संसद में संस्कृत पर नई रार ठन गई है। मंगलवार को लोकसभा में स्पीकर ओम बिरला और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) सांसद दयानिधि मारन के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली। उन्हें ऐतराज था कि सदन की बहस का संस्कृत में क्यों अनुवाद हो रहा है, जबकि संस्कृत बोलेने वाले लोगों की संख्या बेहद कम है।  

संसद की अनुवाद सूची में संस्कृत को भी शामिल किया गया है। भाषाओं की सूची में 6 भाषाएं जोड़ी गई हैं। ये भाषाएं बोडो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संस्कृत और उर्दू को जोड़ा गया है। डीएमके के सांसदों ने तत्काल इसका विरोध करना शुरू कर दिया।

संसद में संस्कृत पर जंग क्यों छिड़ी?
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने ऐलान किया कि अब सदन की कार्यवाही का संस्कृत सहित 22 भाषाओं में अनुवाद किया जाएगा। तत्काल इस पर टोकते हुए दयानिधि मारन ने कहा, 'क्या आप मुझे बता सकते हैं कि संस्कृत किस राज्य की आधिकारिक भाषा है?'

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दयानिधि मारन ने कहा, 'ऐसी भाषाओं के लिए अनुवाद का स्वागत है जो आधिकारिक राज्य भाषाएं हैं। करदाताओं का पैसा ऐसी भाषा पर क्यों बर्बाद किया जा रहा है जो संचार योग्य भी नहीं है? यह भारत के किसी भी राज्य में नहीं बोली जाती है और कोई भी इस भाषा में बात नहीं करता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक केवल 24,821 लोग ही संस्कृत बोलते हैं। जब यह डेटा उपलब्ध है तो करदाताओं का पैसा संघ की विचारधाराओं को आगे बढ़ाने के लिए क्यों बर्बाद किया जाना चाहिए।'



स्पीकर ने क्या कहा?
दयानिधि मारन के बयान पर जवाब देते हुए लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा, 'आप किस देश में रह रहे हैं। यह भारत है। भारत की प्राथमिक भाषा संस्कृत रही है।'

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संसद में बीजेपी ने जताई नाराजगी
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार को डीएमके सांसद दयानिधि मारन के बयान की आलोचना की। उन्होंने कहा, 'लोकसभा की कार्यवाही का एक साथ अनुवाद करने वाली भाषाओं में संस्कृत को भी शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक भाषा को कम करके दूसरी भाषा को बढ़ावा देने की कोई जरूरत नहीं है।'