अल्पसंख्यक छात्रों को विदेश में उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिए आसान किश्तों में लोन देने वाली महत्वाकांक्षी पढ़ो परदेश योजना को बंद हुए 1 साल बीत चुके हैं। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद में बताया है कि अब यह योजना, दोबारा कभी शुरू हो नहीं होगी। साल 2006 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यक छात्रों के लिए पढ़ो परदेश योजना शुरू की थी। 

प्रधानमंत्री के 15 पॉइंट प्रोग्राम के तहत इस योजना को शुरू किया गया था। आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग से आने वाले छात्रों को विदेश की पढ़ाई के लिए कम किस्तों में ब्याज दिया जाता था। इस महत्वकांक्षी परियोजना का लाभ केवल अल्पसंख्यक छात्रों को मिलता था।

अब समाजवादी पार्टी सांसद इकरा चौधरी ने संसद में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू से सवाल किया है कि क्या यह योजना दोबारा शुरू होगी। सरकार ने कहा है कि यह योजना नहीं शुरू की जाएगी। एक साल के भीतर 400 छात्रों को ही इस योजना का लाभ मिलता था। 20 लाख रुपये अधिकतम लोन इस योजना के जरिए लिया जा सकता था।

इकरा चौधरी के सवाल क्या थे?
संसद में इकरा चौधरी ने सवाल किया था कि पढ़ो परदेश योजना शुरू करने की योजना क्या है, उसका विवरण क्या है। क्या अन्य मंत्रालयों की योजना में अल्पसंख्यक छात्रों के लिए विदेश की शिक्षा समान रूप से दी जा रही है, अगर ऐसा है तो इसका ब्यौरा क्या है। तीसरा सवाल था कि विदेश में पढ़ने की इच्छा रखने वाले अल्पसंख्यक छात्रों के लिए सरकार क्या सोचती है?


सरकार ने जवाब में क्या कहा है?
सरकार ने कहा है कि अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने अल्पसंख्यक समुदायों के लिए आर्थिक, सामाजिक शैक्षिक सशक्तीकरण के लिए देशभर में 10वीं और 12वीं के बाद कई स्कॉलरशिप योजनाएं चलाई हैं। मौलाना आजाद नेशनल स्कॉलरिशप और पढ़ो परदेश जैसी योजनाएं बनाई गई हैं।  राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त विभाग (NMDFC) अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के आधीन एक सार्वजनिक उपक्रम है, जो खास तौर पर विदेश में पढ़ने वाले अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को कम ब्याज दर पर एजुकेशन लोन देने का काम करता है।  

संसद में लोकसभा सांसद इकरा चौधरी के सवाल। 



किस आधार पर बंद हुई है यह योजना?
पढ़ो परदेश योजना के तहत लाभार्थियों को मिलने वाली छूट का दायरा सीमित था। पढ़े परदेश योजना जैसी ही कुछ योजनाएं सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय और जानजातीय कार्य मंत्रालय की योजनाओं से मेल खाती थीं। एक जैसी ही कई योजनाओं का आपस में टकराव हो रहा था। कानूनी तौर पर इसे 'ओवर लैप' कहा जाता है। मतलब, एक योजना का किसी दूसरी योजना को ढक लेना। इन मंत्रालयों की योजनाएं, अल्पसंख्यक छात्रों के लिए भी थीं, इसलिए पढ़ो परदेश योजना बंद की गई है। 

क्या दोबारा शुरू होगी यह योजना?
अल्पसंख्यक मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि यह योजना साल 2022-23 से बंद है। दोबारा इस योजना को शुरू करने या इसके जैसी किसी नई योजना पर विचार करने का प्रस्ताव सरकार ने नहीं दिया है। 

पढ़ो परदेश योजना क्या थी?
अल्पसंख्यक समुदाय के अंतर्गत आने वाले छात्रों के लिए यह परियोजना शुरू की गई थी। इस योजना के जरिए जिन छात्रों को कम ब्याज दर ऋण मिलता था। इस योजना के तहत लोन लेकर अल्पसंख्यक छात्र विदेश में पढ़ाई कर सकते थे। इस योजना के लिए 35 फीसदी सीटें छात्राओं के लिए आरक्षित थीं। अगर छात्राओं की संख्या 35 फीसदी तक नहीं पहुंचती थी तो यह कोटा, अन्य छात्रों को मिल जाता था। 

पढ़ो परदेश योजना का विज्ञापन।



किसे मिलता था इस योजना का लाभ?
इस योजना के का लाभ मास्टर, एम.फिल और पीएचडी स्तर के विद्यार्थियों को मिलता था। जिन पाठ्यक्रमों को सरकार ने मंजूरी दी है, केवल उन्हीं विषयों के छात्र इस योजना का लाभ ले सकते थे। इंडियन बैंक एसोसिएशन (IBA) के अंतर्गत आने वाले बैंक छात्रों को ऋण देते थे। इस योजना का लाभ लेने के लिए शर्त यह रखी गई थी कि छात्रों के अभिभावकों की वार्षिक आय 6 लाख रुपये से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। 

क्या थी योजना की जटिल शर्तें?
- अगर छात्र ने बीच में पढ़ाई छोड़ दी हो तो यह योजना रद्द हो जाती थी।
- अगर छात्र ने देश की नागरिता छोड़ दी हो तो उसे भी योजना से बाहर कर दिया जाता था।
- अगर संस्थान ने छात्रों को बाहर निकाल दिया तो भी योजना का लाभ नहीं मिलता था।