द क्या है?

CAPF के अज्ञात अधिकारी की वायरल चिट्ठी:-
यह पत्र मैं विद्रोह की भावना से नहीं, बल्कि एक पीड़ित परंतु समर्पित सैनिक के रूप में लिख रहा हूं, जिसने 19 वर्ष तक वर्दी पहनकर देश की सीमाओं की रक्षा की है। भारत के सबसे दुर्गम क्षेत्रों में अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया है। CAPF अधिकारी एक गंभीर अन्याय का सामना कर रहे हैं। आपकी सरकार ने हमें संगठित ग्रुप-ए सेवा (OGAS) का दर्जा देने से इनकार कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय को पलटने के लिए एक पुनर्विचार याचिका दायर की है, जिसने हमारे अधिकारों को मान्यता दी थी। क्या यह संदेश देना चाहते हैं कि हमारी जान तो कुर्बानी के लायक है लेकिन सम्मान के नहीं। 




क्या चाह रहे हैं CAPF के लोग?

  • CAPF अधिकारियों को संगठित ग्रुप-ए सेवा का हिस्सा माना जाए
  • IPS के प्रभुत्व को कम करके CAPF अधिकारियों को उच्च नेतृत्व में अवसर मिले
  • पदोन्नति, सम्मान और अपने बलों में नेतृत्व का अधिकार मिले