बहुजन समाज पार्टी (BSP) की प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक पद से हटा दिया है। वह मायावती के उत्तराधिकारी थे, अब नहीं हैं। मायावती ने साफ कहा है कि जब तक वह सक्रिय हैं, जीवित हैं, तब तक पार्टी के सारे अहम फैसले वही करेंगी। यूपी की सियासत में 3 बार दमखम से सरकार बनाने वाली बसपा, हाशिए पर है लेकिन मायावती ने अपने कद का कोई दूसरा नेता बसपा में तैयार नहीं होने दिया है। 

मायावती का यह फैसला चौंकाने वाला है। वह आकाश आनंद को पहले भी बाहर कर चुकी हैं। लोकसभा चुनावों के दौरान उग्र भाषणों को लेकर उन पर गाज गिरी थी। अब एक बार फिर उन्हें सारे पदों से हटा दिया गया है। मायावती की यह बसपा के नेताओं को एकजुट करने की रणनीति है या वह परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए ऐसा कर रही हैं, आइए समझते हैं। 

आकाश आनंद पर बार-बार गाज, क्या सोच रहीं मायावती?
बसपा से जुड़े राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मायावती, आकाश आनंद पर भ्रम की स्थिति में हैं। वह चुनावों में लगातार हाशिए पर सिमटती जा रही हैं। यूपी में कभी लोकसभा चुनावों में 19.43%  प्रतिशत जनाधार वाली पार्टी रही बसपा, 9 प्रतिशत के आसपास सिमट गई है। एक भी सीट नहीं है। विधानसभा में प्रतिनिधित्व नहीं है फिर भी मायावती न पार्टी में बड़े बदलाव कर रही हैं, न ही अपने अलावा किसी नेता को आगे आने दे रही हैं।

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आकाश आनंद पर बार-बार गाज गिरी है लेकिन उसका नतीजा क्या निकला है, इस पर राजनीतिक के जानकार लोग भी कुछ नहीं कह पा रहे हैं। बसपा का सारा संघर्ष, चुनावों में प्रासंगिक बने रहने का है। ऐसा लग रहा है कि दलित वोटर अब कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के साथ शिफ्ट हो रहे हैं। दलित वोटरों पर अपना एकाधिकार जताने वाले मायावती, अब शायद यह संदेश देने की कोशिश कर रही हैं कि पार्टी में सिर्फ परिवार ही नहीं, जनता का भी प्रतिनिधित्व हो सकता है। वह परिवारवाद के ठप्पे से बचने के लिए भी ऐसा कर सकती हैं।

सपा-बसपा गठबंधन से मजबूत हुई थी पार्टी। (Photo Credit: PTI)

मायावती के फैसले पर चर्चा क्या है?
बहुजन समाज पार्टी के नेता गोपाल गौतम बताते हैं, 'बहन जी के इस फैसले से साफ हो गया  कि वह पार्टी में सबको मौका देना चाहती हैं। जब तक वह हैं, हमारी सर्वोच्च नेता बनी रहेंगी। वह बसपा के सभी कार्यकर्ताओं को मौका देना चाहती हैं कि वे भी अपनी प्रासंगिकता साबित करें। आकाश आनंद भी हमारे नेता हैं। हो सकता है कि पार्टी में उनकी भूमिका बदली हो।'

कुछ राजनीति के जानकारों का कहना है कि वह यह संदेश भी देना चाहती हैं कि बसपा के संगठन और सामाजिक आंदोलन में सबकी भूमिका है। वह सिर्फ परिवारवालों को ही इसके नेतृत्व का मौका नहीं देंगी। 

भाई-भतीजावाद से बचना चाहती हैं मायावती?
मायावती ने साल 2019 में आकाश आनंद को राष्ट्रीय समन्वयक के पद पर प्रमोट किया था। आकाश के पिता आनंद कुमार को बसपा उपाध्यक्ष नियुक्त किया था। उन पर भाई-भतीजावाद के आरोप लगे। पार्टी के भीतर और बाहर विरोधी दलों ने भी आलोचना की। आकाश आनंद की पार्टी में बढ़ती भूमिका लोगों को पसंद नहीं आई। पार्टी के भीतर विरोध के स्वर उठने लगे।

रविवार को बीएसपी प्रमुख ने आनंद कुमार को हटाया और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम को राष्ट्रीय समन्वयक के पद पर बहाल किया। अब साल 2022 तक उनके पास ही यह पद रहेगा। आनंद कुमार दिल्ली में रहेंगे। वह पार्टी की रणनीतियों पर काम करेंगे, कार्यकर्ताओं को संभालेंगे।

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बसपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि रामजी गौतम का काम देश का दौरा करना होगा। वह सतीश चंद्र मिश्रा की तरह मायावती के खास बने रहेंगे। केंद्रीय समन्वयक राजाराम को दक्षिण प्रभारी और महाराष्ट्र का प्रभारी नेता नियुक्त किया गया है। 

बसपा अध्यक्ष मायावती। (Photo Credit: BSP/X)

अब क्या होगा आकाश आनंद का भविष्य?
आकाश आनंद का भविष्य अधर में हैं। उन्हें 2 बार बर्खास्त किया जा चुका है। वह तेज मिजाज के नेता हैं। उनकी जनसभाओं में भीड़ होती है। वह मायावती की तरह सॉफ्ट हमले नहीं करते, वह सीधा बोलते हैं। उनकी और आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद की शैली एक सी है। बस दोनों, दोनों के धुर आलोचक हैं।

