भगवान विष्णु को समर्पित विभिन्न कथाओं का वर्णन, धर्म ग्रंथ और पुराणों में किया गया है। शास्त्रों में भगवान विष्णु की विभिन्न लीलाओं में एक देवी काली से जुड़ी कथा भी मिलती है, जिसमें भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र कैसे प्राप्त हुआ, इसके विषय में विस्तार से बताया गया है। आइए जानते हैं इस कथा के विषय में।
भगवान विष्णु को कैसे प्राप्त हुआ सुदर्शन चक्र
पौराणिक कथा के अनुसार, असुरों के बढ़ते अत्याचार से धरती हाहाकार मच गया था। त्रिलोक में हाहाकार मचा हुआ था और स्वयं भगवान विष्णु भी बिना किसी दिव्य शस्त्र के इन दुष्ट शक्तियों का पूर्ण रूप से नाश करने में असमर्थ हो रहे थे। जगत के पालनहार भगवान विष्णु यह देखकर चिंतित हो उठे कि बिना एक शक्तिशाली अस्त्र के अधर्म का नाश करना कठिन होता जा रहा है। उन्होंने सोचा कि उन्हें ऐसा शस्त्र प्राप्त करना चाहिए जो अपराजेय हो, जो अजेय शक्ति का प्रतीक हो।
अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भगवान विष्णु कैलाश पर्वत पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या करने लगे। उन्होंने हिमालय की ऊंचाइयों में ध्यानमग्न होकर हजारों वर्षों तक तपस्या की।
भगवान शिव की परीक्षा
भगवान शिव, जो स्वयं ध्यान और तपस्या के स्वामी हैं, वे भगवान विष्णु की तपस्या से प्रसन्न तो थेलेकिन वे उनकी भक्ति की परीक्षा भी लेना चाहते थे। उन्होंने भगवान विष्णु की तपस्या की गहनता को परखने के लिए कुछ मायावी रूप धारण किए, कई बार उनके समक्ष विचित्र बाधाएं उत्पन्न की लेकिन विष्णु जी अडिग रहे।
वे अपने ध्यान से एक पल के लिए भी विचलित नहीं हुए। अंततः भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट हुए और बोले, 'हे नारायण! तुमने इतनी कठोर तपस्या की है, मुझसे जो भी वरदान चाहो, मांग सकते हो।'
भगवान विष्णु ने हाथ जोड़कर निवेदन किया, 'हे महादेव! मैं आपसे एक ऐसा शस्त्र चाहता हूं जो संसार में अद्वितीय हो, जो हर दुष्ट शक्ति का नाश कर सके और सृष्टि की रक्षा में सहायक हो।'
भगवान शिव मुस्कुराए और उन्होंने अपने परम भक्त विश्वकर्मा से कहा कि वे भगवान विष्णु के लिए एक दिव्य चक्र का निर्माण करें।
सुदर्शन चक्र का निर्माण
भगवान विश्वकर्मा ने सूर्य देव के तेज से सुदर्शन चक्र का निर्माण किया। यह चक्र इतना शक्तिशाली था कि इसकी गति से पूरा ब्रह्मांड कांप उठता था। इसकी धार इतनी तीव्र थी कि कोई भी अस्त्र-शस्त्र इसके सामने टिक नहीं सकता था। जब यह चक्र घूमता, तो इसे रोक पाना असंभव होता।
भगवान शिव ने वह चक्र भगवान विष्णु को प्रदान किया और कहा, 'हे विष्णु! यह सुदर्शन चक्र अब से तुम्हारा सबसे प्रिय शस्त्र होगा। यह अधर्म का नाश करेगा और धर्म की स्थापना करेगा। यह अजेय है, अविनाशी है और सदा तुम्हारे साथ रहेगा।'
भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर भगवान शिव को नमन किया और फिर इस चक्र का उपयोग असुरों और दुष्ट शक्तियों के विनाश के लिए किया।
इससे जुड़े प्रसिद्ध मंदिर
इस कथा से जुड़े कई मंदिर भारत में स्थित हैंलेकिन विशेष रूप से तमिलनाडु के कुंभकोणम में स्थित चक्रपाणि मंदिर को इस कथा से जोड़ा जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र को समर्पित है। कहा जाता है कि यहां भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का पहली बार प्रकट रूप धारण किया था।
इसके अलावा, पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर में भी सुदर्शन चक्र की विशेष पूजा होती है। मंदिर के ऊपर स्थित सुदर्शन चक्र को बहुत ही दिव्य और रहस्यमयी माना जाता है।