वर्तमान समय के भागदौड़ भरे जीवन में व्यक्ति कई बंधनों में जकड़ रहा है और इसके कारण कई शारीरिक व मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इन्हीं में से एक है ‘ओवरथिंकिंग’। बता दें कि ओवरथिंकिंग अपने आप में कोई मानसिक बीमारी नहीं है, लेकिन यह मानसिक विकार जैसे- डिप्रेशन, एंग्जायटी और ओसीडी से जुड़ा हो सकता है। शोध पाया गया है कि ओवरथिंकिंग मस्तिष्क में न्यूरोलॉजिकल असंतुलन पैदा करती है। इसके साथ IIT दिल्ली ने पाया कि युवाओं में,  खासकर 18-35 आयु वर्ग में, ओवरथिंकिंग के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस समस्या से दूर करने के लिए योग, ध्यान और काउन्सलिंग का सुझाव दिया जाता है। हालांकि, इसके लिए श्रीमद्भागवत गीता की भी सहायता है ले सकते हैं।

 

श्रीमद्भागवत गीता को भगवान श्री कृष्ण का साक्षात स्वरूप माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षत्र की युद्धभूमि में अर्जुन को धर्म, कर्तव्य जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ज्ञान दिया था। साथ ही गीता में कई श्लोक ऐसे हैं, जिनका अर्थ समझने से और उनमें बताई गई बातों का पालन करने से व्यक्ति सही मार्ग अग्रसर होने लगता है। उनके जीवन में कई सकारात्मक बदलाव आते हैं। आज हम आपको 5 श्लोक के विषय में बताएंगे, जो ओवरथिंकिंग से दूर रहने में और मानसिक शांति के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं।

श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥ (अ.2, श्लोक- 38)

 

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, निष्पक्ष होकर युद्ध करो। सुख-दुख, लाभ-हानि को समान मानो और बिना किसी चिंता के अपने दायित्व निभाओ। तुम यदि इस भावना से कार्य करोगे, तो तुम्हें पाप नहीं लगेगा।

 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥ (अ.2, श्लोक- 47)

 

इस श्लोक का भावार्थ है कि  हमें अपने काम को पूरी ईमानदारी और लगन से करना चाहिए, लेकिन उसके परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए। काम का फल हमारे हाथ में नहीं है, इसलिए उसे पाने की लालसा या उससे जुड़ी उम्मीद में उलझना सही नहीं है। साथ ही, यह भी कहा गया है कि हमें काम से भागना नहीं चाहिए या आलस्य में नहीं रहना चाहिए। बस अपने कर्तव्य पर ध्यान देना है, बाकी सब अपने आप होगा।

 

क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥ (अ.2, श्लोक- 63)

 

इस श्लोक का भावार्थ यह है कि क्रोध हमारी निर्णय लेने की क्षमता को कमजोर कर देता है, जिससे हमें सही तरीके से सोचने में मुश्किल होती है। जब हम ठीक से सोच नहीं पाते, तो हमारी याददाश्त भी प्रभावित होती है। अगर याददाश्त सही नहीं होती, तो हमारी समझ और बुद्धि भी खराब हो जाती है। और जब हमारी बुद्धि खत्म हो जाती है, तो यह हमारे जीवन में गिरावट का कारण बनता है।

 

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥ (अ.18, श्लोक- 66)

 

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, सभी धर्मों को छोड़ दो और सिर्फ मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें तुम्हारे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, डरने की कोई बात नहीं है। इसमें श्री कृष्ण, भक्ति के महत्व को बताया है। भक्ति भी योग की भांति शांति प्रदान करती है। इससे व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में उत्पन्न हो रही नकारात्मक भावनाएं दूर रहती हैं और मन शांत रहता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।