साल 2005 में राबड़ी देवी की सत्ता से विदाई के साथ बिहार में नीतीश कुमार के एकछत्र राज की नींव पड़ी। हालांकि इससे पहले महज 7 दिन के सीएम नीतीश कुमार 2000 में बन चुके थे। साल 2005 में बिहार की जनता को दो बार विधानसभा चुनाव का सामना करना पड़ा। पहले चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा और बाद में अक्टूबर महीने में दोबारा विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को बहुमत मिला। नीतीश कुमार ने दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली। इस चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) को 88 और बीजेपी को 55 सीटों पर जीत मिली। 143 सीटों के साथ एनडीए की पहली बार बिहार में सरकार बनी।  

 

कांग्रेस ने पहली बार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) के तहत राष्ट्रीय जनता दल (RJD), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिलकर बिहार में विधानसभा का चुनाव लड़ा। गठबंधन को 65 सीटों पर सफलता मिली। तीसरा गठबंधन राम विलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी ने लेफ्ट दलों के साथ किया था। इसे 13 सीटों पर कामयाबी मिली। यह पूरी कहानी थी 2005 विधानसभा चुनाव की। मगर आज बात उस चुनाव की, जिसके नतीजों ने नीतीश कुमार को हैरत में डाल दिया था।

 

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जब नीतीश के आवास पर उल्लास के साथ आशंका भी दिखी

24 नवंबर 2010 की सुबह आठ बजे से बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना शुरू हुई थी। 1 अणे मार्ग स्थित नीतीश कुमार के सरकारी आवास में गहमागहमी का माहौल था। मीडिया ने एग्जिट पोल में बहुमत से नीतीश की वापसी के संकेत दिए थे। मगर चुनाव से पहले कुछ मीडिया चैनलों ने त्रिशंकु विधानसभा की संभावना जता रखी थी। 'नीतीश कुमार और उभरता बिहार' किताब के लेखक पत्रकार अरुण सिन्हा लिखते हैं, 'सीएम नीतीश कुमार के सरकारी निवास में उल्लास और खुशी झलक रही थी। मगर मन में अनहोनी की भी आशंका थी।'

जब नीतीश ने नहीं स्वीकार की बधाई

मतगणना से तीन दिन पहले नीतीश कुमार के मित्र कौशल के बेटे की सगाई मुंबई थी। यहां नीतीश कुमार भी पहुंचे थे। सभी ने नीतीश कुमार को बधाई, लेकिन नीतीश किसी की भी बधाई स्वीकार नहीं कर रहे थे। अरुण सिन्हा लिखते हैं, 'हमारी समझ से यह उनका हर स्थिति में पूरी तरह से शांत और संयत बने रहने का अद्भुत गुण था।'

पत्रकार का सर्वे, जो बिल्कुल सटीक बैठा

अपनी किताब में अरुण सिन्हा ने एक किस्से का जिक्र किया। इसमें उन्होंने नीतीश कुमार को एक पत्रकार का सर्वे बताया। मतदान खत्म होने के दो हफ्ते पहले एक वरिष्ठ पत्रकार ने दावा किया था, 'नीतीश कुमार को 200 सीटों पर जीत मिलेगी। बाकी दलों को 43 सीटों पर लड़ना होगा। न तो लोग किसी को बता रहे हैं और न ही मीडिया थाह लगा पा रहा है। चुनाव में सुनामी आने वाली है।'

 

अरुण सिन्हा लिखते हैं, 'नीतीश के चेहरे में खुशी दिखी और उन्होंने जवाब में कहा कि यह काम का असर है। मगर अगले पल ही उनके चेहरे से चमक जा चुकी थी।' 

चौंके नीतीश, बोले- पत्रकार सही निकला

भाजपा ने जदयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी ने रामविलास पासवान की लोजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा। 141 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली जदयू ने 115 सीटों पर चुनाव जीता। भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा और 91 पर कब्जा जमाया। कुल मिलाकर एनडीए गठबंधन ने 206 सीटों पर चुनाव जीता। चुनाव नतीजों पर नीतीश कुमार ने अरुण सिन्हा से तब कहा, 'आखिरकार वह पत्रकार सही था। बाकी दलों को 43 सीटों पर ही हिस्सा बांटना पड़ेगा। यह कोई सुनामी नहीं है, बल्कि उससे भी बड़ी कोई चीज है।' 

 

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2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू की आंधी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि लालू प्रसाद की पत्नी और पूर्व सीएम राबड़ी देवी को राघोपुर और सोनपुर दोनों विधानसभा सीट से चुनाव हारना पड़ा। राम विलास पासवान की पार्टी ने 75 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत सिर्फ 3 सीटों पर ही मिली।

 

168 विधानसभा सीटों पर आरजेडी ने अपनी किस्मत आजमाई थी। मगर उसे 22 सीटों पर ही सफलता मिली। सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस सिर्फ 4 सीटों पर ही सिमट गई। यह बिहार में कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है। 

प्रंचड समर्थन से हैरत में थे नीतीश

प्रचंड जीत के साथ ही नीतीश कुमार को बधाई देने वालों का तांता लग गया। सोनिया गांधी, लालू यादव और पी. चिदंबरम समेत विपक्ष के तमाम नेताओं के फोन आने लगे थे। जनता के प्रचंड समर्थन ने नीतीश कुमार को भी हैरत में डाल दिया था। उन्हें सत्ता में वापसी की तो उम्मीद थी लेकिन इतनी प्रचंड जीत की नहीं। चुनाव परिणाम से एक दिन पहले ही लाल यादव ने एग्जिट पोल को खारिज कर दिया था और दावा किया कि बिहार में आरजेडी की सरकार बनेगी। मगर नतीजों में पार्टी औंधे मुंह गिर चुकी थी।