72 साल के संसदीय इतिहास में पहली बार राज्यसभा के सभापति (उपराष्ट्रपति) के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस जारी किया गया। ये प्रस्ताव विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' मंगलवार को लेकर आई है। इस प्रस्ताव पर कांग्रेस, तृणमूल, सपा, आप, राजद, झामुमो, भाकपा , माकपा और डीएमके सहित इंडिया गठबंधन के 15 दलों के 65 सांसदों के हस्ताक्षर हैं। 

 

दरअसल, विपक्ष ने सभापति पर सदन की कार्यवाही पक्षपातपूर्ण तरीके से चताने का आरोप लगाया है। वहीं, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने दावा किया है कि विपक्ष हमेशा सभापति का अपमान करता है। संसदीय जानकारों का कहना है कि ऐसे प्रस्ताव के लिए 14 दिन का नोटिस देना होता है। 20 दिसंबर को सत्र समाप्त हो जाएगा। ऐसे में सवाल है कि उपराष्ट्रपति या

राज्यसभा के सभापति को कैसे हटा सकते हैं?

क्या है अनुछेद 67 बी और 92?

संविधान के अनुछेद 67 बी और 92 में इसका प्रावधान है। राज्यसभा के कम से कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर से प्रस्ताव लाने के लिए 14 दिन का नोटिस देना होता है। विपक्ष ने नोटिस 10 दिसंबर को दिया, शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर को समाप्त हो रहा है। ऐसे में 14 दिन की अवधि बाकी नहीं है। जानकारी के लिए बता दें कि राष्ट्र्पति को हटाने के लिए राज्यसभा में सामान्य बहुमत मिलना चाहिए। सदन में फिलहाल 237 सदस्य हैं, ऐसे में प्रस्ताव पास करवाने के लिए 120 सदस्यों का समर्थन चाहिए। इसके बाद इसे लोकसभा में भी बहुमत से मंजूर कराना होगा।

 

अगर प्रस्ताव मंजूर हो गया तो आगे क्या?

अगर प्रस्ताव मंजूर हुआ तो राज्यसभा सचिवालय नोटिस पर विचार करता है। सभी शर्ते पूरी होने पर इसे सदन में पेश किया जाता है। प्रस्ताव सदन में आने पर उपसभापति की अध्यक्षता में मतविभाजन होता है। प्रस्ताव पर बहस भी होती है। सवाल यह भी है कि क्या यह प्रस्ताव अगले सत्र में जारी रहेगा? वैसे तो सदन में लाए गए नोटिस सत्र समाप्ति के साथ ही खत्म हो जाता है। ऐसे में यह प्रस्ताव भी भी इसी सत्र के साथ 20 दिसंबर को खत्म हो जाएगा।