महाराष्ट्र में 23 नवंबर को हुई मतगणना के बाद महायुति को 230 सीटों के साथ भारी जीत मिली। इसमें महायुति के तीनों घटक बीजेपी को 132 सीटें, शिवसेना को 57 सीटें और एनसीपी को 41 सीटें हासिल हुईं।
बीजेपी का तो जीत का स्ट्राइक रेट 89 प्रतिशत के करीब रहा, क्योंकि बीजेपी ने कुल 149 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से उसने 132 सीटों पर जीत हासिल कर ली। यह बात सभी के लिए काफी चौंकाने वाली भी थी।
लेकिन इस जीत के पीछे बीजेपी की एक ऐसी रणनीति है जिसने काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। बीजेपी की इस भारी जीत में राजनीतिक जानकारों के मुताबिक 'स्विंग सीट' की बड़ी भूमिका रही।
क्या हैं 'स्विंग सीटें'
स्विंग सीट का मतलब उन सीटों से है जहां पर वोटिंग पैटर्न में बदलाव देखने को मिलता है यानी कि वोटर्स कभी एक तो कभी दूसरी पार्टी को वोट करते हैं और जहां पर जीत का मार्जिन बहुत कम रहा है. यानी कि ये ऐसी सीटें होती हैं जहां पर फोकस करके जीत हासिल की जा सकती है।
चुनिंदा बूथों पर किया फोकस
बीजेपी ने गठबंधन में उसे दी गई 149 सीटों में से 69 ऐसी सीटों को चिह्नित किया, जहां पर थोड़ी बहुत मेहनत करके ही जीता जा सकता था। ये ऐसी सीटें थीं जिन पर देवेंद्र फडणवीस और आशीष शेलार जैसे सीनियर नेता लड़ रहे थे।
इसके बाद 80 और ऐसी सीटें चिह्नित की गईं जिन पर बीजेपी सिर्फ 3 या 4 फीसदी वोट से हारी या जीती थी। इस तरह की सबसे ज्यादा सीटें विदर्भ क्षेत्र में थीं, जिनकी संख्या 31 थी।
इसके बाद पार्टी ने इन 80 सीटों पर स्विंग बूथों को चिह्नित किया। फिर इन बूथों को तीन वर्गों में बांटा गया। पहले वर्ग में उन बूथों को शामिल किया गया जिन पर बीजेपी जीतती आई है. दूसरे वर्ग में उन बूथों को शामिल किया गया जिन पर मतदाताओं के कभी इस पार्टी कभी उस पार्टी में आने-जाने से बीजेपी कभी जीती है कभी हारी है। तीसरे वर्ग में उन बूथों को रखा गया जिन पर बीजेपी कभी नहीं जीतती।
अब इन तीनों वर्ग के बूथों में से बीजेपी ने दूसरे वर्ग के बूथों पर फोकस किया। क्योंकि यहां पर कोशिश करके लीड ले सकती थी. महाराष्ट्र में ऐसे बूथों की संख्या 1,00,186 है जिनमें से 12 हजार बूथों को चिह्नित करके बीजेपी ने काम करना शुरू किया।
यह अपने तरह का एक अजीब प्रयोग था, जब बीजेपी कुल 12 फीसदी बूथों पर फोकस के साथ काम कर रही थी।
व्यक्तिगत स्तर पर कनेक्ट किया
बीजेपी ने इस बूथों पर लोगों से व्यक्तिगत स्तर पर कनेक्ट करने की रणनीति बनाई। इसके लिए ऐसे कॉन्टेन्ट बनाए गए जो वहां के स्थानीय मुद्दों और समस्याओं पर फोकस करने वाले थे, जिससे लोगों से बीजेपी को कनेक्ट करने में मदद मिली। फिर नागपुर, पुणे, थाणे और मुंबई में 5 कॉल सेंटर बनाए गए। 1000 कॉलर्स को 10 से 12 बूथ का जिम्मा दिया गया जिस पर उन्हें बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं से हफ्ते में एक या दो बार बात करनी थी।
अब बारी थी इन बूथों पर अलग अलग वर्गों को साधन की।
महिलाओं को कैसे साधा
