बचपन साधु संतों के बीच गुजरा, अघोरियों की संगत की, श्मशान में रहे, चिता की लकड़ी पर भोग प्रसाद बनाया, घोर-अघोर की संगत में महाभोग को समझा, विरक्त होकर संन्यास को जिया, घनघोर जंगल, हिमालय की कंदराओं में वषों रहे। जर्नलिज्म की डिग्री भी ली और अपनी पुस्तक 'प्रकृति से परमात्मा की ओर' भी लिखी। अब संन्यासी बनकर जंगल, धरती मां, पशु-पक्षी, नदी-पहाड़ की रक्षा के लिए समर्पित हैं। ऐसे विलक्षण बाबा, गुरु स्नेह में महाकुंभ क्षेत्र के प्रसिद्ध देवरहवा बाबा के शिविर में पहुंच चुके हैं। पेड़ पौधों को साइकिल पर रखकर क्षेत्र में भ्रमण करते हैं। श्रद्धालु उन्हें पर्यावरण बाबा,पेड़ वाले बाबा, साइकिल वाले बाबा, हिमालय वाले बाबा, जंगल वाले बाबा के नाम से पुकारते हैं।
बहुत कम लोग हैं जो उन्हें नाम से जानते हैं। दरअसल पर्यावरण बाबा का नाम संत राम बाहुबली दास है। नाम के पीछे भी बहुत बड़ा रहस्य छिपा हुआ है। घनघोर जंगलों,वन प्रदेश और बर्फीले पहाड़ों पर गुफाओं-कंदराओं तक पहुंचने की क्षमता रखने की वजह से उन्हें संत राम बाहुबली का नाम उनके गुरु ने दिया है। महाकुंभ 2025 के गंगा जी के मध्य में स्थित एकमात्र स्थायी शिविर के रूप में जाने जाने वाला देवरहा बाबा कुटी में पर्यावरण बाबा मानव सेवा ,गुरु सेवा के साथ ही पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रहे हैं।
मास कॉम की पढ़ाई के बाद बने संन्यासी
संत राम बाहुबली ने बताया कि वह हिमाचल से 1500 किलोमीटर की साइकिल यात्रा कर महाकुंभ क्षेत्र पहुंचे हैं। अब तक करीब 25 हजार किलोमीटर की यात्रा साइकिल से कर चुके हैं। इसके अलावा प्रतिदिन साइकिल से ही भ्रमण करते हैं अगर इसको भी जोड़ लें तो लाखों किलोमीटर साइकिल का सफर हो जाएगा लेकिन उन्हें किसी रिकॉर्ड की अभिलाषा नहीं है।
पर्यावरण बाबा उर्फ संत राम बाहुबली दास ने बताया कि मास कम्यूनिकेशन से ग्रेजुएशन करने के बाद बालक दास महाराज से गुरु दक्षिणा लेकर संन्यास के मार्ग पर चल पड़े। गुरु दीक्षांत के बाद वह वाम मार्गी हुए। अघोर पंथ से जुड़े, वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट और मणिकर्णिका घाट पर एक के बाद एक जलने वाली चिताओं को भी देखा। चिताओं को जलाने में सहयोग किया। अघोर रूप में डोम की तरह घाटों की सफाई किया। कुछ वर्षों तक इन्हीं घाटों पर अघोरियों के साथ भटकता रहा। उनके साथ उनके जैसा जीवन भी जिया लेकिन महाप्रसाद से दूर रहा, फिर इस अघोरियों की संगत कुछ अच्छी नहीं लगी तो और ज्ञान की खोज में वहां से निकल लिया।
रास्ते में पेड़ लगाते हुए कुंभ पहुंचे
वह बताते हैं, 'गुरुमुखी होकर वैष्णव पंथ से जुड़ा, स्वामी शिवानंद पहले गुरु बने, महाराष्ट्र में दर्शन संन्यास को समझा। शुरुआत में मिजोरम त्रिपुरा अरुणाचल नॉर्थ साउथ की तरफ रहा, परशुराम कुंड में स्थित आश्रम से गोवंश की चोरी हो गई। गुरुजी काफी दुखी थे उन्होंने बताया कि चोरी हुए गोवंश की निर्मम हत्या की गई। ऐसी घटनाएं उसे क्षेत्र में आए दिन होती थी, इस घटना ने काफी उत्तेजित किया। मुझे लगा कि वह अब भी असुरों के बीच रह रहे हैं। यहीं से प्रकृति पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठा लिया।' शुरुआती दौर में वह काफी आक्रामक रूप से गौवंश की रक्षा के लिए कूद पड़ते थे। कई बार काफी विवाद हुआ। जीवन पर भी संकट आया। महीनों हॉस्पिटल में भी रहना पड़ा फिर धीरे-धीरे जीवन में परिवर्तन आया। फिर उत्तर भारत हिमालय पहुंच गए। वहां भी काफी समय रहे। मानव, जीव-जंतु के जीवन, पर्यावरण संरक्षण को ही अब सेवा बनाकर चल रहे हैं।
इसके बाद से अब वह साइकिल यात्रा के माध्यम से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने में लगे हैं। उन्होंने कहा कि यदि प्रकृति को लेकर हम समय से सजग नहीं हुए तो आने वाले वंशजों को हम कुछ नहीं दे पाएंगे और मानवता अपना मूल खो बैठेगी। यही कारण है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए वे हिमाचल से पंजाब के रास्ते साइकिल यात्रा करके संगम पहुंचे हैं। इस दौरान रास्ते में जितने भी जिले पड़े, सब में एक-एक पौधे लगाते हुए यहां तक पहुंचे हैं।
राम बाहुबली दास ने बताया कि देशभर में भ्रमण कर जगह-जगह पर पंचवटी और त्रिवेणी संस्कार से वृक्षारोपण करवाते हैं।जल जीवन, नदी, पर्वत, पशु-पक्षी के जीवन की संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करते हैं प्रेरित करते हैं। वृक्षों का दान लेते हैं और उन्हीं वृक्षों में और पेड़ पौधे मिलकर लोगों को भी आशीर्वाद स्वरूप यही देते हैं।
संत राम बाहुबली दास ने बताया कि महाकुंभ क्षेत्र में 12 जनवरी को उनकी तरफ से एक विशाल निवेदन यात्रा निकाली जाएगी। क्षेत्र के शिविरों में जाकर पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाएगा। वहीं 13 जनवरी पौष पूर्णिमा के पहले स्नान पर्व से हर शिविर में जाकर तुलसी और शमी के पौधे वितरित किए जाएंगे ताकि महाकुंभ मेला को स्वच्छ, सुंदर और प्रदूषण रहित बनाने के साथ ही श्रद्धालु कल्पवासियों स्नार्थियों को भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक कर उन्हें पर्यावरण प्रेमी बनाने की सीख दी जा सके। हमारे मानवीय गुणों के सिद्धांत दूषित हो चुके हैं। इसको ठीक करने के लिए हमें अपनी प्रकृति, नदियों और जीव जंतुओं के प्रति फिर से सेवारत होना होगा। फिलहाल धरती मां की सेवा, पर्यावरण संरक्षण के साथ और वृक्षों की रक्षा जागरूकता करने ,जीव जंतुओं की रक्षा, जागरूकता के संकल्प के साथ संत राम बाहुबली दास संगम लोअर मार्क स्थित देवराहा बाबा शिविर में रह रहे हैं।