संजय सिंह, पटना: बिहार के विधानसभा चुनाव से पहले और चुनाव के बीच राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के बीच स्थिति सहज नहीं थी। चुनाव के पहले भी RJD और कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान जारी रही। चुनाव में बुरी तरह पराजय के बाद दोनों दल एक-दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं। कांग्रेस विधायक दल के पूर्व नेता शकील अहमद खां और चुनाव मैदान में उतरे कांग्रेस के सात प्रत्याशियों ने तो यहां तक कह दिया है कि कांग्रेस का RJD के साथ बना रहना आत्मघाती कदम हो सकता है। इधर RJD के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा है कि कांग्रेस RJD के दम पर ही चुनाव में 6 सीटें ला पाई, जनाधार तो सिर्फ RJD के पास बचा है।

 

मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि कांग्रेस के पास अपना जनाधार नही है। इस ताजा विवाद से लगता है कि बिहार में महागठबंधन में शामिल दोनों बड़े दल अपने अपने रास्ते पर अलग तरीके से चलेंगे। पिछले दो चुनाव में देखें तो कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। इस बार तो आरजेडी का प्रदर्शन भी बहुत खराब रहा।

क्यों भिड़े कांग्रेस और RJD के नेता?

 

चुनाव के पूर्व से ही सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और RJD के नेता आपस में उलझे रहे। कांग्रेस ने अंत समय तक तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया। इससे दोनों दलों के बीच खटास बढ़ी। तल्खी को कम करने के लिए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को हस्तक्षेप करना पड़ा। अशोक गहलोत के हस्तक्षेप के बाद तेजस्वी महागठबंधन में मुख्यमंत्री का चेहरा बने। 

 

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कांग्रेस और RJD के बीच सीटों के बंटवारों को लेकर भी विवाद बना रहा। कांग्रेस जहां 70 सीट मांग रही थी, वहीं RJD 40 सीटों से ज्यादा देने को तैयार नहीं थी। अंत में 60 सीटों पर समझौता हुआ। चुनाव परिणाम आने के बाद यह विवाद और बढ़ गया। चुनाव में 11 स्थानों पर दोस्ताना संघर्ष हुआ। कांग्रेस का कहना है कि इससे वोटरों के बीच नकारात्मक संदेश गया। अगर सब कुछ बेहतर रहता तो शायद चुनाव परिणाम भी बेहतर होती।

क्या बोले कांग्रेस के नेता?

 

कांग्रेस विधायक दल के पूर्व नेता डॉ. शकील अहमद खां ने कहा, 'महागठबंधन में RJD के साथ कांग्रेस का बना रहना घाटे का सौदा है। चुनाव के बाद महागठबंधन अब केवल औपचारिक रह गया है। कांग्रेस को RJD के साथ बने रहने से ना तो चुनावी लाभ मिलेगा और ना ही संगठन मजबूत होगा। RJD के साथ रहने से कांग्रेस अपना राजनीतिक स्पेस लगातार खोती जा रही है। चुनाव मैदान में उतरे कांग्रेस के सभी सात प्रत्याशियों की भी यही राय है। प्रत्याशियों ने पार्टी के शीर्ष नेताओं को यह बता दिया है कि RJD के साथ बना रहना कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। इसलिए कांग्रेस को बिहार में अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए RJD से अलग हटकर राजनीति करने की जरूरत है।'

 

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उधर आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा है, 'RJD के ही जनाधार का इस्तेमाल कर कांग्रेस छह सीटों पर चुनाव जीती। RJD ने 142 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसके खाते में 25 सीटें आई, जबकि कांग्रेस 60 सीटों पर चुनाव लड़ी और मात्र छह सीट पर विजयी रही। इससे स्पष्ट होता है कि कांग्रेस का अपना कोई जनाधार नहीं है। अगर कांग्रेस को ज्यादा सीटें नही दी जातीं तो RJD का जनाधार और ज्यादा बढ़ता। कांग्रेस के पास अपना कोई वोट बैंक नही है। RJD के साथ समझौता करके कांग्रेस को राजनीतिक लाभ मिला। अगर कांग्रेस के नेता अलग रास्ते पर चलना चाहते हैं तो चलें, पार्टी उन्हें रोकेगी नहीं। RJD के इतना जनाधार पूरे प्रदेश में किसी दूसरे दल का नहीं है। चुनाव में क्या हुआ, यह यहां की जनता अच्छी तरह जानती और समझती है।'