महिलाओं को साधने के लिए दूसरे राज्यों की महिला नेताओं को महाराष्ट्र बुलाया गया। इसके अलावा बीजेपी ने महिला विस्तारक की नियुक्ति की जिन्हें स्कूटी उपलब्ध कराई गई ताकि वे विधानसभा में सभी लिस्टेड बूथों पर जाकर महिलाओं से मिल सकें।
इसके अलावा महिला कार्यकर्ताओं और महिला नेताओं की टिफिन मीटिंग करवाई गई। साथ ही यह भी टारगेट दिया गया कि ऐसी 50 महिलाओं से उन्हें मिलना है जिनको 'लाडकी बहिण योजना' का लाभ मिला हो. चूंकि यह काम समय रहते शुरू किया गया था इसलिए बाहर से आई महिला नेताओं का वहां की स्थानीय महिलाओं के साथ एक कनेक्ट बन गया था।
ओबीसी को कैसे साधा
वैसे तो ओबीसी महाराष्ट्र में बीजेपी का समर्थक रहा है। लेकिन फिर भी बीजेपी ने कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी और सूत्रों के मुताबिक एक मीटिंग की गई जिसमें इस बात पर विचार किया गया कि ओबीसी समुदाय के लोगों की सरकार और पार्टी के साथ जो भी मुद्दे हैं उन्हें सुलझाने की कोशिश की जाए।
खुद महाराष्ट्र के चुनाव इंचार्ज भूपेंद्र यादव ने इसके लिए ओबीसी को टारगेट करते हुए सारे ज़ोन में यात्रा की और समस्याओं को सुलझाने की कोशिश की।
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी को सूचना मिली कि मराठवाड़ा में अगर पंकजा मुंडे कुछ सीटों पर विजिट करती हैं तो वोटर्स के मन को बीजेपी के पक्ष में बदला जा सकता है। इसके लिए पार्टी ने पंकडा मुंडे को स्पेशल हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराया। पंकजा मुंडे ने इसके जरिए एक दिन में 16 से 17 जगहों पर विजिट किया।
इसके अलावा अन्य ओबीसी नेताओं जैसे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री अरुण साव ने भी कई जगहों पर कैंपेन किया।
आदिवासियों को कैसे साधा
पिछले लोकसभा चुनाव में आदिवासी बाहुल्य वाली सीटों पर बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था। इस बार बीजेपी ने आदिवासियों को साधने के लिए 24 एसटी आरक्षित सीटों और 25 ऐसी सीटों पर फोकस किया जहां पर आदिवासी वोटर्स की जनसंख्या 25 फीसदी से ज्यादा थी।
इसके लिए पार्टी ने निशांत खरे को नियुक्त किया। निशांत खरे आरएसएस से जुड़े हुए हैं और कोविड, विधानसभा व लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में काफी काम किया है।
इसके लिए उन्होंने वॉलंटियर्स की एक टीम बनाई जो बीजेपी के लिए काम कर सकें. उन्हें पेट्रोल के साथ बाइक की सुविधा दी गई। चुनाव के तीन-चार दिन पहले वे अपने क्षेत्र में हर एक वोटर के पास गए और वोटिंग वाले दिन के लिए उन्हें तैयार किया। फिर वोटिंग वाले दिन उनकी जिम्मेदारी थी कि अपने परिवार के अलावा कम से कम 5 अन्य लोगों को पोलिंग बूथ तक लाकर उन्हें वोटिंग करवाना था। इन वॉलंटियर्स ने उन आदिवासियों को पोलिंग बूथ तक लाने में मदद की जहां पर पहुंचने का कोई रास्ता नहीं था।
कितना मिला फायदा
इन चिह्नित सीटों में से बीजेपी ने उन 69 सीटों में से जीन पर कम मेहनत की गई थी 64 सीटें जीत लीं और बाकी की 80 सीटों में से बीजेपी ने 68 सीटें जीत लीं।