भारत की सनातन परंपरा में गुरु का स्थान सर्वोच्च माना गया है। गुरु न केवल ज्ञान के स्रोत होते हैं, बल्कि वे समाज और संस्कृति को सही दिशा भी देते हैं। हमारे देश में समय-समय पर अनेक ऐसे विद्वान गुरु हुए हैं, जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में विशेष ज्ञान देकर भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा को समृद्ध किया है। उन्होंने धर्म के साथ-साथ जीवन के विभिन्न पहलुओं- जैसे आयुर्वेद, ज्योतिष, राजनीति, विज्ञान और दर्शन को भी एक नई ख्याति प्रदान की। आइए पांच ऐसे ही महान गुरुओं का परिचय और उनके योगदान को जानते हैं।
महर्षि चरक (आयुर्वेद के प्रकांड आचार्य)
महर्षि चरक को आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के सबसे बड़े और प्रभावशाली गुरु के रूप में जाना जाता है। उन्होंने ‘चरक संहिता’ नामक आयुर्वेद ग्रंथ की रचना की, जो आज भी चिकित्सा के क्षेत्र में प्रमुख ग्रंथों में से एक मानी जाती है। यह ग्रंथ सिर्फ औषधियों के बारे में नहीं, बल्कि जीवनशैली, आहार, मानसिक स्वास्थ्य, रोगों की उत्पत्ति और उनके कारणों का गहरा विश्लेषण करता है।
यह भी पढ़ें: महादेव और पंच तत्व, वे 5 मंदिर जहां एक हो जाते हैं प्रकृति और भगवान
महर्षि चरक का मानना था कि रोग केवल शरीर में नहीं होते, बल्कि वह मन और आत्मा को भी प्रभावित करते हैं। उन्होंने ‘स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं’ यानी स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा और रोगी के रोगों की शांति को आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य बताया। उनके सिद्धांत आज भी आयुर्वेदिक शिक्षा और चिकित्सा का मूल आधार हैं।
महर्षि पराशर (ज्योतिष और धर्मशास्त्र के ज्ञाता)
महर्षि पराशर को ज्योतिष विद्या का जनक माना जाता है। उन्होंने 'बृहत् पराशर होरा शास्त्र' की रचना की जो वैदिक ज्योतिष का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इस ग्रंथ में ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, उनका प्रभाव, जन्मपत्रिका का विश्लेषण, दशा और भविष्यफल की विधियों को वैज्ञानिक ढंग से समझाया गया है।
महर्षि पराशर ने ज्योतिष को केवल भविष्य बताने का साधन नहीं माना, बल्कि उन्होंने इसे एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी बताया। उनका कहना था कि ग्रहों की स्थिति केवल भौतिक नहीं होती, वह व्यक्ति के कर्मों और मानसिक स्थिति को भी दर्शाते हैं। उनकी शिक्षा का उद्देश्य केवल भाग्य को जानना नहीं था, बल्कि आत्मा की उन्नति में ज्योतिष का सहयोग लेना था।
आचार्य चाणक्य (नीति, राजनीति और अर्थशास्त्र के विद्वान)
चाणक्य, जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन भारत के सबसे विद्वान राजनीतिक गुरुओं में से एक थे। उन्होंने ‘अर्थशास्त्र’ नामक ग्रंथ की रचना की जो शासन, युद्धनीति, कूटनीति और प्रशासन का अद्भुत मिश्रण है। चाणक्य की शिक्षाएं आज भी राजनीति और प्रबंधन के क्षेत्र में उपयोग की जाती हैं।
उन्होंने केवल एक शासक को नहीं, बल्कि एक आदर्श राष्ट्र की कल्पना को जन्म दिया। उनकी रणनीतियों की बदौलत चंद्रगुप्त मौर्य ने अखंड भारत की नींव रखी। चाणक्य की सोच यह थी कि धर्म और राजनीति एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, बल्कि धर्मयुक्त राजनीति ही समाज को न्याय और समृद्धि दे सकती है। उन्होंने शिक्षा, चरित्र और राष्ट्रहित को सर्वोच्च माना।
भास्कराचार्य (गणित और खगोल विज्ञान के गुरु)
भास्कराचार्य, जिन्हें भास्कर द्वितीय भी कहा जाता है, भारत के महान गणितज्ञ और ज्योतिष के विद्वान थे। उनका प्रमुख ग्रंथ ‘लीलावती’ और ‘सिद्धांत शिरोमणि’ आज भी गणित और खगोल विज्ञान में प्रमुख स्थान दिया गया है। उन्होंने शून्य, दशमलव और बीजगणित के सिद्धांतों को सरल तरीके से समझाया और खगोल विज्ञान को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा।
यह भी पढ़ें: नंदा देवी: अध्यात्म और रहस्य का संगम, कहानी उत्तराखंड के कुल देवी की
भास्कराचार्य ने यह सिद्ध किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और चंद्रग्रहण व सूर्यग्रहण खगोलीय कारणों से होते हैं – यह उस समय बहुत बड़ी खोज थी। उन्होंने धर्म और विज्ञान को जोड़ते हुए दिखाया कि ब्रह्मांड को जानना भी ईश्वर की भक्ति का ही एक रूप है।
आदिगुरु शंकराचार्य (अद्वैत वेदांत और धर्मशास्त्र के प्रवर्तक)
आदिगुरु शंकराचार्य आठवीं शताब्दी के महान संत, दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने 'अद्वैत वेदांत' की स्थापना की, जिसका सार था – ‘अहं ब्रह्मास्मि’ यानी आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है। उन्होंने भारत में चार मठों की स्थापना की और उपनिषदों, भगवद्गीता व ब्रह्मसूत्रों की व्याख्या की।
आदिगुरु शंकराचार्य ने पूरे भारत का भ्रमण कर धार्मिक एकता को बल दिया। वह यह मानते थे कि धर्म केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्मज्ञान का मार्ग है। उन्होंने मूर्तिपूजा, वेद, भक्ति और ज्ञान के बीच सामंजस्य स्थापित किया। उनके योगदान से सनातन धर्म एक बार फिर संगठित और सशक्त बना।