अमेरिका के मनी लॉन्ड्रिंग एंड एसेट रिकवरी सेक्शन (MLARS) के चीफ रहे रिचर्ड वेबर अपनी किताब 'मनी लॉन्ड्रिंग' में लिखते हैं कि किसी भी देश के लिए सबसे बड़ी समस्याओं में से एक वहां का व्हाइट कॉलर क्राइम है। ऐसे अपराध, जो सफेदपेश लोग करते हों और उन्हें अपनी पहुंच, सामाजिक स्थिति और अधिकारियों की दखल की वजह से छूट मिल जाती हो। कहने के लिए ये लोग समाज में बेहद इज्जतदार होते हैं लेकिन ये लोग संस्थानिक अपराधों को बढ़ावा देते हैं। ये संस्थाओं में धोखाधड़ी करके, अपराध और भ्रष्टाचार से कमाए गए काले धन को, वैध धन (व्हाइट मनी) में बदल देते हैं। यही प्रक्रिया मनी लॉन्ड्रिंग कहलाती है।
मनी लॉन्ड्रिंग, किसी भी देश की आंतरिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा होता है। इस धन से अपराध, आतंक, ड्रग, आर्थिक असुरक्षा को बढ़ावा मिलता है। मनी लॉन्ड्रिंग से कमाए गए धन का इस्तेमाल ऑर्गेनाइज्ड क्राइम में होता है। इसमें वेश्वावृत्ति, यौन अपराध, ड्रग टैफीकिंग, नॉरकोटिक्स से जुड़े मामले आते हैं। विदेशी मुद्रा से लेकर देश में बढ़ रहे आर्थिक अपराधों पर लगाम लाने के लिए प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 की जरूरत पड़ी। यह कानून, वैश्विक अधिवेशनों से भी प्रभावित था लेकिन इससे पहले भी देश में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े कानून थे।
क्यों देश में बना मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट?
1980 के बाद अचानक वैश्विक तौर पर ब्लैक मनी का कारोबार पांव पसराने लगा था। अंडरवर्ल्ड का दबदबा था और हवाला और दूसरे आपराधिक तरीकों से ग्लोबल करेंसी में हेरफेर हो रही थी। इसे देखते हुए वैश्विक स्तर पर पहल करने की जरूरत पड़ी। संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा के 17वें विशेष सत्र में 23 फरवरी 1990 को एक संकल्प पेश किया गया, जिसमें ड्रग और आर्थिक अपराधों पर लगाम लगाने के लिए नियम-कानूनों को बनाने पर चर्चा हुई। इस संकल्प पत्र पर सदस्य देशों ने सहमति जताई। साल 1998 में नशा और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित वैश्विक कानूनों को लेकर बहस छिड़ गई। इसके बाद 8 जून से 10 जून 1998 तक चले इस दो दिवसीय बैठक में विशेष सत्र में सदस्य देशों से मांग की गई कि वे राष्ट्रीय स्तर पर अपने-अपने देशों में मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित नियम-कानून जल्द से जल्द बनाएं। जुलाई 1089 में पेरिस में हुए एक समिट के बाद फाइनेंशिलय एक्शन टास्क फोर्स (FATF) का गठन हुआ और मनी लॉन्ड्रिंग से प्रभावित देशों को कानून बनाने के लिए प्रेरित किया गया।
मनी लॉन्ड्रिंग पर रोकथाम के लिए एकजुट हुई थी दुनिया
वैश्विक अधिवेशनों के बाद देश पर भी आर्थिक अपराधों पर लगाम लगाने के लिए दबाव पड़ा। देश की संसद में मनी लॉन्ड्रिंग विधेयक 4 अगस्त 1998 पेश हुआ। विधेयक को विचार के लिए स्थाई समिति के पास भेजा गया। स्थाई समिति ने अपनी रिपोर्ट 4 मार्च 1999 को लोकसभा में पेश कर दी। स्थाई समिति के सुझाव को केंद्र सरकार ने स्वीकृति दे दी। विधेयक में व्यापक सुधार हुए। 17 जनवरी 2003 तक, संसद के दोनों सदनों से यह विधेयक पास हो गया और राष्ट्रपति ने मुहर लगा दी। अब देश को अपना 'द प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 मिल चुका था। यह कानून 2005 में लागू हुआ।
क्या है इस एक्ट का काम-धाम? कैसे मिली ईडी को ताकत
इस एक्ट का मुख्य काम, मनीलॉन्ड्रिंग को रोकना है। जिस धन के जरिए संपत्तियां बनाई गई हैं, उन्हें सीज करने का भी अधिकार यह अधिनियम देता है। मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य आर्थिक अपराधों से जुड़े मामलों को भी इस अधिनियम के दायरे में लाया गया है। मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट ऑफ इंडिया (FIU-IND) की स्थापना साल 2004 में की गई। वित्तीय लेन-देन से जुड़े मामलो पर यह यूनिट नजर रखती है। यह संस्था वैश्विक एजेंसियों के भी संपर्क में रहती है, जिससे आर्थिक अपराधों पर लगाम लगाई जा सके।
ग्लोबल मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ यह संस्था भी वैश्विस संस्थाओं के साथ काम करती है। साल 2005 में ही आर्थिक अपराधों की जांच करने का अधिकार ईडी (Enforcement Dicrectorate) को दिया गया। यह संस्था साल 1 मई 1956 को ही अस्तित्व में आ गई थी। तब इसका काम आर्थिक अपराधों और फॉरेन एक्सचेंज रेग्युलेशन एक्ट, 1947 (FERA) के तहत मिले निर्देशों का पालन करना था। तब इसका नाम एनफोर्समेंट यूनिट था। साल 1957 में इसका नाम बदलकर ईडी किया गया। साल 1873 में नया FERA पारित हुआ। 4 साल बाद, यह विभाग डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स के आधीन आ गया। अब यह विभाग, वित्त मंत्रालय रेवेन्यू विभाग के आधीन आता है।
