लोकसभा चुनाव में बना विपक्षी INDIA गठबंधन सहज कभी नहीं रहा। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी और कांग्रेस में सहमति नहीं बन पाई। विपक्षी होकर भी मायावती कभी इसका हिस्सा नहीं बनीं और जो दल गठबंधन में शामिल हुए वे भी कई मुद्दों पर अलग-अलग राग अलापते रहे। हर बार यही लगता रहा कि यह गठबंधन चलेगा ही नहीं।
महाराष्ट्र में चुनावी नतीजे आने के बाद इस गठबंधन के भविष्य को लेकर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं। करारी हार के बाद शिवसेना (उद्धव बाला साहब ठाकरे) का भविष्य खतरे में नजर आ रहा है। यही वजह है कि उद्धव ठाकरे पर अब दबाव बन रहा है कि वह INDIA गठबंधन से बाहर आकर अपनी मूल विचारधारा पर लौट जाएं। आम आदमी पार्टी (AAP) पहले ही हरियाणा और दिल्ली में कांग्रेस से अलग राह पकड़ चुकी है। अब ममता बनर्जी भी संसद सत्र को लेकर कांग्रेस को आंख दिखा रही हैं कि बहुत हंगामा करने की जरूरत नहीं है और संसद सत्र को आराम से चलने देना चाहिए।
लोकसभा चुनाव की बात करें तो महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों में मिलकर चुनाव लड़ने से INDIA गठबंधन को फायदा मिला था। वहीं, बिहार और दिल्ली में कोई खास कामयाबी नहीं मिली। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की राह अपनाई और जो सीटें मिलीं वह उनकी ही पार्टी को मिलीं। कई अन्य राज्यों में भी गठबंधन के साथियों के रिश्ते ऐसे ही खट्टे-मीठे रहे। लोकसभा चुनाव में ही समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और कुछ अन्य दल एक राज्य में साथ लड़े तो दूसरे राज्य में इनकी बात नहीं बनी। यही हाल कांग्रेस और लेफ्ट का भी रहा। यही वजह है कि शुरुआत से ही इन दलों के बीच आपसी सहमति बनाने में हर बार दिक्कत आती रही है। महाराष्ट्र में भी यह देखने को मिला और आपसी सहमति से सीट बंटवारा न होने के चलते भी MVA को नुकसान हुआ।
महाराष्ट्र से होगी शुरुआत?
रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस और एनसीपी (SCP) के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बाद शिवसेना (UBT) को लोकसभा चुनाव में तो ठीकठाक कामयाबी मिली थी लेकिन विधानसभा चुनाव में कोई फायदा नहीं हुआ। अब विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने वाले प्रत्याशियों ने मांग की है कि MVA का साथ छोड़कर अकेले चुनाव लड़ना चाहिए। इन नेताओं का कहना है कि महा विकास अघाड़ी के साथ रहकर चुनाव लड़ने का कोई फायदा नहीं मिला। ऐसे में हो सकता है कि उद्धव ठाकरे बीएमसी के चुनाव में MVA का साथ छोड़ दें और अकेले ही चुनाव में उतरें। अगर ऐसा होता है तो यह औपचारिक रूप से INDIA गठबंधन के टूटने की शुरुआत हो सकती है।
TMC का अलग रुख
संसद सत्र में कांग्रेस की अगुवाई वाले INDIA गठबंधन के ज्यादातर दल गौतम अदाणी पर लगे आरोपों को लेकर सदन में चर्चा चाहते हैं। इसको लेकर वे सरकार पर दबाव बना रहे हैं और खूब हंगामा हो रहा है। अब ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने अलग रुख अख्तियार कर लिया है। टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा है, 'TMC चाहती है कि संसद चले ताकि लोगों के मुद्दों को उठाया जा सके। अदाणी के मुद्दे को लेकर संसद में हो रहे व्यवधान के चलते अन्य जरूरी मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पा रही है।'
टीएमसी का कहना है कि वह पश्चिम बंगाल में कुपोषण, बेरोजगारी, मणिपुर हिंसा, खाद्य सामग्री की कमी, महिला सुरक्षा बिल जैसे मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार को घेरना चाहती है। यही वजह है कि वह INDIA गठबंधन से अलग नजरिया रख रही है। वैसे भी पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव रहे हों या लोकसभा चुनाव, TMC ज्यादातर अकेले ही चुनाव लड़ती रही है और लेफ्ट और कांग्रेस से उसे विशेष सहानुभूति भी नहीं है। दिल्ली में भले ही ममता बनर्जी इंडिया गठबंधन का सदस्य दिखें लेकिन बंगाल पहुंचते ही उनका रुख अलग हो जाता है।
नहीं बन रही बात
लोकसभा चुनाव से बाद से जिन राज्यों में भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, वहां विपक्षी गठबंधन के साथी सहज नहीं रहे हैं। आम आदमी पार्टी की हरियाणा में कांग्रेस से बात नहीं बनी थी और वह अकेले ही चुनाव में उतर गई। महाराष्ट्र और हरियाणा में समाजवादी पार्टी सीटों के बंटवारे पर बात करना चाहती थी लेकिन वहां भी बात नहीं बनी। उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में भी यही हुआ और कांग्रेस ने सीटों के बंटवारे से असंतु्ष्ट होकर चुनाव से ही पैर खींच लिए। दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए AAP ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन की कोई संभावना नहीं है।
ऐसे में इंडिया गठबंधन का भविष्य अब क्या होगा और वह आगे क्या करेगा यह काफी हद तक उद्धव ठाकरे के रुख पर निर्भर करेगा। अगर उद्धव ठाकरे अलग राह पकड़ते हैं तो बाकी साथियों को रोके रह पाना INDIA गठबंधन की सीनियर पार्टनर कांग्रेस के लिए बेहद मुश्किल हो जाएगा।