मध्य प्रदेश की अनीता नर्रे ने अपने पति शिवराम के घर वापस जाने से मना कर दिया, क्योंकि उनके घर में शौचालय नहीं था। सोचकर हैरानी होती है न कि कोई इतनी छोटी सी बात पर अपने पति और ससुराल को कैसे छोड़ सकता हैं? 2017 में अक्षय कुमार की फिल्म 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' में इस सच्ची घटना को बॉलीवुड ने बहुत सही तरीके से पेश किया। इस फिल्म ने बताया कि समाज में अब भी ऐसी कई महिलाएं है, जो खेतों में टॉयलेट करने जाती है। 

घर बड़े पर टॉयलेट नहीं

कई घर ऐसे हैं कि बाहर से दिखने में काफी सुंदर हैं और इनका साइज़ भी काफी बड़ा है लेकिन इन घरों में आपको टॉयलेट नदारद मिलेंगे। घर में किचन है, कमरा है, बड़ा सा हॉल है, लेकिन टॉयलेट नहीं है। फिल्मों में भी ऐसा दिखाया गया है और कई रियल लाइफ इंसिडेंट भी ऐसे हैं कि आज भी महिलाएं कम खाना खाती हैं, ताकि वह टॉयलेट जाने से बच सकें। अभी भी 60 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जो अंधेरा होने का इंतजार करती हैं, ताकि वह खेतों में जाकर खुद को हल्का कर सकें।

 

गांव छोड़िए, शहर की महिलाएं को भी होती है दिक्कत

यह तो हो गई बात गांव की महिलाओं की। लेकिन जब बात शहरों की महिलाओं की आती है, तो हम पाते हैं कि उन्हें भी टॉयलेट की समस्या का सामना करना पड़ता है। बस अंतर यह है कि गांव की महिलाएं टॉयलेट न होने की समस्या का सामना करती हैं तो शहर की महिलाओं को गंदे पब्लिक टॉयलेट की समस्या का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि महिलाओं को वर्क प्लेस में भी गंदे टॉयलेट यानी वॉशरूम में सैनिटेशन और हाइडीन न होने की समस्या का सामना करना पड़ता है।

महिला-पुरुष के लिए एक ही टॉयलेट

हर साल 19 नवंबर को वर्ल्ड टॉयलेट डे मनाया जाता है। ऐसे में खबरगांव ने कामकाजी महिलाओं (वर्किंग वीमेन), स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों और कॉलेज जाने वाले छात्राओं से बात की। टॉयलेट डे को देखते हुए इन सभी से एक ही सवाल किया गया और वो था- 'आप पब्लिक टॉयलेट का कितना इस्तेमाल करती हैं?'

 

खबरगांव ने एक वर्किंग महिला से बात की। उनका नाम प्रिया हैं और वह जसोला विहार में एक पीआर कंपनी में काम करती हैं। हमने उनसे पूछा कि क्या आप अपने वर्कप्लेस का वॉशरूम इस्तेमाल करती हैं? तो उनका जवाब चौंकाने वाला था।

 

प्रिया ने कहा, 'मेरे ऑफिस में एक ही कॉमन वॉशरूम है और जब मैंने पहली बार कंपनी ज्वाइन की तो मुझे इसका बिल्कुल अंदाजा नहीं था। ज्वाइनिंग के पहले दिन ही मुझे झटका लगा। मैंने देखा कि एक ही वॉशरूम है जिसका इस्तेमाल पुरुष और महिलाएं दोनों बारी-बारी से करते हैं। मैं वॉशरूम जाने से कतराती हूं और अगर जाना भी होता है तो मैं Squat करती हूं। पीरियड्स के टाइम तो मुझे बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।'

शॉपिंग मॉल की भी हालत खराब

इसी सवाल पर दशा ने कहा, 'जब भी मुझे शॉपिंग के लिए बाहर जाना होता है तो मैं घर पर वॉशरूम यूज़ करने के बाद निकलती हूं। मुझे बाहर का वॉशरूम यानी पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करना बिल्कुल पंसद नहीं है। मुझे इंफेक्शन का डर लगा रहता है।' 

 

देश की राजधानी दिल्ली के राजीव चौक से बाहर निकलते ही कुछ कॉलेज की लड़कियों से भी खबरगांव ने बात की। हमने उनसे पूछा कि 'क्या आप पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करने में कंफर्टेबल है।' तो जवाब आया- नहीं। कॉलेज की छात्राओं का कहना है कि जब बहुत इमरजेंसी होती है तभी पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं।

क्या कहते हैं आंकड़े?

जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 में स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत से ही 5 साल की अवधि के दौरान, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 10 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (Individual Household latrines) बनाए गए। 2 अक्टूबर 2019 तक सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने खुद को ओडीएफ (Open Defecation Free) घोषित कर दिया। ओडीएफ यानी कि उस राज्य में कोई भी खुल में शौच के लिए नहीं जाता है। हालांकि,  राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह दी गई थी कि वह मिशन के तहत ऐसे घरों जो कि छूट गए हैं या नए घरों को कवर करें और शौचालय का निर्माण करें। अक्टूबर 2014 से अब तक सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 11 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत पारिवारिक शौचालय और 2.23 लाख सामुदायिक स्वच्छता परिसर (सीएससी) बनाए गए हैं।