पिछले कुछ विधानसभा चुनाव में बिहार के मतदान में खास ट्रेंड देखने को मिला। प्रदेश की सत्ता में कौन दल राज करेगा? यह काफी हद तक बिहार की महिला मतदाता तय कर रही हैं। 2010 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की प्रचंड जीत के पीछे महिला मतदाताओं की भूमिका अहम रही। 2016 में नीतीश सरकार ने बिहार में शराब बंदी का फैसला महिलाओं को ध्यान में रखकर ही किया था।
बिहार में 2010 से अब तक महिलाओं ने हर विधानसभा चुनाव में पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान किया। चुनाव में महिलाओं की भागेदारी बढ़ रही है, लेकिन बिहार की सत्ता में आज भी पुरुषों का ही वर्चस्व है।
राबड़ी देवी बिहार की इकलौती महिला मुख्यमंत्री रही हैं। पिछले 78 साल में बिहार में सिर्फ 286 महिलाओं को विधायक बनने का मौका मिला। आज बात करेंगे 1951 से 2020 तक बिहार विधानसभा में महिला नेताओं के प्रतिनिधित्व की।
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महिलाओं ने कैसे पलटी चुनावी बाजी?
पहले समझते हैं कि मतदान में महिलाओं की अधिक भागेदारी का चुनाव नतीजों पर क्या असर हुआ? चुनाव आयोग के पास 1962 से बिहार में महिला मतदाताओं की वोटिंग का रिकॉर्ड है। पिछले 63 साल में महिला मतदाताओं का वोटिंग प्रतिशत बढ़ता जा रहा है। 2010 के विधानसभा चुनाव में पहली बार महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान किया। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में भी यही सिलसिला जारी रहा।
2005 विधानसभा चुनाव: साल 2015 में बिहार में दो बार लोगों को विधानसभा चुनावों का सामना करना पड़ा। पहले चुनाव फरवरी महीने में संपन्न हुए। इस चुनाव में 42.51 फीसदी महिला और 49.94 फीसदी पुरुष मतदाताओं ने वोटिंग की। दोनों के बीच 7.43 फीसदी का अंतर रहा। नतीजा यह रहा कि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा और छह महीने बाद अक्टूबर में दोबारा विधानसभा चुनाव हुए।
इस बार 44.62 फीसदी महिला वोटर और 47.02 फीसदी पुरुष मतदाताओं ने वोट किया। महिलाओं के मतदान में 2.11 फीसदी की वृद्धि हुई और पुरुषों की हिस्सेदारी 2.92 फीसदी घटी। महिला और पुरुष मतदाताओं के बीच 2.4 फीसदी के अंतर का असर यह हुआ कि छह महीने पहले 92 सीटों पर जीतने वाले एनडीए को 143 विधानसभा क्षेत्रों में सफलता मिली।
2010 विधानसभा चुनाव: यह पहला चुनाव था जब महिला मतदाताओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से आगे निकला। महिलाओं ने 54.44 और 51.11 फीसदी पुरुष मतदाताओं ने वोटिंग में हिस्सा लिया। दोनों के बीच 3.33 फीसदी वोट के अंतर का फायदा सीधे तौर पर जेडीयू गठबंधन को हुआ। 2005 विधानसभा चुनाव में आरजेडी को जहां 23.5 फीसदी मत मिले थे तो वहीं 2010 में 4.7 फीसदी की कमी के साथ 18.8 प्रतिशत वोट मिले। इस बीच जेडीयू के मतों में 0.1 और भाजपा के वोट में 1.1 फीसदी का इजाफा हुआ। इस मामूली अंतर का असर सीटों पर भारी पड़ा। 2005 की 88 सीटों की तुलना में जेडीयू ने 115 सीटें जीतीं। भाजपा ने जहां 55 सीटों पर कामयाबी हासिल की थी तो वहीं 2010 में यह आकंड़ा 91 तक पहुंच गया।
साल | महिलाओं का वोट प्रतिशत | पुरुष वोट प्रतिशत |
2010 | 54.44 | 51.11 |
2015 | 60.48 | 53.2 |
2020 | 59.7 | 54.6 |
2010 में सबसे अधिक तो 1972 में कोई महिला विधायक नहीं बनी
बिहार में सबसे अधिक एक साथ 34 महिलाओं ने साल 2010 में विधानसभा चुनाव जीता था। 1972 के विधानसभा चुनाव में कोई पहली प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सकी थी। 2020 में सबसे अधिक 370 महिलाओं ने विधानसभा चुनाव लड़ा। इसी साल सर्वाधिक 302 महिला प्रत्याशियों की जमानत भी जब्त हुई। 1967 में 6, 1969 में 4 और 2005 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 3 महिला प्रत्याशियों को कामयाबी मिली। 2005 में ही अक्टूबर महीने में दोबारा विधानसभा चुनाव होने पर 25 महिलाओं ने जीत दर्ज की।
बिहार में कब-कितनी महिलाएं जीतकर पहुंचीं विधानसभा
- 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में 13 महिलाएं बिहार विधानसभा पहुंची थीं।
