13 अक्तूबर 2024। बिहार के पूर्णिया लोकसभा सीट से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव दोपहर 3.48 बजे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट करते हैं। वे लिखते हैं, 'यह देश है या हिजड़ों की फौज, एक अपराधी जेल में बैठ चुनौती दे लोगों को मार रहा है,सब मूकदर्शक बने हैं। कभी मूसेवाला,कभी करणी सेना के मुखिया, अब एक उद्योगपति राजनेता को मरवा डाला। कानून अनुमति दे तो 24 घंटे में इस लॉरेंस बिश्नोई जैसे दो टके के अपराधी के पूरे नेटवर्क को खत्म कर दूंगा।
लोगों को लगता है कि पप्पू यादव ने 'हथियार छोड़ा है, चलाना नहीं भूले हैं।' उनके 'सहयोगी' बिहार में आज भी सक्रिय हैं, उन्हें अपने 'बाहुबल' पर भरोसा है, वे जेल में बंद लॉरेंस बिश्नोई गैंग को खत्म कर सकते हैं। मीडिया में खबरें चलती हैं कि 17 दिसंबर 1995 की रात को कुच हथियार पुरुलिया के झालदा, खटौंगा, मारामऊ और कई गावों में हथियार चलाते हुए भारतीय सीमा पार कर गया था।
कहा गया कि सैकड़ों हथियारों में से कुछ हथियार पप्पू यादव के पास आज भी हैं। यह भी दावा किया गया कि पप्पू यादव राजनीति में हैं लेकिन उनका अतीत दंबग बाहुबली वाला ही रहा है, न वे कमजोर हुए हैं, न ही उनके सहयोगी। वे लॉरेंस बिश्नोई गैंग को खत्म कर सकते हैं।
बाहुबली पप्पू यादव, अचानक कैसे हुए कमजोर?
पप्पू यादव को बाद में ये लगने लगा कि वे ज्यादा बोल गए हैं। वे इस बयान से दूरी बनाने लगे, बातें घुमाने लगे। अब उन्होंने कहा है कि लॉरेंस बिश्नोई गैंग से उन्हें जान से मारने की धमकी मिली है, इसलिए सरकार उन्हें सुरक्षा मुहैया कराए। उन्होंने कहा है कि लॉरेंस बिश्नोई गैंग के प्रमुख ने उन्हें धमकी दी है, इसलिए केंद्र और राज्य सरकार तत्काल सुरक्षा मुहैया कराए।
अब सवाल ये है कि अगर पप्पू यादव 24 घंटे में लॉरेंस गैंग को खत्म करने की बात कह रहे थे तो अचानक परिस्थितियां कैसे बदल गईं, वे अचानक इतने कमजोर कैसे हो गए। क्या वे कभी मजबूत भी थे? आखिर क्या वजह है कि उन्हें बाहुबली का तमगा मिला है।
आपराधिक रहा है पप्पू यादव का अतीत
पप्पू यादव का इतिहास आपराधिक रहा है। साल 1990 के दशक में पप्पू यादव, आनंद मोहन, अनंत सिंह और शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी। पप्पू यादव, आर्थिक तौर पर बेहद मजबूत परिवार से आते थे और उनकी दबंगई मशहूर थी। उन पर दर्जनों आपराधिक केस दर्ज थे, जिनमें वे आरोपी रहे। इन आरोपों में हत्या, अपहरण, मारपीट और हर तरह के अपराध शामिल रहे। 1991 में पप्पू यादव और आनंद मोहन के बीच सियासी जंग शुरू हो गई थी, दोनों के गैंग के बीच जमकर गोलीबारियां होती थीं। पप्पू यादव पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक अजीत सरकार की हत्या का आरोप लगा। पूर्णिया में ही जून 1998 में उनकी हत्या हुई थी। पप्पू यादव को साल 2008 में दो अन्य लोगों के साथ उम्रकैद की सजा मिली। 8 साल पप्पू यादव जेल में रहे और फरवरी 2009 में जमानत पर बाहर आ गए। सबूतों के अभाव में साल 2013 में उन्हें बाहर कर दिया गया।
लॉरेंस से कमजोर नहीं थे पप्पू यादव
यह सिर्फ एक आरोप है। पप्पू यादव पर हत्या, किडनैपिंग, चोरी, मारपीट, धोखाधड़ी, सेंधमारी, डकैती, फिरौती, अपहरण, दंगा, अवैध हथियार, घुसपैठ, धमकी, सरकारी सेवकों को धमकाने जैसे कई मामले दर्ज हैं। कुछ में वे बरी हैं, कुछ अभी भी चल रहे हैं। 90 के दशक से 2000 तक, उनकी गिनती आपराधिक राजनेताओं में ही होती थी। उन्हें सरकारी संरक्षण भी मिला था। उन पर भारतीय दंड संहिता से लेकर आर्म्स एक्ट तक में संगीन आपराधिक मामले दर्ज हैं।
