ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक थे। उनकी पारिवारिक विरासत बेहद समृद्ध थी। वह देश के उप प्रधानमंत्री देवीवाल के बेटे थे। ओम प्रकाश चौटाला पर वैसे तो भ्रष्टाचार के कई संगीन आरोप लगे, एक केस में सजा भी हुई लेकिन 90 की दशक में एक ऐसी घटना हुई थी, जो उन पर एक दाग की तरह देखी जाती है।
साल 1989 में जब देश में वीपी सिंह की सरकार बनी थी, तब देवी लाल चौधरी हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। उनकी जिम्मेदारी बढ़ चुकी थी और उन्हें उप प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला। वह केंद्र गए तो हरियाणा के मुख्यमंत्री का पद खाली हो गया। तब उन्होंने अपने ओम प्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया।
कैसे लिखा गया महम कांड?
ओम प्रकाश चौटाला सीएम तो बन गए लेकिन हरियाणा विधानसभा की सदस्यता उनके पास नहीं थी। संवैधानिक नियमों के मुताबिक मुख्यमंत्री बनने के 6 महीने के भीतर उन्हें विधानसभा का सदस्य बनना था। महम सीट पर उपचुनावों के लिए वह उतरे। महम की खाप पंचायत ने ओपी चौटाला के खिलाफ फैसला लिया। खाप ने तय किया कि आनंद सिंह दांगी यहां से चुनाव से लड़ेंगे। ओपी चौटाला, देवीलाल के राजनीतिक वारिस थे। उन्हें हरियाणा में लोग बेहद पसंद करते थे लेकिन खाप ही उनके खिलाफ हो गई थी। उनके सारे सियासी दांव-पेंच फेल होते नजर आ रहे थे।
गलती किससे हुई, दाग क्या लगा?
महम चुनाव को जितवाने की जिम्मेदारी मिली अभय चौटाला को। 27 फरवरी 1990 को महम में बूथ कैप्चरिंग के आरोप लगे। इसी दिन कई जगहों पर बूथ कैप्चरिंग की खबरें सामने आईं। बैंसी गांव में सबसे ज्यादा विवाद भड़गा। अभय चौटाला पर अपने आरोप लगे कि वह बूथ कैप्चरिंग करा रहे हैं। आनंद सिंह दांगी के समर्थक बौखला गए और स्कूल को घेर बैठे। जब यह सब हुआ, तब वह राज्य के मुख्यमंत्री थे। संदेश गया कि गोली, चुनाव जीतने के लिए चलाई गई है।
कैसे भड़की हिंसा?
आनंद दांगी के समर्थकों ने अभय और उनके समर्थकों को स्कूल में बंद कर दिया। लोगों को भगाने की कोशिश में पुलिस ने गोलीबारी की और 20 लोग मारे गए। ओम प्रकाश चौटाला ने आदेश दिया था कि अभय को कैसे भी बाहर निकालना है। अभय चौटाला को बचाने की कोशिश में कई लोगों की जान गई। भीड़ के आक्रोश से बचाने के लिए अभय चौटाला को भी पुलिसकर्मियों के कपड़े पहनाए गए। भीड़ नए एक सिपाही को मार डाला, भीड़ को शक था कि यह कोई और नहीं अभय चौटाला हैं।
कैसे चली गई मुख्यमंत्री की कुर्सी?
महम कांड के बाद केंद्र सरकार पर भी दबाव बढ़ने लगा। उन्हें हटाने के लिए विपक्ष जोर देने लगा। चौधरी देवीलाल पर भी पद छोड़ने का दबाव बना। देवीलाल वीपी सिंह से नाराज हो गए और उन्होंने अपने बेटे से कहा कि इस्तीफा दे दो। 171 दिन में ही ओपी चौटाला से उनका पद छीन लिया गया। उनकी जगह पर बनारसी दास गुप्ता को 22 मई 1990 में मुख्यमंत्री बनाया गया। वह भी महज 41 दिनों में विदा हो गए।
चौधरी देवीलाल तक पहुंची आंच
जैसे ही ओपी चौटाला ने कुर्सी गंवाई, देवीलाल नाराज हो गए। उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जनता दल के नेताओं ने मानाया तब जाकर वह मांगे। 12 जुलाई 1990 को वीपी सिंह और देवीलाल के बीच बैठक हुई। इस बार सहमति बनी कि ओपी चौटाला ही सीएम होंगे। वह 5 दिन के लिए मुख्यमंत्री भी बने लेकिन सरकार गिर गई। वीपी सिंह ने देवीलाल चौधरी को अपनी कैबिनेट से बाहर कर दिया था।