- 1957 के विधानसभा चुनाव में कुल 46 महिलाओं ने अपनी किस्मत आजमाई। इनमें से सिर्फ 30 को ही जीत मिली।
- 1962 के चुनाव में भी 46 महिला प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। पांच साल में ही सदन में महिला विधायकों की संख्या 30 से घटकर 25 हो गई।
- 1967 विधानसभा चुनाव में महिला प्रत्याशियों की संख्या घटकर 29 हो गई। इस साल बिहार विधानसभा में सिर्फ 6 महिला हीं पहुंचीं।
- 1969 के विधानसभा चुनाव में 45 महिला प्रत्याशियों में सिर्फ 4 को ही जीत मिली।
- 1972 में 45 महिलाओं ने चुनाव लड़ा लेकिन किसी को भी जीत नहीं मिली। 28 महिला प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी।
- 1977 के विधानसभा चुनाव में पहली बार महिला प्रत्याशियों की संख्या 50 के पार पहुंची। इस चुनाव में कुल 97 महिलाओं ने चुनाव लड़ा। 13 ने जीत हासिल हुई।
- 1980 के विधानसभा चुनाव में महिला प्रत्याशियों की संख्या में गिरावट आई। कुल 76 महिलाओं ने चुनाव लड़ा। जीत सिर्फ 11 को मिली।
- 1985 के चुनाव में पहली बार महिला प्रत्याशियों का आंकड़ा 100 के पार पहुंचा। कुल 103 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। 15 जीतकर विधानसभा पहुंचीं।
- 1990 विधानसभा चुनाव में 149 महिलाओं चुनाव लड़ा लेकिन जीत सिर्फ 10 को मिली।
- 1995 विधानसभा चुनाव में आजादी के बाद सबसे अधिक 264 महिला प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई। 11 जीतकर विधानसभा पहुंचीं। 237 महिलाओं की जमानत जब्त हुई।
- साल 2000 में महिला प्रत्याशियों की संख्या में गिरावट आई। 189 ने चुनाव लड़ा और जीत सिर्फ 19 को मिली। 145 को जमानत गंवानी पड़ी।
- 2005 में बिहार में दो बार विधानसभा चुनाव हुए। पहले चुनाव फरवरी में आयोजित किए गए। इसमें कुल 234 महिलाओं ने चुनाव लड़ा। सिर्फ 3 को जीत मिली। 187 की जमानत जब्त हुई। अक्तूबर महीने में हुए चुनाव में 138 महिलाओं ने नामांकन दाखिल किया। इनमें 25 को जीत मिली। 86 की जमानत जब्त हुई।
- 2010 के विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक 307 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था। 34 ने जीत हासिल की।
- 2015 के विधानसभा चुनाव में 28 महिलाओं को विधायक बनने का मौका मिला। किस्मत कुल 273 महिलाओं ने आजमाई थी। इनमें से 221 को अपनी जमानत गंवानी पड़ी थी।
- 2020 के विधानसभा चुनाव में 26 महिलाएं चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा पहुंचीं। 302 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई।
- इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि बिहार में महिला प्रत्याशियों की संख्या तो बढ़ रही थी लेकिन सदन में भागेदारी नहीं।
साल | मत प्रतिशत |
1962 | 32.47 |
1967 | 41.09 |
1969 | 41.33 |
1972 | 41.30 |
1977 | 38.32 |
1980 | 46.86 |
1985 | 45.63 |
1990 | 53.25 |
1995 | 55.80 |
2000 | 53.28 |
2005 | 42.51 |
2005 | 44.62 |
2010 | 54.44 |
2015 | 60.48 |
2020 | 59.69 |
नोट: आंकड़े चुनाव आयोग
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कैसे बढ़ी महिलाओं की भागेदारी?
2005 के नवंबर महीने में नीतीश कुमार ने दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली। नीतीश सरकार ने महिलाओं को केंद्र में रखकर कई योजनाओं का शुभारंभ किया। इसका असर न केवल मतदान प्रतिशत में दिखा, बल्कि उनकी सरकार को भी सीधा फायदा मिला। 2005 से अभी तक किसी भी चुनाव में महिलाओं का मत प्रतिशत नहीं गिरा है। पिछले दो दशक में महिला मतदान में वृद्धि का फायदा जदयू को मिला।
2016 में शराब बंदी का फैसला नीतीश सरकार ने इसी से प्रेरित होकर लिया था। पंचायत स्तर पर बढ़ती महिलाओं की भागेदारी से उनका राजनीतिक रूझान भी बदला है। कभी जातिगत राजनीति का केंद्र रहा बिहार आज बदलाव के दौर से गुजर रहा है। अधिकांश सियासी पर्टियां आज महिला मतदाताओं को ध्यान में रखकर अपने घोषणा पत्रों को आकार देने में जुटी हैं।
नीतीश सरकार की महिला केंद्रित योजनाएं
- पंचायतों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण
- सरकारी नौकरियों में 35 फीसदी आरक्षण
- स्कूल छात्राओं को मुफ्त साइकिल
- 1.20 करोड़ महिलाओं से जुड़े जीविका समूह