आकाश आनंद को बसपा का एक तबका पार्टी का भविष्य मानता है, दूसरा तबका उन्हें अपरिपक्व कहता है। खुद मायावती भी उन्हें अपरिपक्व राजनेता ठहरा चुकी हैं। बसपा नेता बेदी सिंह ने कहा, 'आकाश आनंद युवा हैं। वह पार्टी में दोबारा अहम भूमिका संभालेंगे। युवाओं को अगर पार्टी से जोड़ना है तो आकाश आनंद की जरूरत पड़ेगी। उनकी शैली से लोग प्रभावित हो रहे हैं।' बसपा के ही एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि अगर मायावती आकाश आनंद को आगे नहीं करती हैं तो बसपा का वोट बैंक, आजाद सामाज पार्टी की ओर खिसक सकता है। युवाओं में चंद्रशेखर आजाद का क्रेज बढ़ा है। 

चुनावों में कहां खड़ी है बसपा?
बसपा का वोट प्रतिशत लगातार गिरवाटर की ओर है। लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा का वोट शेयर यूपी में 9 फीसदी के आसपास रहा लेकिन एक भी सीट पार्टी नहीं हासिल कर पाई। साल 2019 में बसपा के पास 10 लोकसभा सीटें थीं। बसपा ने यूपी की 79 सीटों पर साल 2024 में चुनाव लड़ा था। देश की 488 सीटों पर बसपा ने प्रत्याशी उतारे लेकिन हाशिए पर रही।

राष्ट्रीय स्तर पर बसपा का वोट शेयर 2.04 प्रतिशत और यूपी में 9.39 प्रतिशत रहा। बसपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा और रालोद के साथ गठबंधन करके यूपी में 10 सीटें हासिल कर ली थीं। यूपी में ही बसपा का सबसे बड़ा वोट बैंक था, वहीं साल 2012 के बाद से हालात खराब हैं। बसपा साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में सिर्फ 1 सीट जीत पाई। साल 2017 में बसपा का वोट शेयर 22.23% से घटकर 12.88% हो गया। 

आकाश आनंद में कमी क्या है?
आकाश आनंद को बसपा में अहम जिम्मेदारी साल 2019 के लोकसभा चुनाव में ही मिली लेकिन वह पार्टी का जनाधार नहीं बढ़ा पाए। दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्हें प्रभारी बनाया गया, नतीजे शून्य रहे। राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में भी बसपा का प्रदर्शन शून्य रहा। आकाश आनंद अपने भाषणों के चलते सबके निशाने पर आ चुके हैं। इसी वजह से 2024 में एक जनसभा के बाद उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। चुनाव के बाद उनकी बसपा में तो वापसी हुई लेकिन बोलना सीमति हो गया। उन्हें पार्टी में बड़ा पद मिला। राज्य की जिम्मेदारियां खत्म हुईं, राष्ट्रीय राजनीति में भेजा गया लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला।

बसपा नेता आकाश आनंद। (Photo Credit: Akash Anand/Facebook)

बसपा की डर, चिंता, चुनौती क्या है, सब समझिए
बहुजन समाज को नया नेता मिल गया है, चंद्रशेखर आजाद। आकाश आनंद की तुलना में चंद्रशेखर आजाद की लोकप्रियता ज्यादा है। आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) बसपा से नाराज लोगों की पसंदीदा पार्टी बन गई है। अब अगर बसपा में मायावती सक्रिय नहीं हुईं तो यह वोट शेयर खिसकेगा। अखिलेश यादव भी अब पीडीए की राजनीति करने लगते हैं। पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDA) अब उनके साथ नजर आ रहा है। 

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मायावती ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले आकाश को मीडिया में रहने का आदेश दिया था। उन्होंने  राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली में मार्च निकालने की मंजूरी दी थी। यूपी में साल 2027 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और पार्टी में यह ही तय नहीं है कि मायावती के बाद दूसरे नंबर पर कौन है। मायावती अगर पहले की तरह जनसभाएं करें तो शायद कुछ लाभ हो सके। आकाश आनंद युवा हैं, उनकी सक्रियता से पार्टी को लाभ हो सकता था। 

गुम न हो जाए कांशीराम की विरासत
कांशीराम की विरासत को संभालने का दावा चंद्रशेखर आजाद करते रहे हैं। मायावती ने अशोक सिद्धार्थ को निष्कासित किया है। आकाश आनंद बाहर हो चुके हैं। मायावती का कहना है कि वह अपने राजनीतिक गुरु कांशीराम और बसपा के संस्थापक की विरासत की रक्षा करेंगी। कांशीराम भी अपने परिवार के लोगों के खिलाफ सख्त रुक अपना चुके हैं। मायवती भी दो बार यही फैसला कर चुकी हैं। यूपी में कांशीराम की विरासत पर जंग छिड़ी है। चंद्रशेखर आजाद खुद को असली वारिस बताते हैं, मायावती अपने आप को।  नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद, बहुजन राजनीति के नए चेहरे हैं। आकाश आनंद के अनिश्चित भविष्य का फायदा उनको मिल सकता है। 

सपा सेंध न लगा ले
बसपा की अस्थिर का लाभ सपा ले सकती है। सपा की पीडीए पॉलिटिक्स अब मुस्लिम यादव वोट से आगे बढ़ चुकी है। साल 2024 के लोकसभा चुनावों में पीडीए फॉर्मूला काम किया, सपा को 37 सीटें भी मिलीं। सपा भी कांशीराम को अपना नेता मानती है। बसपा का बदलाव अगर यह स्थाई है तो सबसे बड़ी चुनौती, नए नेता चुनने की है, जो पार्टी को आगे ले जा सके।