2008 के बाद अपराध की दुनिया को कहा अलविदा
लॉरेंस बिश्नोई, आज जिस सिंडेकेट के भरोसे अपने गैंग का विस्तार आधे भारत में कर चुका है, एक जमाने में पप्पू यादव का भी ऐसा ही जलवा था। राजन तिवारी, सूरभान सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे लोग पप्पू यादव से मिलते थे। ठेकेदारी, धांधली, फर्जीवाड़ों के भी उन पर आरोप लगे। पप्पू यादव साल 1991, 1996, 1999, 2004 और 2014 में सांसद रहे हैं। पूर्णिया और मधेपुरा उनका इलाका है। वे बाहुबली राजनेता रहे लेकिन 2008 के बाद उन्होंने अपनी छवि जी-जान लगाकर बदली। बिहार में कोई भी आंदोलन हो, कोई महामारी हो, कहीं हत्याकांड हो, किसी अस्पताल में कुव्यवस्था हो, पप्पू यादव वहां पहुंच जाते हैं। बाकी राजनेताओं से अलग, उनका अंदाज है। वे बाढ़ में खुद राहत सामग्री लेकर जमीन पर उतर पड़ते हैं, लोगों की बढ़-चढ़कर मदद करते हैं। उनका दावा है कि वे कोरोना में अपनी जमीन बेचकर लोगों के लिए राहत सामग्रियां पहुंचाई।
लॉरेंस के गुर्गों की पहुंच बिहार तक
पप्पू यादव, राजनीति में इतने मशगूल हुए कि उन पर लगा बाहुबली टैग भी धीरे-धीरे हटने लगा। एक तरफ पप्पू यादव ने जरायम की दुनिया से दूरी बनाई, वहीं लॉरेंस बिश्नोई अपना विस्तार कर रहा है। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि लॉरेंस की गैंग में 700 से ज्यादा शूटर हैं, जो मरने मारने पर तुले रहते हैं। लॉरेंस गैंग के लोग दिल्ली, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, चंडीगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और बिहार तक हैं।
कौन कौन हैं लॉरेंस के गुर्गे?
लॉरेंस के गुर्गों में गोल्डी बराड़, सचिन बिश्नोई, काला जठेड़ी, अनमोल बिश्नोई विक्रम बराड़ और काला राणा जैसे दुर्दांत अपराधी हैं। गोली बराड़ के बारे में कहा जाता है कि वह कनाडा में बैठकर गैंग चलाता है, वहीं अनमोल बिश्नोई भी बाहर है। लॉरेंस की गैंग का कनाडा, अमेरिका और पाकिस्तान से भी तगड़ा कनेक्शन है। हवाला के जरिए इन्हें पैसे मिलते हैं, इनके पास फंडिंग की कोई किल्लत नहीं है। लॉरेंस गैंग पर दर्जनों केस दर्ज हो चुके हैं. सिद्धू मूसेवाला मर्डर केस, सुखदेव सिंह गोगामेड़ी, बाबा सिद्दीकी मर्डर केस, ड्रग स्गलिंग, सलमान खान के घर फायरिंग जैसे कई गंभीर मामले चल रहे हैं। लॉरेंस ने अपना नेटवर्क दाऊद की तरह मजबूत कर लिया है।
इतने मजबूत पप्पू यादव कैसे अचानक कमजोर पड़ गए?
पप्पू यादव ने अपराध की दुनिया से दूरी बनाई। उनके सहयोगी रहे लोग भी राजनीति में सक्रिय हुए तो अपराधियों का साथ छूट गया। बिहार में अपराध की दुनिया वैसी नहीं रही। 2001 के बाद जब बिहार में नीतीश युग की शुरुआत हुई तो अपराधियों के लिए माहौल भी बदल गया। नीतीश कुमार की छवि, लालू यादव और राबड़ी देवी की तरह नहीं थी। वे सुशासन की राजनीति करते थे, उन्होंने कुछ हद तक राज्य के अपराधीकरण को खत्म किया और बिहार जंगलराज के कथित टैग से बाहर आने लगा। आपराधिक गठजोड़ कमजोर पड़ने लगे और बाहुबलियों का झुकाव राजनीति की ओर हुआ तो परिस्थितियां भी बदलीं। कभी दूसरों की सुरक्षा प्रभावित करने वाले पप्पू यादव, अब खुद सुरक्षा मांग रहे हैं। उन्होंने सरकार से Z प्लस सुरक्षा मांगी है। बिश्नोई गैंग पर बोलना, उन्हें भारी पड़ गया है।