समझिए किन बदलावों से मजबूत होती गई ईडी
FERA, 1947 की जगह नया एक्ट फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट, 1999 में आया।यह एक्ट फेमा (FEMA) के नाम से चर्चित हुआ। 1 जून 2000 को जब दुनियाभर में एंटी मनी लॉन्ड्रिग नियम-कानूनों पर बहस छिड़ी तो नया कानून बना। यह वही दौर था, जब दुनियाभर में मनी लॉन्ड्रिंग और व्हाइट कॉलर क्राइम पर बहस छिड़ी थी। संसद से पीएमएलए एक्ट 2002 पारित हुआ। ईडी को इस एक्ट के जरिए छानबीन, जांच और प्रक्रियागत अधिकार मिले। 1 जुलाई 2005 तक, ईडी, देश की अहम एजेंसी बन गई। ईडी की ताकतें साल 2018 में भी बढ़ाई गई। पड़ोसी देशों में आर्थिक अपराधी आतंकी फंडिंग और हवाला कारोबार को बढ़ावा देने लगे, देश के आर्थिक अपराधी भागकर वहां जाने लगे तो सरकार, फ्युजिटिव इकोनॉमिक अफेंडर एक्ट 2018 लेकर आई। इसका संक्षिप्त नाम FEOA है। ईडी को इससे भी जोड़ा गया। यह एक्ट 21 अप्रैल 2018 को लागू हुआ। अब ईडी की ताकतें, ज्यादा बढ़ गई हैं, जांच का दायरा भी बढ़ गया है, जिसके दुरुपयोग का आरोप भी विपक्ष लगाता रहा है।
PMLA में ऐसा क्या है कि ED से चिढ़ते हैं लोग?
साल 2019 में PMLA में केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर कुछ बदलाव किए थे। धारा 17 (1), 18 और 19 में कुछ ऐसे बदलाव हुए हैं, जिसके बाद ईडी की ताकत बढ़ गई है। मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों में अब ईडी लोगों के आवास पर छापेमारी, सर्च और गिरफ्तारी कर सकती है। पहले जब कोई एजेंसी, पीएमएलए के तहत केस दर्ज करती थी, तब ईडी के पास जांच की जिम्मेदारी आती थी।
अब ईडी के पास यह संवैधानिक ताकत है कि वह किसी व्यक्ति, संस्था के लिए खिलाफ पीएमएलए के तहत केस दर्ज कर सकती है।पीएमएलए में बदलाव को मनी बिल की तरह पेश किया गया, राज्यसभा में इस बदलाव पर चर्चा ही नहीं हुई, लोकसभा में यह पारित हुआ और राष्ट्रपति की सहमति मिल गई। यह तब हुआ, जब राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पास बहुमत नहीं थी।
मनमोहन सिंह सरकार में भी ईडी की ताकतें बढ़ाई गई थीं। पहले मनी लॉन्ड्रिंग केस में 30 लाख से ज्यादा की रकम में हेरफेर होने पर ईडी जांच कर सकती थी, साल 2013 में हुए संशोधन में अधिकार बढ़ाए गए। साल 2019 में हुए बदलावों के बाद तो यह एजेंसी और ज्यादा ताकतवर हो गई। सेक्शन 45 जुड़ने की वजह से ईडी के पास अधिकार आया कि ईडी बिना किसी वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है। ईडी को अगर लगता है कि किसी संपत्ति का निर्माण गैरकानूनी तरीके से हुआ है तो वहां भी ईडी कार्रवाई कर सकती है। ईडी के अधिकारियों के सामने दिए गए बयान को कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया जा सकता है। मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े अपराधों में आरोपी अगर FIR की कॉपी चाहे तो उसे भी जांच एजेंसी देने के लिए बाध्य नहीं है।
महीनों की जेल, लंबी कोर्ट प्रोसीडिंग, इस वजह से होती है असली परेशानी
ईडी की चार्जशीट जब दायर होती है, तब सूचित किया जाता है कि आरोपी पर किन धाराओं के तहत केस दर्ज हुआ है। ईडी 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दायर करती है। इस अधिनियम की वजह से खुद को दोषमुक्त साबित करने का भार भी दोषी पर ही होता है। इस एक्ट के तहत गिरफ्तार हुए शख्स की हिरासत लंबी खिंचती है, महीनों तक जमानत नहीं मिलती। यही वजह है कि मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और अरविंद केजरीवाल जैसी राजनीतिक हस्तियां, दिल्ली के कथित आबकारी नीति घोटाले में महीनों तक जेल में ही रहीं।
विपक्ष का यह भी कहना है कि ईडी के पास इस तरह के बेशुमार ताकत से हिरासत में रह रहे लोगों का उत्पीड़न होता है। उन्हें जटिल कानूनों की वजह से जमानत तक नहीं मिल पाती है। विपक्ष धारा 19 में भी संशोधन की मांग करता है, जिसके तहत ईडी को यह अधिकार मिला है कि अगर किसी पर शक हो तो उसे जांच एजेंसी गिरफ्तार कर सकती है। विपक्ष यह भी आरोप लगाता है कि केंद्रीय एजेंसी सरकार के इशारे पर काम करती है, राजनीतिक रंजिश निकालने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, सरकार का तर्क है कि मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर अपराधों की रोकथाम के लिए ऐसे नियम-कायदों की जटिलता ही अनिवार्य है।