भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आने वाली अनंत चतुर्दशी का दिन आस्था, व्रत और उत्सव का अनोखा संगम लेकर आता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है और भक्त अनंत सूत्र धारण कर जीवन में सुख-समृद्धि और अनंत आशीर्वाद की कामना करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि कौंडिन्य की पत्नी सुशीला ने जब अनंत व्रत किया तो उनके परिवार में ऐश्वर्य और शांति आई लेकिन कौंडिन्य ने अनंत सूत्र का अपमान किया तो उनके जीवन में दुख और दरिद्रता आ गई। बाद में अपनी गलती की माफी मांगने के लिए उन्होंने दोबारा तपस्या शुरू की। उसके बाद उन्हें अनंत देव की कृपा प्राप्त हुई।
यही दिन गणेश चतुर्थी के दस दिवसीय उत्सव का अंतिम दिन भी होता है। मान्यता है कि महाभारत की रचना के बाद भगवान गणेश का शरीर तपन से भर गया था और अनंत चतुर्दशी के दिन जल में स्नान कर उन्हें शांति मिली। तभी से इस दिन गणपति विसर्जन की परंपरा शुरू हुई। भक्त 'गणपति बप्पा मोरया, अगले वर्ष तू जल्दी आ' का जयघोष करते हुए भावपूर्ण विदाई देते हैं। इस प्रकार अनंत चतुर्दशी व्रत और गणपति विसर्जन दोनों मिलकर हमें आस्था, समर्पण और जीवन की अनित्यता का अद्भुत संदेश देते हैं।
यह भी पढ़ें: हिडिंबा देवी मंदिर: जहां देवता की तरह पूजे जाते हैं राक्षस
अनंत चतुर्दशी व्रत की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार महर्षि सुतजी ने पांडवों को अनंत चतुर्दशी का महत्व बताया था। इससे जुड़ी प्रचलित कथा के अनुसार, जब पांडव जुए में सब कुछ हार गए और वनवास चले गए थे, तब द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से इसकी वजह पूछा थी। ऐसे में श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने को कहा था। कथा के अनुसार, द्रौपदी ने श्रद्धा से यह व्रत किया और उसके प्रभाव से पांडवों का दुर्भाग्य समाप्त हो गया था और वे दोबारा संपन्न और शक्तिशाली हो गए थे।
कथा का एक और रूप है जिसमें कहा जाता है कि भगवान विष्णु क्षीरसागर में 'अनंत शेष नाग' के रूप में विराजमान हैं और उनका यह स्वरूप सृष्टि के पालन और स्थायित्व का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए इस दिन 'अनंत सूत्र' (धागा) बांधने की परंपरा है, जिसे भगवान विष्णु के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
इस व्रत से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार, एक वीर ब्राह्मण कौंडिन्य और उनकी धर्मपरायण पत्नी सुशीला एक दिन यात्रा के दौरान नदी के किनारे पहुंचे थे, जहां सुशीला ने देखा कि कुछ महिलाएं विधिपूर्वक अनंत व्रत (जिसमें चौदह गांठों वाला 'अनंत सूत्र' बांधा जाता है) कर रही थीं। उन्होंने भी तत्परता से यह व्रत अपनाया। फिर उन्हें शीघ्र ही धन-वैभव प्राप्त हुआ।
बाद में जब कौंडिन्य ने यह विश्वास किया कि यह सब उनकी मेहनत का फल है, तो क्रोधित होकर उन्होंने सुशीला का बांधा हुआ अनंत सूत्र फाड़कर जला दिया। इससे भगवान विष्णु (अनंत) नाराज हो गए और कौंडिन्य को गरीबी और दुःखों का सामना करना पड़ा।
यह भी पढ़े: अहोबिलम मंदिर: जहां होती है नरसिंह के नव अलग-अलग रूपों की पूजा
कथा के अनुसार, अपनी भूल का एहसास होने पर कौंडिन्य ने तपस्या की, तिरस्कार के लिए पश्चाताप किया और फिर से 14 वर्षों तक अनंत व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनकी संपत्ति लौट आई, उनका जीवन सुखी हो गया और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
गणपति विसर्जन के जुड़ी पौराणिक कथा
पुराणों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत ग्रंथ की रचना के समय महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश को लगातार दस दिनों तक महाभारत लिखने का आग्रह किया था। गणेश जी ने यह काम बिना रुके स्वीकार किया लेकिन उस दौरान पानी पीना वर्जित था। कथा के अनुसार, उनकी शरीर में ज्यादा तपन उत्पन्न हो गई थी, जिससे उनकी मिट्टी का लेप सूखने लगा और शरीर में अकड़न आ गई। अंत में वेदव्यास जी ने उन्हें शांति और शीतलता के लिए जल में स्नान करने की सलाह दी। यह स्नान अनंत चतुर्दशी के दिन हुआ, जिसके बाद गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित करने की परंपरा भी आरंभ हुई। इसी वजह से अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश उत्सव का समापन और विसर्जन अनिवार्य रूप से होता है।
इस दिन क्या किया जाता है
- सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है।
- भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है और विशेष रूप से अनंत देव के स्वरूप की पूजा होती है।
- पूजा में चौदह गांठों वाला एक धागा (अनंत सूत्र) तैयार किया जाता है, जिसे हल्दी से रंगा जाता है।
- पूजा के बाद यह धागा पुरुष दाहिने हाथ में और महिलाएं बाएं हाथ में बांधती हैं।
- चौदह प्रकार के फल, फूल या पकवान चढ़ाने की परंपरा भी है।
- व्रत रखने वाला दिनभर सात्त्विक भोजन करते हैं और संध्या के समय व्रत का समापन करते हैं।
- यह दिन गणेश चतुर्थी का भी अंतिम दिन होता है, यानी इसी दिन गणपति विसर्जन होता है।
इस दिन क्या नहीं करना चाहिए
- मांस, मछली, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए है।
- अनंत सूत्र को कभी भी अपमानित या काटकर नहीं फेंकना चाहिए।
- व्रत के दिन झगड़ा और कलह से बचना चाहिए।
- अनंत सूत्र बांधने के बाद उसे कम से कम चौदह दिन तक हाथ में रखना चाहिए, तुरंत खोलना शुभ नहीं माना जाता है।