महाराष्ट्र में राजनीतिक घमासान अभी थमा नहीं है। 23 नवंबर को मतगणना के बाद महायुति को मिली भारी जीत ने पहले से लगाए जा रहे लगभग सारे कयासों को फेल कर दिया और सारे राजनीतिक समीकरणों को धता बताते हुए एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया।

 

महायुति को इस विधानसभा चुनाव में 230 सीटों पर जीत मिली। महायुति के तीनों घटकों बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया। हालांकि, बीजेपी का प्रदर्शन अभूतपूर्व रहा.

 

बीजेपी ने कुल 149 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से उसने 142 सीटें जीत लीं। शिवसेना ने 57 सीटें जीतीं और एनसीपी 41 सीटें जीतीं।

 

ऐसे में मतगणना वाले दिन के बाद से ही इस बात पर राजनीतिक गहमागहमी मची हुई थी कि अब सीएम कौन बनेगा? राजनीतिक गलियारे में शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के नामों पर चर्चा जारी थी. ऐसे में बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस करके शिंदे ने बोला कि उन्हें बीजेपी के सीएम से कोई दिक्कत नहीं है।

 

तो हम आपको बताते हैं कि क्या हैं इसके मायने और ऐसा उन्होंनें किन संभावनाओं के चलते बोला होगा?

 

फडणवीस को सपोर्ट

देवेंद्र फडणवीस को महायुति के दूसरे घटक अजित पवार की एनसीपी का सपोर्ट है. अजित पवार ने पहले ही संकेत दिया था कि वह देवेंद्र फडणवीस के सीएम बनने का समर्थन करते हैं। इसके कई कारण हैं. एक तो यही कि अजित पवार की एनसीपी और शिंदे की शिवसेना दोनों महाराष्ट्र की पार्टियां हैं। अगर शिंदे सीएम बनते हैं तो जाहिर है कि शिवसेना का कद कहीं न कहीं बढ़ा हुआ प्रतीत होगा, जो कि अजित पवार कभी नहीं चाहेंगे।

 

इसके अलावा ऐसा भी माना जा रहा है कि देवेंद्र फडणवीस को आरएसएस का भी समर्थन प्राप्त है। बीजेपी विधायक भी यही चाहेंगे कि देवेंद्र को सीएम बनाया जाए।

 

सबसे ज्यादा विधायक बीजेपी के

दूसरा महायुति में सर्वाधित विधायक बीजेपी के ही हैं। बीजेपी के कुल 132 विधायक हैं जो कि बहुमत के आंकड़े से बस थोड़ा सा ही कम है। 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में सरकार बनाने के लिए कुल 145 सदस्यों की जरूरत है, मतलब बीजेपी बहुमत के आंकड़े से खाली 15 सीटें ही कम है। ऐसे में सरकार बनाने के लिए बीजेपी को खाली एनसीपी की ही जरूरत होगी जो कि उसके पास पहले से ही है। इसलिए देखा जाए तो शिंदे के पास इस वक्त तोल-मोल करने की शक्ति नहीं है।

उद्धव ठाकरे फैक्टर

एमवीए की करारी हार के बाद उद्धव ठाकरे निश्चित रूप से यह महसूस कर रहे होंगे कि क्या बीजेपी का साथ छोड़ना उनके लिए नुकसानदायक तो नहीं हो गया। क्योंकि विधानसभा चुनावों के नतीजे इसी ओर इशारा करते हैं को लोगों ने शिंदे की शिवसेना को सपोर्ट किया है। 

 

इसीलिए शायद उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) ने स्थानीय निकायों के चुनावों अकेले ही लड़ने का फैसला किया है। ऐसे में एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उद्धव फिर से बीजेपी के नजदीक हो जाएं, जो कि एकनाथ शिंद कभी नहीं चाहेंगे। विपक्षी गुट एमवीए में उनके पास फिलहाल सर्वाधिक 20 सीटें हैं।

 

केंद्र में भी आ सकते हैं शिंदे

कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर प्रदेश में देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाया जाता है और तो हो सकता है कि वह केंद्र में आ जाएं. केंद्र सरकार में वह पहले से ही एनडीए का हिस्सा हैं।

 

नैतिक आधार

एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि चूंकि बीजेपी के पास सबसे ज्यादा सीटें हैं इसलिए गठबंधन धर्म यही कहता है कि ज्यादा सीटों वाली पार्टी का सीएम बनना चाहिए। हालांकि, यह कोई नियम नहीं है न ही राजनीतिक गलियारों में ऐसा देखा जाता है. बिहार इसका अच्छा उदाहरण है जहां नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं। ऐसे ही झारखंड में भी जब मधुकोड़ा मुख्यमंत्री बने थे तो वह निर्दलीय विधायक थे।